- कौटिल्य अर्थशास्त्र में जीएसटी की प्रकृति पर एक निबंध लिखिए?
- मनु भूमंडलीकरण के प्रथम भारतीय चिंतक हैं. विवेचन कीजिए?
दरअसल ये दो सवाल पूछे गए हैं, वाराणसी के काशी हिंदू विवि के एमए राजनीतिक विज्ञान के पहले सेमेस्टर के एक प्रश्नपत्र में.
इन प्रश्नों को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. विवाद सिर्फ यहीं नहीं ये पूछे गए दोनों प्रश्न पाठ्यक्रम से इतर हैं, बल्कि ये भी कि सवाल किसी खास विचारधारा से प्रेरित हैं.
बीते 4 दिसंबर को बीएचयू में होने वाली परीक्षा में शरीक होने वाले राजनीतिक विज्ञान प्रथम सेमेस्टर के छात्र दीपक ने बीबीसी हिंदी को बताया कि पूछे गए दोनों सवाल ‘आउट ऑफ सिलेबस’ हैं और एक विचारधारा से जुड़े हुए हैं. साथ ही ये सवाल दो अलग-अलग टॉपिक को मिलाकर पूछे गए हैं.
‘पाठ्यक्रम से बाहर के प्रश्न’
दीपक ने बताया कि शिक्षा को एक नई दिशा देने की कोशिश की जा रही है. ये केवल राजनीतिक विज्ञान की दिक्कत नहीं, बल्कि कुछ एक-दो टीचर हैं जो जानबूझकर ऐसी चीजें करते रहते है. ऐसा करना बिल्कुल भी उचित नहीं है.
तो वहीं परीक्षा देने वाले शिवानंद ने बीबीसी हिंदी को बताया कि पूछे जाने वाले सवाल को क्लास में पढ़ाया तो गया था, लेकिन सवाल को अलग तरीके से तुलनात्मक बनाकर पूछा जा सकता था. इससे बीएचयू से जुड़े अन्य कॉलेज के छात्रों को प्रश्न का जवाब देने में दिक्कत हुई.
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‘मनु ग्लोबलाइजेशन के पहले भारतीय चिंतक’
बीएचयू राजनीतिक विज्ञान के ही एक अन्य शोध छात्र निर्भय सिंह बताते हैं, ‘अभी आधिकारिक रूप से ऐसा कोई भी अध्याय पाठ्यक्रम में शामिल नहीं हैं. मैं भी यहीं से पढा हूं. जब चीजें शोध के माध्यम से स्थापित हो जाती है तो पूछी जा सकती हैं. ऐसे सवाल पूछा जाना ठीक नहीं है. विमर्श और चर्चा करना एक अलग विषय है, लेकिन प्रश्न पूछना आउट ऑफ़ सिलेबस है.’
‘जीएसटी के प्रणेता कौटिल्य थे’
वहीं प्रश्नपत्र तैयार करने वाले राजनीतिक विभाग के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया, ‘कौटिल्य को दरकिनार करने वाले और उंगली उठाने वाले पहले संस्कृत भाषा का ज्ञान लें. क्योंकि कोटिल्य का अर्थशास्त्र संस्कृत भाषा में है. देश के प्रोफेसरों में संस्कृत भाषा समझने का माद्दा नहीं है.’
प्रोफेसर मिश्रा कहते हैं, ‘उस वक्त कौटिल्य की जीएसटी और मनु के भूमंडलीकरण की बात की थी तो क्या ये देश का गौरव नहीं हैं? उन्होंने बताया कि जीएसटी के प्रणेता कौटिल्य थे. ये किसी को नहीं मालूम, क्योंकि इस देश में कौटिल्य को दरकिनार कर दिया गया है. मनु को एक जाति विशेष से जोड़कर उनके चिंतन को ख़राब कर दिया गया है.’
‘मनु कहते हैं कि हम पृथ्वी के सभी मानवों को चरित्र सिखाने के लिए पैदा हुए हैं. मनु स्मृति सभी मानवों को चरित्र सिखाने की बात करते हैं तो ये ग्लोबाइजेशन नहीं है तो क्या है?’
प्रोफेसर केके मिश्रा ने कहते हैं कि वे गौरवांवित महसूस करते हैं कि वे मनु और कौटिल्य पर काम करके देश की आत्मा को पहचानने का काम करते हैं.
वे कहते हैं, ”पूछे गए दोनों सवाल सिलेबस के हैं और छात्रों को पढ़ाया भी गया है. आखिर लोगों के पेट में दर्द क्यों हो रहा है?’
आरएसएस से संबंध के कारण शिक्षण में आरएसएस की विचारधारा थोपने के सवाल को प्रोफेसर मिश्रा ने नकार दिया और कहा कि जब ‘फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन’ है तो ऐसा कैसे संभव है.
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