बीबीसी हिंदी न्यूज
छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित बीजापुर ज़िले में सीआरपीएफ के चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई है.
पुलिस का कहना है कि सीआरपीएफ के ही एक जवान ने अपनी एके-47 से साथियों पर गोली चलाई, जिसमें दो सब इंस्पेक्टर, एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर और एक कॉन्सटेबल मारे गये हैं.
इस हमले में एक सिपाही घायल हुआ है जिसे इलाज के लिये रायपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
क्षेत्र के डीआईजी पी सुंदरराज के अनुसार, "बीजापुर ज़िले के बांसागुड़ा कैंप में सीआरपीएफ की 168वीं बटालियन में एक जवान द्वारा अपने साथियों पर गोली चलाने की घटना सामने आई है, जिसमें सीआरपीएफ के चार लोग मारे गये हैं. किस परिप्रेक्ष्य में यह घटना हुई है, अभी इसकी जांच की जा रही है."
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तनाव की बात
आरंभिक तौर पर कहा जा रहा है कि गोलियां चलाने वाला जवान सनत कुमार अपनी ड्यूटी को लेकर तनाव में था और इसी बात को लेकर उसका अपने अधिकारियों और दूसरे सहयोगियों से झगड़ा हुआ, जिसके बाद उसने यह क़दम उठाया.
जवान सनत कुमार को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है.
पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी का कहना है कि बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव, और सुकमा राज्य के ऐसे माओवाद प्रभावित इलाके हैं, जिनमें जवानों की काम की परिस्थितियां बहुत ही प्रतिकूल हैं. काम का दबाव, बीमारी, अफसरों से झगड़ा, सुविधाओं की कमी और छुट्टी नहीं मिलने जैसे कारणों से जवान अवसाद में आ रहे हैं.
इन परेशानियों के कारण जवान या तो जान ले रहे हैं या जान दे रहे हैं. अकेले इस साल अक्टूबर तक 36 जवानों ने आत्महत्या कर ली है. पुलिस रिकार्ड में अब तक इतनी बड़ी संख्या में कभी भी जवानों ने अपनी जान नहीं दी है.
आत्महत्या के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल कुल 12 जवानों ने आत्महत्या की थी. इससे पहले 2015 में छह, 2014 में सात और 2013 में पांच जवानों ने आत्महत्या की थी.
आत्महत्या के अलावा माओवादियों के साथ मुठभेड़ में सुरक्षाबल के जवानों की मौत भी राज्य सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है.
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‘मारेंगे भी और शहीद भी होंगे’
इस साल सुरक्षाबलों ने अलग-अलग मुठभेड़ों में 71 माओवादियों को मारा है लेकिन इन मुठभेड़ों में मारे जाने वाले सुरक्षाबल के जवानों के आंकड़े भी कम नहीं हैं.
पिछले 11 महीनों में सुरक्षाबलों के 59 जवान छत्तीसगढ़ में मारे गये हैं. इन आंकड़ों में अगर आत्महत्या करने वाले जवानों के आंकड़े भी अगर जोड़ दिए जायें तो यह आंकड़ा 95 तक जा पहुंचता है.
इस साल राज्य के माओवाद प्रभावित इलाकों में 27 आम नागरिक भी मारे गये हैं. लेकिन भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी इन आंकड़ों के पीछे अपना तर्क देते हैं.
अपना नाम सार्वजनिक नहीं किये जाने की शर्त पर उन्होंने कहा, "बस्तर में पहली बार तो जवान माओवादियों से आमने-सामने का मुकाबला कर रहे हैं, इसलिये केजुअल्टी दिख रही है. मुकाबला करेंगे तो मारेंगे भी और शहीद भी होंगे."
अधिकारी ने कहा कि इससे पहले बस्तर में होने वाली मुठभेड़ों पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. कई मामले हाईकोर्ट तक पहुंचे हैं. लेकिन इस साल ऐसे मामलों की संख्या लगभग नहीं के बराबर है.
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राज्य के गृहमंत्री रामसेवक पैंकरा भी मानते हैं कि राज्य में सुरक्षाबल के जवान माओवादियों को उनकी मांद में घुसकर चुनौती दे रहे हैं, माओवादियों पर दबाव बढ़ा है.
पैंकरा कहते हैं, "नक्सली अपनी बौखलाहट में वारदात को अंजाम दे रहे हैं लेकिन राज्य की रमन सिंह की सरकार ने 2022 तक राज्य को नक्सलमुक्त करने का फ़ैसला किया है और इस दिशा में हम तेज़ी से काम कर रहे हैं. आप देखेंगे, हम अपने लक्ष्य में सफल होंगे."
हालांकि 2013 में भी राज्य सरकार ने 2018 तक छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद के समूल ख़ात्मे का दावा किया था. लेकिन हालात बहुत अधिक नहीं बदले. ऐसे में गृहमंत्री रामसेवक पैंकरा के दावे पर यकीन करने के लिये फिलहाल तो अगले चार साल तक और प्रतीक्षा करनी होगी.
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