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जब अंधविश्वास से लड़कर डॉक्टर ने बचाई महिला की जान

तमाम अंधविश्वास, पुराने रीति रिवाज और संसाधनों की कमी की समस्या से लड़ते हुए ओडिशा के एक डॉक्टर ने एक गर्भवती महिला की जान बचाई. ओंकार होटा ने महिला को स्ट्रेचर पर 12 किलोमीटर दूर स्थित प्राइमरी हेल्थ सेटर तक पहुंचाया जिससे उनकी जान बच सकी. ओंकार ओडिशा के पाप्पूलुरु के एक सरकारी प्राइमरी हेल्थ […]

तमाम अंधविश्वास, पुराने रीति रिवाज और संसाधनों की कमी की समस्या से लड़ते हुए ओडिशा के एक डॉक्टर ने एक गर्भवती महिला की जान बचाई. ओंकार होटा ने महिला को स्ट्रेचर पर 12 किलोमीटर दूर स्थित प्राइमरी हेल्थ सेटर तक पहुंचाया जिससे उनकी जान बच सकी.

ओंकार ओडिशा के पाप्पूलुरु के एक सरकारी प्राइमरी हेल्थ सेंटर में काम करते हैं. अब उनकी सोशल मीडिया की न्यूज़ फीड बधाइयों के मेसेज से भर गई है. घटना को समझने के लिए बीबीसी ने प्रवीण कसम ने ओंकार से बात की.

उन्होंने कहा, "एक स्थानीय पत्रकार डेबी मैती ने मुझे बताया कि एक गर्भवती महिला की जान खतरे में है और मुझे मदद करने को कहा."

ओंकार ने बताया , "30 साल की शुभामा मार्सी चित्रकोंडा ब्लॉक के सारीगट्टा गांव में रहती हैं. पब्लिक ट्रांस्पोर्ट से ये गांव पूरी तरह से कटा हुआ है. यहां से पास के गांव में पहुंचने के लिए नदी-नालों और तंग रास्तों से होते हुए 12 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है."

गांव की मान्यता

डॉक्टर ओंकार कहते हैं, "गांव में कोई मेडिकल सुविधा नहीं होने के कारण डिलीवरी एक झोपड़ी में ही करनी पड़ी. महिला ने एक लड़के को जन्म दिया लेकिन अधिक खून बह जाने के कारण उसकी हालत खराब होने लगी. उसे पास के हेल्थ सेंटर में ले जाना ज़रूरी था"

लेकिन इस काम के लिए कोई भी गांव वाला सामने नहीं आया. गांव वालों की मान्यता है कि डिलीवरी के बाद किसी को भी महिला के आसपास नहीं जाना चाहिए. महिला कोंडारेड्डी जाति की है और उस जाति के कई लोग ऐसा ही मानते हैं.

उन्होंने बताया, "आखिर में हमें एक आदमी को स्ट्रेचर लेकर साथ चलने के लिए पैसे देने पड़े. महिला का पति, वो पत्रकार जिसने जानकारी दी, और इस हेल्पर ने हेल्थ केयर सेंटर तक चलने में मदद की. मैंने मरीज़ को तुरंत ग्लूको़ज़ की ड्रिप लगाई और अपने सीनियर अधिकारियों को इसकी जानकारी दी. उसकी हालत में सुधार हुआ है और वो खतरे से बाहर है."

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माओवादियों का गढ़

ओंकार के मुताबिक शुभामा की ये तीसरी डिलीवरी थी. इसके पहले डिलीवरी के समय उसके एक बच्चे की मौत हो गई थी.

उन्होंने बताया, "ये माओवादियों का गढ़ है. मदद के लिए यहां ना ऐम्बुलेंस है, ना नर्स. मुझे अक्सर ऐसे हालात से गुज़रना पड़ता है, ये मेरे लिए कोई नई घटना नहीं थी. ऐसे हालात में मैं खुद को पहले इंसान और बाद में एक डॉक्टर की तरह देखता हूं."

पूरे घटनाक्रम को याद करते हुए स्थानीय पत्रकार डेबी मैती ने बीबीसी को बताया कि वो अपनी बाइक पहले डॉक्टर के घर पहुंचे और फिर उन्हें लेकर वहां गए जहां डिलीवरी हो रही थी.

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी सोशल मीडिया पर डॉक्टर की तारीफ की. डॉक्टर की तारीफ करते हुए उन्होंने लिखा कि ओंकार पर ओडिशा को गर्व है.

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