दो साल पहले तक त्रिपुरा में जिस व्यक्ति का नाम किसी ने ठीक से सुना तक नहीं था आज वो शख़्स राज्य के मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार के तौर पर सामने आए हैं.
हम बात कर रहे हैं बीजेपी के त्रिपुरा प्रदेश अध्यक्ष बिप्लब कुमार देब की.
ज़ाहिर है कोई भी व्यक्ति इतने कम समय में एकाएक मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं बन जाता लेकिन जब बात त्रिपुरा में 25 साल के वाम शासन का अंत करने की बात होती है बतौर स्थानीय नेता बिप्लब कुमार देब का चेहरा सबसे पहले सामने आता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी प्रमुख अमित शाह तक और राम माधव से लेकर सुनील देवधर और हिमंता बिस्वा सरमा तक इन तमाम नेताओं ने त्रिपुरा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी.
बिप्लब कुमार देब वह नेता थे जिन्होंने बीजेपी के महासंपर्क अभियान के दौरान घर-घर जाकर संपर्क किया.
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बीजेपी गठबंधन का नेता
लिहाज़ा त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में बनने वाली सरकार के पहले मुख्यमंत्री के नाम को लेकर इस समय बिप्लब कुमार देब काफी चर्चा में हैं.
हालांकि, बीजेपी ने अब तक बिप्लब कुमार देब के नाम की आधिकारिक घोषणा नहीं की है.
लेकिन बीजेपी के पूर्वोत्तर के प्रभारी राम माधव ने ट्वीट कर बताया है कि त्रिपुरा में आठ मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ होगी.
उन्होंने आगे बताया कि मेघालय में छह मार्च और नगालैंड में सात मार्च को बीजेपी गठबंधन का नेता मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा.
राजनीति में बिप्लब के शुरुआती दिनों के बारे में बात करते हुए उनकी पत्नी नीति देब ने बीबीसी से कहा, "बिप्लब अपने छात्र जीवन से ही संघ के स्वयंसेवक रहे हैं और राजनीति में उनकी शुरुआत गोविंदाचार्य जी के साथ हुई."
"उस समय केंद्र में अटल जी के नेतृत्व वाली सरकार थी और गोविंदाचार्य जी बीजेपी के महासचिव थे. उसी दौरान बिप्लब उनके निजी सचिव अर्थात पीए थे. ये ऐसा दौर था जब नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेता आचार्य जी के यहां मिलने आते थे."
"इसी तरह इनका भी पार्टी की तरफ झुकाव बढ़ता चला गया. आचार्य जी के साथ काम करते हुए इनके बीजेपी नेताओं के साथ अच्छे संपर्क बनते चले गए."
बिप्लब का परिवार
गोमोती ज़िले के उदयपुर के काकराबन में साल 1971 में जन्मे बिप्लब कुमार देब ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव में रहकर ही पूरी की.
बाद में उन्होंने साल 1999 में त्रिपुरा विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी की और दिल्ली चले गए. यहीं उनकी मुलाकात नीति देब से हुई.
जालंधर के एक ब्राह्मण पंजाबी परिवार से आने वाली नीति देब कहती हैं, "12वीं पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए मैं दिल्ली चली आई. लेकिन इस बीच मुझे स्टेट बैंक में नौकरी मिल गई और मेरी पहली नियुक्ति नई दिल्ली स्थित स्टेट बैंक की संसद भवन शाखा में हुई."
"बिप्लब का बैंक में आना-जाना था. इस तरह हम एक-दूसरे को जानते थे. लेकिन इस बीच बिप्लब ने हमारे बैंक के एक अकाउंटेंट के ज़रिए सीधे मुझे शादी का प्रस्ताव भेज दिया. इस तरह हमारी मुलाकात हुई और उसी साल 2001 में हमने शादी कर ली."
सक्रिय राजनीति
बिप्लब कुमार देब और नीति देब का एक बेटा और एक बेटी है जो दिल्ली में पढ़ते हैं.
मीडिया में बिप्लब के जिम इंस्ट्रक्टर के तौर पर काम करने की ख़बर को उनकी पत्नी ग़लत बताती हैं.
वह कहती हैं, "बिप्लब अपनी सेहत को लेकर हमेशा सचेत रहते हैं और उन्हें जिम जाना पसंद है लेकिन वे कभी जिम इंस्ट्रक्टर नहीं रहे."
दिल्ली में रहते हुए देब ने राजनीति में सक्रिय रूप से आने की योजना बना ली थी.
इस दौरान उन्होंने बीजेपी की पूर्व सांसद और वाजपेयी सरकार में खान और खनिज राज्य मंत्री रहीं रीता बर्मा के निजी सहायक के तौर पर भी काम किया.
वहीं, देब मध्य प्रदेश के सतना लोकसभा सीट से भाजपा सांसद गणेश सिंह के सहायक के रूप में भी कार्यरत थे.
पूर्वोत्तर पर विशेष ध्यान
दरअसल, किसी समय उनके पिता स्वर्गीय हिरुधन देब जनसंघ के अच्छे कार्यकर्ता हुआ करते थे.
लिहाज़ा दिल्ली जाने के बाद वह आरएसएस के और करीब आ गए और एक सक्रिय कार्यकर्ता के तौर काम किया.
इस बीच 2014 में जब केंद्र में बीजेपी की सरकार आई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो पार्टी ने पूर्वोत्तर पर विशेष ध्यान देना शुरू किया.
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम के समक्ष बीजेपी बहुत कमज़ोर पार्टी थी जबकि त्रिपुरा में लगातार 20 सालों से मुख्यमंत्री पद संभाल रहे माणिक सरकार की बराबरी में खड़ा होने वाला कोई नेता नहीं था.
लिहाज़ा बीजेपी ने अप्रैल 2015 में बिप्लब कुमार देब को राज्य में महासंपर्क अभियान के प्रदेश संयोजक के तौर पर त्रिपुरा भेजा. देब अपने ही राज्य में 16 साल बाद लौटे थे.
ऐसे में ख़ुद को यहां के लोगों से रूबरू करवाना और माणिक सरकार के खिलाफ एक जनमत खड़ा करना आसान नहीं था.
मुख्यमंत्री पद का दावेदार
नीति देब कहती हैं, "त्रिपुरा में आने के बाद बिप्लब पार्टी के काम में इतने व्यस्त होते चले गए कि परिवार के लिए भी समय नहीं होता था. कई बार सप्ताह भर उनसे बात नहीं हो पाती थी. तीन महीने तक मुलाकात नहीं होती थी. एक वाम शासित राज्य में जन संपर्क अभियान के तहत घर-घर जाकर उनको जोड़ना आसान काम नहीं था."
वह कहती हैं, "बिप्लब ने त्रिपुरा से पढ़ाई की लेकिन यहां रोज़गार नहीं था और उन्हें अपना प्रदेश छोड़कर दिल्ली जाना पड़ा. यह बात अब तक उनके दिमाग में बैठी हुई है और इसी आधार पर उन्होंने राज्य में लोगों को पार्टी के साथ जोड़ा है. अगर वह मुख्यमंत्री बनते हैं तो युवाओं के लिए रोज़गार सृजन करना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी."
राजनीति के जानकार कहते हैं कि लोगों से जुड़ने की उनकी क्षमता को देखते हुए पार्टी ने फरवरी 2016 में बिप्लब कुमार देब को त्रिपुरा बीजेपी का अध्यक्ष बनाया था.
इस समय त्रिपुरा के मुख्यमंत्री पद के लिए देब को सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है.
बिप्लब कुमार देब ने बनमालीपुर विधानसभा सीट पर सीपीएम के अमल चक्रवर्ती को 9549 वोट के अंतर से पराजित किया है.
हालांकि, देब के अलावा मुख्यमंत्री की इस दौड़ में डॉक्टर अतुल देब बर्मा और रामपद्दा जमातिया के नाम भी सामने आ रहे हैं.
डॉ. अतुल देब बर्मा
पेशे से दिल्ली में डॉक्टर 53 साल के अतुल देब बर्मा चुनावी राजनीति में पहली बार उतरे हैं.
हालांकि, पिछले एक साल से भी अधिक समय से डॉ. देब बर्मा ग़ैर-मुनाफ़े के तहत त्रिपुरा के आदिवासियों के बीच सामाजिक मुद्दों पर काम कर रहे हैं.
त्रिपुरा क्षत्रिय समाज के साथ मिलकर आदिवासी इलाकों में देब बर्मा आरएसएस के सहयोग से काम कर रहे हैं. इस समाज को बने करीब 11 साल हो गए हैं.
यह उनकी मेहनत का नतीजा है कि जनजातिय लोग तेज़ी से आरएसएस में शामिल हो रहे हैं.
ऐसा कहा जाता है कि संघ में शामिल होने वाले युवाओं को एक मंच प्रदान किया जा रहा है.
ऐसे में संघ के साथ उनकी करीबी को देखते हुए देब बर्मा को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया जा रहा है.
अतुल देब बर्मा ने कृष्णपुर सीट से सीपीएम उम्मीदवार खगेंद्र जमैतिया को 1995 वोटों से हराया है.
रामपद्दा जमातिया
आदिवासी आरक्षित बाग्मा निर्वाचन सीट से 2833 वोटों से जीत दर्ज करने वाले रामपद्दा जमातिया एक अनुभवी आरएसएस कार्यकर्ता हैं.
त्रिपुरा के आदिवासी समूहों में जमातिया समुदाय पहला ऐसा समुदाय था, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अनुषांगिक शाखा विश्व हिंदू परिषद ने अपनाया था.
जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो उस समय बीजेपी ने त्रिपुरा में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश की थी और रामपद्दा जमातिया ने सक्रिय भूमिका निभाई थी.
ऐसे में जनजातीय इलाकों में बीजेपी का कुछ समर्थन बढ़ा भी लेकिन केंद्र में जब पार्टी हार गई तो लोगों ने फिर दूरी बना ली.
उस समय जमातिया ने पार्टी के लिए जो काम किया था उसे बीजेपी के वरिष्ठ केंद्रीय नेता आज भी याद रखे हुए हैं.
बीजेपी ने गुजरात, हरियाणा, असम जैसे राज्यों में जिस तरह अपने मुख्यमंत्री चुने हैं, हो सकता है कि त्रिपुरा में भी ऐसे ही किसी शख़्स को सीएम की कुर्सी मिल जाए.
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