भारतीय पादरी फादर टॉम 18 महीनों तक संघर्षग्रस्त यमन में बंधक बने रहे. फादर टॉम को नहीं पता है कि उन्हें अगवा करने वाले कौन थे और उन्होंने फादर को कोई नुक़सान क्यों नहीं पहुंचाया.
फादर टॉम कुछ ही दिन पहले यमन से भारत लौटे हैं. भारत लौटने पर डॉन बॉस्को के प्रांतीय मुख्यालय बेंगलुरु में फादर टॉम का शानदार स्वागत किया गया.
फादर टॉम यहां 27 साल पहले आए थे. जिन लोगों ने फादर टॉम को अगवा किया था उनके बारे उन्हें कुछ भी पता नहीं है कि वो कौन थे और किस धड़े के थे. फादर टॉम ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ”मैं अरबी नहीं जानता हूं. उनमें से एक टूटी-फूटी अंग्रेज़ी बोल रहा था.”
59 साल के फादर टॉम को चार मार्च, 2016 को मिशनरी के एक वृद्धाश्रम से अगवा किया गया था. अपहरणकर्ताओं ने वहां के सुरक्षा गार्डों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. यह यमन में सना का वाक़या है.
उन्होंने बीबीसी से कहा, ”मुझे नहीं पता है कि आख़िर हुआ क्या था. कुछ भी कहना मुश्किल है क्योंकि मैं उसी वक़्त प्रार्थना करके आया था. एक आदमी ने मेरा हाथ पकड़ लिया. इसके बाद मैंने ख़ुद से ही कहा कि मैं भारतीय हूं. जिस कुर्सी पर सुरक्षा गार्ड बैठते थे उस पर उसने मुझे बिठा दिया.”
फादर टॉम ने कहा, ”मुझसे पूछा गया कि क्या मैं मुसलमान हूं. मैंने कहा कि नहीं मैं ईसाई हूं. इसके बाद उन्होंने मुझे एक कार में डाल दिया. वे मुझे कैंपस से बाहर ले गए. कुछ दूर ले जाने के बाद उन लोगों ने मेरी आंखों पर पट्टी बांध दी. इसके बाद उन्होंने मुझे दूसरी गाड़ी में शिफ्ट कर दिया. इसके बाद हम अलग ठिकाने पर पहुंचे.”
आख़िर उस आदमी ने टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में क्या कहा था. इस पर फादर टॉम ने बताया, ”वो कह रहा था कि डरो मत. तुम सुरक्षित हाथों में हो. मुझे उन्होंने बैठा दिया और कुछ खाने को दिया. इन्होंने मुझे एक कमरे में रखा और जब भी मुझे शौचालय जाना होता था तो वे आंखों पर पट्टी बांध देते थे.”
फादर टॉम से उनके अपहरणकर्ता मोबाइल नंबर पूछते थे ताकि किसी से संपर्क कर सकें. फादर टॉम ने कहा, ”उन्हें केवल केरल में अपनी मां का लैंडलाइन नंबर याद था जो उनकी मृत्यु के बाद सेवा में नहीं था. वो हम पर फ़ोन नंबर बताने का दबाव बना रहे थे लेकिन मैंने उनसे कहा कि गॉड की क़सम खाकर बोल रहा हूं कि मुझे कोई भी नंबर याद नहीं है. इसके अलावा उन्होंने मेरे साथ कुछ भी ग़लत नहीं किया.”
फादर टॉम के अगवा किए जाने को लेकर देश में काफ़ी विवाद भी हुआ. दरअसल, एक वीडियो सामने आया था जिसमें उन्हें मार खाते हुए दिखाया गया था. हालांकि फादर टॉम का कहना है, ”यह वीडियो इस तरह से लिया गया था जिसमें लगे कि वे मुझे मार रहे हैं. उन्होंने मुझसे कहा था कि डरने की ज़रूरत नहीं है. वो चाहते थे कि इस वीडियो के बाद दूसरी तरफ़ से प्रतिक्रिया आए. उन्होंने मुझे मारा बिल्कुल नहीं था. जहां तक मेरी समझ है, वो मुझसे पैसे चाहते थे.”
हालांकि जब उन्होंने अगवा किया तब इस तरह के कोई संकेत नहीं मिले थे जिससे पता चल सके कि वो पैसा चाहते हैं. फादर टॉम का कहना है, ”ज़ाहिर है अगर ये शुरू में ही पूछते कि क्या तुम्हारी सरकार मदद करेगी तो मैं कहता कि मुझे नहीं पता है. अगर वो पूछते कि पोप मदद करेंगे तब भी मैं कहता कि नहीं पता है. बिशप? मैंने कहा कि अगर इनमें से कोई कुछ कर सकता है तो वो मेरी जान बचाएंगे.”
फादर टॉम को दवाई और खाना देने से इनकार नहीं किया गया. जब वो बीमार पड़े तो उन्हें इंसुलिन तक मुहैया कराया गया. फादर टॉम ने कहा कि खाने की मात्रा ज़्यादा होती थी इसलिए कम करने का आग्रह किया था. क्या फादर टॉम ने कभी इसके बारे में नहीं सोचा कि अपहरणकर्ताओं ने उन्हें नुक़सान क्यों नहीं पहुंचाया?
इस पर टॉम ने कहा, ”जीज़स ने कहा है कि सिर के सारे बाल गिने हुए हैं. सिर का कोई बाल भी गिरता है तो ईश्वर को पता होता है. मैं चारों तरफ़ गॉड जीज़स से घिरा हूं. उनसे कुछ भी छुपाया नहीं जा सकता है. अगर मुझे प्रताड़ित किया जाता तो उनकी नज़रों से परे नहीं होता. यह ईश्वर की महिमा है कि वो हर दिल को छू लेते हैं. यह प्रार्थना की ताक़त है जो मेरी सलामती के लिए लोग कर रहे थे.”
फादर टॉम का ईश्वर पर भरोसा 10 सितंबर को और बढ़ गया जब अपहरणकर्ताओं में से एक ने कहा कि वो केरल जाने के लिए तैयार रहे हैं. पहले दिन वो लंबी ड्राइव पर रहे. दूसरे दिन एक लंबी यात्रा के बाद उन्हें एक दूसरे समूह की कार के हवाले कर दिया गया. उसके बाद फादर टॉम को भरोसा हो गया कि वो जल्द ही रिहा होने वाले हैं
फादर टॉम ने कहा, ”डॉक्टरों ने मेरी जांच की कि क्या मैं हेलिकॉप्टर से यात्रा करने के लिए फिट हूं या नहीं. अगले दिन आपने देखा कि मैं मस्कट में था.” फादर टॉम भारत आने से पहले मस्कट से पोप का आशीर्वाद लेने वेटिकन चले गए. फादर टॉम की रिहाई के लिए केरल में कोट्टायम ज़िले के रामपुरम गांव में हिन्दू और मुस्लिम सब दुआ कर रहे थे.
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