-सूरत से अंजनी कुमार सिंह-
चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, लेकिन सूरत की सड़कों पर चुनावी शोर नहीं दिख रहा है. उद्योगपति से लेकर कामगार सब अपने दैनिक काम में मशगूल हैं. चमचमाती सड़कें, ओवर ब्रिज, सार्वजनिक परिवहन की सुविधा और कारोबार का माहौल शहर में दाखिल होते दिखने लगता है. उत्तर भारत के राज्यों की तरह यहां पर हर गली-मोहल्ले में चुनाव की चर्चा में लोगों की दिलचस्पी नहीं है, बल्कि वह अपने काम में लगे हुए हैं. चुनाव की चर्चा के लिए इनके पास वक्त कम है. लोग अपने काम-काज में खुश दिख रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सरकार के प्रति उनकी नाराजगी नहीं है.
लोग इसे जाहिर भी करते हैं, लेकिन इस नाराजगी के बावजूद कांग्रेस को लेकर लोगों में विश्वास का अभाव है. लोग मानते हैं कि कांग्रेस के पास नेतृत्व का अभाव और विकास को लेकर विजन की कमी है, जिसके कारण अधिसंख्य लोगों के पास भाजपा का कोई विकल्प नहीं है. हालांकि इस बार लड़ाई कांटे की बतायी जा रही है, इसका कारण बताते हुए शाहिद कहते हैं कि इससे पहले भाजपा के नेताओं को इतनी मेहनत करते नहीं देखा है. जबकि इस बार हर घर में दस्तक दिया जा रहा है. जिस मोहल्ले में कभी भाजपा को छोड़ किसी का बैनर नहीं लगता था, उन मोहल्लों में इस बार दूसरे दलों का भी बैनर देखा जा सकता है. इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर लोगों की राय सकारात्मक है.
ज्यादातर लोग मोदी की प्रशंसा करते हैं. कन्नु भाई दिशावाला बताते हैं कि आज पूरे गुजरात में रात के 12 बजे भी लड़कियां अकेले सुरक्षित आ-जा सकती हैं. सड़क, परिवहन की सुविधा, शहर में पुल-पुलिया यह सब सरकार की ही तो देन है. गुजरात का इतना ज्यादा विकास तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही हुआ है. देश ही नहीं विश्व में भी मोदी के कारण गुजरात का मान बढ़ा है. सुलेमान भाई भी दिशावाला की बात को स्वीकारते हैं, लेकिन कहते हैं कि इसके अलावा भी बहुत कुछ होना चाहिए. वह बताते हैं कि इस बार मुकाबला कांटे की है, लेकिन भाजपा की जीत ही होगी.
कांग्रेस में नेतृत्व की कमी : नर्मदा साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी के समाज शास्त्र विभाग के प्रमुख मधु भाई गायकवाड़ का मानना है कि कांग्रेस में नेतृत्व की कमी है. इसलिए सरकार से नाराजगी के बावजूद कांग्रेस विकल्प के तौर पर लोगों को आकर्षित नहीं कर पा रही है. साथ ही प्रधानमंत्री के गुजराती होने को लेकर लोगों में गर्व की भावना है. राज्य में विकास के साथ कानून-व्यवस्था की स्थिति भी अच्छी है, इसलिए लोग भाजपा को पसंद करते हैं.
सूरत भाजपा का मजबूत गढ़ : परंपरागत तौर पर भाजपा सूरत में मजबूत रही है. पिछले चुनाव में जिले की कुल 16 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज कर पायी थी. लेकिन हार्दिक पटेल के आरक्षण आंदोलन से पार्टी को उम्मीद है कि पटेलों का समर्थन कांग्रेस को मिलेगा. वारछा रोड, केटाग्राम जैसी सीटें पटेल बाहुल्य इलाके हैं, जबकि मांडवी कांग्रेस की पुरानी सीट रही है. युवा पटेलों का झुकाव हार्दिक के कारण कांग्रेस की ओर दिखता है, लेकिन वह वोट में कितना तब्दील हो पायेगा यह कहना जल्दबाजी होगी. वैसे भाजपा नेताओं का कहना है कि शुरुआती दौर में लोगों की नाराजगी थी, लेकिन अब हालात बेहतर हुए है.
कितना काम करेगा हार्दिक फैक्टर : पीएम मोदी के दिये भाषण ‘चाय बेच सकता हूं, लेकिन देश नहीं ‘ अब लोगों की जुबान पर चढ़ कर बोल रहा है. निश्चित तौर पर भाजपा के लिए हार्दिक फैक्टर के बीच अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती है, वहीं कांग्रेस हार्दिक पटेल के समर्थन के सहारे सूरत सहित पूरे सौराष्ट्र में अपनी साख बचाने की कोशिश में लगी है. पार्टी को उम्मीद है कि इस बार सूरत में वह भाजपा को पटकनी देने में कामयाब होगी.
बड़ी संख्या में झारखंड-बिहार के लोग
सूरत, गुजरात का एक व्यावसायिक शहर है. हीरे की कटिंग, पॉलिशिंग के अलावा कपड़ा उद्योग के कारण इसकी पहचान पूरी दुनिया में है. देश में लगभग 21 लाख पावरलूम हैं, लेकिन अकेले सूरत में इसकी संख्या आठ लाख के आसपास है. इसमें लगभग 10 लाख लोग काम करते हैं. अधिकांश कामगार उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, एमपी, राजस्थान के रहने वाले हैं. प्रवासी कई सीटों पर प्रभावी भूमिका में हैं. प्रवासियों की प्राथमिकता में भाजपा है. यहां पर पटेलों की नाराजगी भी एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन पटेल बंटे हुए हैं. कुनाल पटेल को हार्दिक पटेल से सहानुभूति है, लेकिन वह स्वीकार करते हैं कि वोट वह भाजपा को ही देंगे. इसका कारण वह अपने क्षेत्र के प्रत्याशी को बता रहे हैं.