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संवेदना से है रचना का संबंध

समर शेष है ,इतिकथा-अथकथा, मुर्दा स्थगित, छछिया भर छाछ जैसे चर्चित कहानी-संग्रहों के लेखक महेश कटारे हिंदी कथा लेखन में खास पहचान रखते हैं. उन्हें मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार, शमशेर सम्मान, वागेश्वरी सम्मान और कथाक्रम सम्मान से नवाजा जा चुका है.महान संस्कृत कवि भतृर्हरि के जीवन पर आधारित हाल ही में आये उनके पहले […]

समर शेष है ,इतिकथा-अथकथा, मुर्दा स्थगित, छछिया भर छाछ जैसे चर्चित कहानी-संग्रहों के लेखक महेश कटारे हिंदी कथा लेखन में खास पहचान रखते हैं. उन्हें मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार, शमशेर सम्मान, वागेश्वरी सम्मान और कथाक्रम सम्मान से नवाजा जा चुका है.महान संस्कृत कवि भतृर्हरि के जीवन पर आधारित हाल ही में आये उनके पहले उपन्यास कामिनी काय कांतारे सहित लेखन पर महेश कटारे से प्रीति सिंह परिहार की बातचीत.

* लेखक के रूप में आपका जीवन कैसे शुरू हुआ?

मैं जब कॉलेज में पढ़ने पहुंचा, उस समय वातावरण में कविता का प्रभाव अधिक था. मंच पर कविता पाठ करते हुए कवि हीरो की तरह नजर आते थे. उन्हें देखकर मैंने भी कुछ गीत लिखे. लेकिन फिर पारिवारिक स्थितियों के कारण कॉलेज बीच में ही छूट गया और लेखन भी. पांच-छह साल बाद फिर कुछ गीत लिखे, और एक कहानी भी लिखी. कहानी ज्यादा पसंद की सबने. मेरे एक वरिष्ठ हैं प्रकाश दीक्षित, तब उन्होंने थोडे़ व्यंगात्मक लहजे में मुझे सलाह दी कि तुम कविता पर कृपा करो और कहानी ही लिखो. तब, यानी 1980-81 से मेरा कहानी लेखन शुरू हुआ.

* पहली कहानी जो प्रकाशित हुई या चर्चित रही?

मेरी पहली कहानी ह्यउपहारह्ण बहुत सामान्य से अखबार छात्र नेता में प्रकाशित हुई, हालांकि मेरे लिए उसमें प्रकाशित होना बहुत बड़ी बात थी. कुछ लोगों और छात्रों ने पढ़ी, प्रतिक्रिया दी, मुझे लगा कि मैं तो बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति हो गया हो, क्योंकि मेरी दुनिया तो उतने में ही सिमटी थी. इस तरह एक शुरुआत हुई, फिर कुछ पढ़ना-लिखना शुरू किया, तो बात आगे बढ़ती चली गयी.

* आपका पहला उपन्यास कामिनी काय कांतारे महान संस्कृत कवि भतृर्हरि के जीवन पर आधारित है. भतृर्हरि पर लिखने का विचार कैसे आया?

दरअसल, हिंदी में इनके व्यक्तित्व पर बहुत कमा लिखा गया है. भतृर्हरि ने नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक जैसे तीन बड़े काव्य लिखे. वाक्यपदीय व्याकरणग्रंथ की रचना की. भतृर्हरि राजा भी थे लेकिन राज-पाठ छोड़कर वे वंचित वर्ग के लिए चलाये जा रहे गोरखनाथ के आंदोलन में शामिल हुए. भतृर्हरि ने कहा-जिसके पास सुंदर कविता है, उसको राज्य की क्या जरूरत है. इतनी बड़ी बात विश्व के किसी कवि ने नहीं कही. बचपन से मैं गीतों और लोक गाथाओं में भतृर्हरि के व्यक्तित्व के बारे में सुनता आ रहा हूं. इसलिए मैंने उनके जीवन पर लिखना शुरू किया.

* इसे लिखने में कितना समय लगा?

भतृर्हरि के जीवन पर उपन्यास लिखना थोड़ा चुनौतीपूर्ण तो था ही, क्योंकि इतिहास में उनके बारे में बहुत सामग्री नहीं मिलती. पहले तो चार-पांच साल मैंने सामग्री एकत्रित की. विद्वानों से मिला. पुरानी पत्रिकाएं पलटीं. भतृर्हरि से जुड़ी जगहों में गया. इस तरह मैं उज्जैन से असम तक गया. सामग्री एकत्रित हुई, तो कल्पना का भी कुछ मेल हुआ और छह-सात महीने में लिख गया उपन्यास. चीनी यात्री ह्येनसांग ने लिखा था कि भतृर्हरि ने सात बार घर छोड़ा और सात बार लौट कर आये. किंवदंती है कि पत्नी पिंगला के चरित्र के कारण उन्होंने घर छोड़ा, लेकिन वे बार-बार उसी पत्नी के पास लौटे हैं. यह भी एक अहम पहलू था. लेकिन मैं पिंगला के बारे में यह स्वीकार नहीं कर पाया कि वह दुश्चरित्र रही होंगी. इसलिए उपन्यास में अंत तक पिंगला दुश्चरित्र सिद्ध नहीं होती हैं.

* कहानियां, नाटक, यात्रा-वृत्तांत जैसी विधाओं में लिखने के बाद अब जाकर आपका उपन्यास आया. इस देरी की वजह?

पहले मेरी हिम्मत नहीं होती थी उपन्यास लिखने की. उपन्यास का फलक बहुत बड़ा होता है, इसलिए डर लगता था कि कैसे संभाल पाऊंगा. लेकिन जब भतृर्हरि के जीवन के बारे में गहराई से सोचना शुरू किया, तो लगा कि उन पर पहले जो कुछ हुआ है, उससे अलग ढंग से कुछ करना चाहिए. और जब कोई विषय अच्छा लगने लगता है, तो उस पर परेशानी उठाकर काम करते हुए भी सुख मिलता है. वही मेरे साथ हुआ.

* कहानी बुनने की अपनी कला के बारे में बताएं?

कहानी, कविता या पेंटिंग कोई भी रचना हो, सबमें अहम यह होता है कि आपकी संवेदना कहां जाकर जुड़ रही है और कहां से आहत हुई है. संवेदना जब आहत होती है, तो लगता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए. अब ऐसा नहीं होना चाहिए, तो कैसा होना चाहिए. फिर एक बिंब बनता है. पढ़ाई-लिखाई, जनांदोलन और इतिहास इन सब चीजों से जुड़कर एक मन बनता है. मुक्तिबोध ने कहा था -आप किससे साथ खड़े हैं! यानी जो अत्याचार कर रहा है उसके साथ या जो अत्याचार सह रहा है उसके साथ? इस तरह रचनाकार की एक पक्षधरता बनती है. बेशक कहानी रातों-रात समाज को नहीं बदल सकती, समाज धीरे-धीरे बदलता है. पर इसके लिए लेखक कोशिश करता रहता है.

* एक रचनाकार के लिए क्या किसी खास विचारधारा से जुड़ा होना भी अहमियत रखता है?

देखिये, यह बहुत बड़ा प्रश्न है. मगर इतना तो तय है कि लेखक को उसके हक में आवाज उठानी चाहिए, जो किसी के अत्याचार का शिकार है. विचारधारा का लोग सीधा मतलब जोड़ते हैं मार्क्सवाद से. मगर मैं इस पर परंपरा से जुड़ा एक उदाहरण दूंगा. रामायण में वाल्मीकि ने लिखा है-हे निषाद मैं तुझे कभी स्थायी प्रतिष्ठा नहीं मिलने दूंगा, क्योंकि तूने एक निरपराध का वध किया है. यह कलम हाथ में लेनेवाले की, लेखक की प्रतिज्ञा है. अन्याय को सहन न करने, उसके खिलाफ अवाज उठाने की यह प्रतिज्ञा धीरे-धीरे एक विचार में तब्दील हो गयी और हमारे सामने एक नये रूप में आ गयी, जिसे मार्क्सवाद कहते हैं. मेरा मानना है कि अभी तक वंचितों की भलाई के लिए मार्क्सवाद से अच्छा विचार और कोई नहीं है. संभव है कि आगे कोई नया विचार बने, नया दर्शन आये लेकिन अभी तक सबसे उत्कृष्ट दर्शन तो यही है और इसलिए मैं स्वाभाविक रूप से उसका पक्षधर हूं.

* इन दिनों क्या नया लिख रहे हैं ?

मेरी चंबल पर एक उपन्यास लिखने की योजना है. इस सिलसिले में मैं जहां से चंबल निकलती है, उस क्षेत्र में गया था. लेकिन वहां मेरे पैर में फैक्चर हो गया. पैर ठीक हुआ, तो फसल की कटाई का समय आ गया. अब फसल की कटाई के बाद खलिहान चलेगा पंद्रह से बीस दिन. इसके बाद देखते हैं.

* लेखन से इतर और क्या करना पसंद है?

यात्रा करना. संगीत सुनना. कुमार गंधर्व मेरे सबसे प्रिय गायक हैं. भीमसेन जोशी भी प्रिय हैं. रविशंकर जी का सितार और बिस्मिल्लाह खान की शहनाई सुनना भी अच्छा लगता है. जब भी अवसर मिलता है मुझे, तो मैं इनको सुनता हूं. इन्हें सुन कर शांति मिलती है.

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