जिस देश में ओलिंपिक होता है, वहां इसके बहाने निवेश होता है, खेलों के लिए बुनियादी संरचनाएं बनती हैं, जो भविष्य में काम आती हैं. अब थियेटर ओलिंपिक को इसके बरक्स देखें. क्या इसमें थियेटर के लिए भविष्य में काम आनेवाली कोई बुनियादी संरचना बनी? जवाब है- नहीं.
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थियेटर ओलिंपिक की जरूरत क्या है? : थियेटर-रंगमंच
जिस देश में ओलिंपिक होता है, वहां इसके बहाने निवेश होता है, खेलों के लिए बुनियादी संरचनाएं बनती हैं, जो भविष्य में काम आती हैं. अब थियेटर ओलिंपिक को इसके बरक्स देखें. क्या इसमें थियेटर के लिए भविष्य में काम आनेवाली कोई बुनियादी संरचना बनी? जवाब है- नहीं. भारत में 17 फरवरी से लेकर आठ […]
भारत में 17 फरवरी से लेकर आठ अप्रैल तक दिल्ली समेत 17 शहरों में आठवां थियेटर ओलिंपिक्स आयोजित किया जा रहा है इसमें साढ़े चार शो प्रदर्शन होंगे. थियेटर ओलिंपिक ‘अंतरराष्ट्रीय थियेटर ओलिंपिक समिति’ का आयोजन है. सबसे बड़ा थियेटर ओलिंपिक हुआ था मॉस्को में साल 2001 में. गूगल कीजिए, तो चेखव इंटरनेशनल थियेटर नाम का पेज मिलेगा, जिस पर तीसरे ओलिंपिक का भी जिक्र है. इसमें 32 देशों ने भाग लिया था और प्रस्तुतियों की संख्या थी 97. इसके बाद थियेटर ओलिंपिक में नाटकों की संख्या 50 के नीचे ही रही.
एनएसडी निदेशक वामन केंद्रे ने भारत रंग महोत्सव 2015 के उद्घाटन में कहा कि एनएसडी, थियेटर का ‘विश्व का सबसे बड़े आयोजन थियेटर ओलिंपियाड की मेजबानी करना चाहता’ है. जुलाई 2017 में संस्कृति मंत्री ने 2018 में थियेटर ओलिंपिक्स होने की औपचारिक घोषणा की. अक्तूबर 2017 में अचानक ओलिंपिक समिति ने घोषणा की कि वह इस आयोजन में भाग नहीं लेगा और अपने ब्रांड नाम ‘थियेटर ओलिंपिक’ के इस्तेमाल की इजाजत भी नहीं देगा.
चूंकि संस्कृति मंत्री खुद इसकी घोषणा कर चुके थे, तो एनएसडी को इस समस्या को सुलझाने की जिम्मेदारी दी गयी. मसला ये था कि रतन थियम इस आयोजन के आर्टिस्टिक डायरेक्टर थे, लेकिन एनएसडी अध्यक्ष पद से कार्यकाल समाप्त होने के बाद ये पद जाता रहा था. अंततः आर्टिस्टिक डायरेक्टर बना कर समिति को मनाया गया.
साल 2017 के उन्नीसवें भारंगम में 21 देशों ने भाग लिया था और प्रस्तुतियों की संख्या थी 94. यानी भारंगम किसी मायने में छोटा और कम वैश्विक आयोजन नहीं था. भारंगम का इतिहास देखेंगे, तो पायेंगे कि एक से एक अंतरराष्ट्रीय रंग प्रतिभाएं इसमें प्रस्तुति कर चुकी हैं. तो ओलिंपिक समिति एनएसडी को ऐसा क्या दे रही है, जिसके लिए भारंगम को सहभागी न बनाकर स्थगित कर दिया गया. समिति, ब्रांड नाम और आठ नाटक दे रही है, फंड संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार दे रहा है. ये आठ नाटक ओलिंपिक समिति के सदस्यों के हैं, जिसमें हर नाटक के तीन शो होने हैं और प्रति शो निर्देशक को फीस मिलेगी तीन लाख.
इन नाटकों के लिए मंच जुटाने में जो खर्चा है, वह भी एनएसडी को देना है. उनको भी इसका लाभ मिल रहा है. आठ नाटकों और एक ब्रांड नाम की यह कीमत बड़ी है. इससे भारतीय रंगमंच को भविष्य में कोई लाभ होगा इसकी संभावना नहीं है, क्योंकि थियेटर ओलिंपिक के इतिहास में रतन थियम के अलावा भारत से किसी ने परफाॅर्म नहीं किया है और वह समिति के सदस्य हैं.
खेलों का ओलिंपिक्स जिस देश में होता है, उसके बहाने वहां निवेश होता है, खेलों के लिए बुनियादी संरचना बनती है, जो भविष्य में काम आता है. अब थियेटर ओलिंपिक को इसके बरक्स देखें. क्या इस ओलिंपिक में थियेटर के लिए भविष्य में काम आनेवाली कोई बुनियादी संरचना बनी? जवाब है- नहीं. और निवेश के बदले भारत का पैसा बाहर जा रहा है.
वामन केंद्रे का दावा है कि यह ओलिंपिक्स विश्व पटल पर भारतीय रंगमंच को प्रोजेक्ट और प्रोमोट करेगा, जो अब तक नहीं हुआ. हकीकत यह है कि स्तानिस्लावस्की, ब्रेख्त, ग्रोतोवोस्की, और पीटर ब्रुक जैसे रंग सिद्धांतकार और निर्देशक एक ओर जहां भारतीय रंगमंच से प्रभावित रहे हैं, वहीं भारत के रंगकर्मियों की लंबी सूची है, जिनकी वैश्विक रंगमंच पर धमक है. थियेटर ओलिंपिक एनएसडी प्रशासन की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और अदूरदर्शिता का परिणाम अधिक लगता है, जिसमें देशहित और रंगमंच के हित को दरकिनार कर दिया गया है.
अमितेश, रंगकर्म समीक्षक
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