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कोयला घोटाले पर बेस्ड नहीं कोयलांचल

झारखंड के कोयला माफिया और नक्सलवाद की समस्या पर आधारित फिल्म कोयलांचल में अभिनेता सुनील शेट्टी कलेक्टर आइएएस निशीथ कुमार की भूमिका में हैं. वह इस फिल्म से जुड़े अनुभवों को खास बताते हैं. वे कहते हैं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान उनका सामना एक अलग ही भारत से हुआ, जो उनके लिए आंखें […]

झारखंड के कोयला माफिया और नक्सलवाद की समस्या पर आधारित फिल्म कोयलांचल में अभिनेता सुनील शेट्टी कलेक्टर आइएएस निशीथ कुमार की भूमिका में हैं. वह इस फिल्म से जुड़े अनुभवों को खास बताते हैं. वे कहते हैं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान उनका सामना एक अलग ही भारत से हुआ, जो उनके लिए आंखें खोलनेवाला अनुभव था. सुनील के साथ विनोद खन्ना भी दमदार किरदार में नजर आयेंगे. उर्मिला कोरी से हुई खास बातचीत.

कोयला घोटाले से प्रेरित नहीं : कई सालों से अखबारों में न जानें कितने कोयला घोटाले की खबरें हम पढ़ चुके हैं. मैं यह नहीं कह सकता कि यह फिल्म उसी से प्रेरित है. इतना जरूर कहना चाहूंगा कि शूटिंग के दौरान हमनें जाना कि वहां के लोग किस तरह तकलीफ में जीवन जी रहे हैं. यह फिल्म कोयला माफियाओं की ताकत और बरसों से उस भूखंड पर कब्जा जमाये लोगों के खिलाफ आवाज उठा रहे चंद लोगों की कहानी है. लोगों को लगता है कि वे एक यूनियन बनाकर अपनी लड़ाई को अंजाम दे सकते हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं. वहां लोग कोयला खदानों से महज 20 फीट की दूरी पर रहते हैं. बच्चे उसी माहौल में पलते हैं. सच पूछिए तो वह किसी मौत के कुंए से कम नहीं, लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं.

फिल्म ने आंखें खोल दीं : झारखंड के जिन इलाकों में हमने इस फिल्म की शूटिंग की, वह नक्सल प्रभावित इलाके हैं. ऐसे में सुरक्षा इंतजामों के बावजूद हम थोड़े नर्वस जरूर थे. जब हम शूटिंग खत्म कर जाने की तैयारी करते तो पता चलता कइयों की आवाज ही बदल गयी है. खांसी और कफ की शिकायत भी हो गयी थी. शूटिंग के बाद नहाता तो पूरा बाथरूम काला हो जाता था. आज भी यह सोचकर चकित हूं कि ऐसे माहौल में इतने सालों से वहां लोग कैसे जी रहे हैं. यह आंखें खोलनेवाला सच रहा.

विनोद खन्ना हर सीन में मुङो खा जायेंगे : मैंने विनोद जी (खन्ना) की कई फिल्में देखी हैं, लेकिन जिस दिन हमनें इसकी शूटिंग शुरू की, उन्हें देखकर भौंचक्का रह गया. वह आज भी एक्टिंग में इतने बेजोड़ हैं कि मैं यकीन ही नहीं कर पाया. पहले दिन जब वह अपने किरदार सूर्य भान सिंह के रूप में सामने आये, तो ‘दयावान’ का उनका लुक याद आ गया. एक्टिंग ऐसी कि लगता था मुङो हर सीन में खा जायेंगे. अपने किरदार के विपरित विनोद जी काफी विनम्र हैं. वह अक्सर यही कहते- बस रिलैक्स करो. सब अच्छा होगा.

प्रमोशन जरूरी है : मौजूदा दौर में फिल्मों का प्रोमोशन सबसे ज्यादा अहम है. गर्मियां शुरू होते ही आइस्क्रीम और सॉफ्ट ड्रिंक्स के विज्ञापन टीवी पर आने लगते हैं. आज वाकई मार्केटिंग का जमाना है. अगर 20 करोड फिल्म का बजट है, तो उसमें से पांच करोड़ आपको प्रोमोशन के लिए रखना बहुत ज़रूरी है. मैं समझता हूं आज फिल्मों की सफलता पूरी तरह से प्रोमोशन पर है. मुङो खुशी है कि हमारी इस फिल्म की पीआर टीम बहुत अच्छा काम कर रही है. खास बात यह है कि इसका प्रमोशनल बजट भी बहुत अच्छा है और हम भी जी-जान से इसका प्रोमोशन कर रहे हैं. जो फिल्में हिट नहीं हैं, उन्हें हिट करार देना मुङो पसंद नहीं है. यह करप्शन लगता है.

मेरा विलेन बनना बच्चों को पसंद नहीं : मुङो निगेटिव किरदार में भी कामयाबी मिली है. ‘मैं हूं ना’ के बाद मुङो सौ से भी अधिक निगेटिव किरदार ऑफर हुए थे, लेकिन मैंने उनमें से एक भी एक्सेप्ट नहीं किया. मैंने फिल्म धडकन में भी निगेटिव किरदार निभाया था, लेकिन वह पूरी तरह निगेटिव न होकर ग्रे शेड में था. उन फिल्मों ने मुङो पुरस्कार दिलवाये, लेकिन मैं समझता हूं कि एक पिता के तौर पर यह मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं अपने बच्चों को बेस्ट दूं. मैं नहीं चाहता कि मेरे किसी काम के लिए उन्हें शर्मिदा होना पड़े. उन्हें मेरा विलेन बनना अच्छा नहीं लगता था, सो मैंने विलेन बनना छोड़ दिया. बतौर एक्टर मैं काफी सफल रहा हूं. मैंने उन्हें एक अच्छी जिंदगी दी है. आज भी हर साल हम छुट्टियां मनाने बाहर जाते हैं और एक पिता होने के नाते चाहता हूं कि जब तक मैं जिंदा रहूं, यह सिलिसला यूं ही जारी रहे. वैसे मेरी बेटी भी जल्द ही फिल्मों में अपनी शुरुआत करनेवाली है. मेरी बेटी ने हाल ही में उसने इस फिल्म की शूटिंग पूरी की है. फिलहाल वह इसके रिलीज का इंतजार कर रही है.

मेरी आनेवाली फिल्में : कोयलांचल के बाद देसी कट्टे, शूटर तथा लाइट्स कैमरा एक्शन, ये तीन फिल्में हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि यह सभी फिल्में बैक टू बैक रिलीज न हों. इसके अलावा तीन और फिल्में हैं जिनकी घोषणा मैं जल्द ही करूंगा.

खेल में बहुत ताकत है : अभिनय के अलावा मैं खेल-कूद में भी अपनी भागीदारी दरशाता रहता हूं. मैं समझता हूं खेल में वह ताकत है कि वह युवाओं के सोचने का नजरिया बदल सकता है. इसके जरिए वह ईमानदार, जागरूक और फिट होने के साथ सही एटीट्यूड के साथ हर चीज का मुकाबला कर सकते हैं. हम सब जानते हैं कि आइपीएल में मैच फिक्सिंग को लेकर काफी बवाल मचा है, लेकिन इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि इस खेल ने एक बार फिर देश के करोड़ों युवाओं को एक नयी उम्मीद की किरण दी है. यही वजह है कि अमेरिका में खेल-कूद को काफी प्रोत्साहन दिया जाता है. उम्मीद करता हूं कि हम भी उनके नक्शे कदम पर चलते हुए कुछ ऐसा करें.

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