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बिहार बाढ़: हेलिकॉप्टर को न लाल झंडा दिखा न बीजेपी का झंडा

वो सैकड़ों की उम्मीद का हेलिकॉप्टर था. आकाश में हेलिकॉप्टर देखते ही बिहार के पूर्वी चंपारण में नौरंगिया गांव के लोग एक जगह जमा हो गए. इस आस में कि इससे खाने के पैकेट गिरेंगे और ज़रुरी दवाएं भी. लेकिन, चारों तरफ से बाढ़ के पानी से घिरे इन लोगों की उम्मीदों पर भी पानी […]

वो सैकड़ों की उम्मीद का हेलिकॉप्टर था. आकाश में हेलिकॉप्टर देखते ही बिहार के पूर्वी चंपारण में नौरंगिया गांव के लोग एक जगह जमा हो गए.

इस आस में कि इससे खाने के पैकेट गिरेंगे और ज़रुरी दवाएं भी. लेकिन, चारों तरफ से बाढ़ के पानी से घिरे इन लोगों की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया. हेलिकॉप्टर नीचे तक आया, मंडराया और बिना कुछ गिराए उड़ता हुआ किसी और गांव की तरफ चला गया.

भाजपा का झंडा

वक्त दोपहर के 12 बजे के करीब का था और दिन था सोमवार.

लोगों ने अपने घरों पर लाल झंडे लगा रखे थे. ताकि उसे देखकर हेलिकॉप्टर से राहत सामग्री गिराई जाए. एक घर की छत पर भाजपा का बिल्कुल नया झंडा लगा था.

बाढ़ से घिरे गांव मे बगैर चुनावी मौसम के झंडा क्यों लगाया गया है? मैंने वहां मौजूद अनिल कुमार यादव से ये सवाल पूछा तो उन्होंने बताया कि झंडा लगाने वाले को उम्मीद है कि भाजपा का झंडा देखकर हेलीकॉप्टर से सबसे पहले उनके घर पर ही राहत सामग्री गिरा दी जाएगी.

लेकिन, हेलीकॉप्टर में सवार लोगों ने न तो लाल झंडे को तरज़ीह दी, न भाजपा के झंडे को. राहत का सामान कहीं नहीं गिराया गया.

नाराज़गी

गांव के रमेश कुमार यादव इससे खासे नाराज़ हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि शासन और प्रशासन का कोई भी आदमी उन्हें देखने नहीं आया.

न ही संबंधित अधिकारियों ने उनके फोन उठाए. ऐसे में गांव के लोग आपसी मेल-जोल से अपने खाने का प्रबंध कर रहे हैं.

जिन लोगों के घर टूट या डूब गए हैं, उन लोगों ने पड़ोसियों के यहां शरण ले रखी है.

कयामत वाली है रात, पानी बढ़ा तो….

बिहार से लेकर असम तक जनजीवन अस्त व्यस्त

हादसा

इस गांव के राम अयोध्या साह शौच करने गए थे. तभी अचानक पानी का तेज बहाव आया और वे बह गए. लोगों ने उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. अगले दिन पड़ोस के गांव की बांसवाड़ी में उनकी लाश मिली. अब उनके घरवालों के साथ गांव के लोग भी गमनीन हैं. वे अपने मंझले बेटे के साथ रहते थे.

उनकी बहू रंभा देवी ने बीबीसी से कहा, "चार बजे गेल रहस, बिना बतइले चल गेलन आ दहा गेलन हमर बाबूजी. अब हमनी के के देखी. सब खतम हो गेल हो बाबू." (वे चार बजे गए थे और बाढ़ के पानी में बह गए. अब हमें कौन देखेगा. सबकुछ ख़त्म हो चुका है.)

दिक्कत

गांव के चौराहे पर मेरी मुलाकात हुई रंभू प्रसाद यादव से. उन्होंने बताया कि बाढ़ के पानी में सांप भी बहकर आ रहे हैं. सांप काटने का डर लोगों को सोने नहीं दे रहा. लोग अपने बच्चों को नज़र के सामने रख रहे हैं ताकि उन्हें सांप न काट ले.

दरअसल, मोतिहारी प्रखंड के नौरंगिया पंचायत में सैलाब ने समंदर का नजारा उपस्थित कर दिया है.

इसके तहत आने वाले कई गांव बाढ़ के पानी से घिर गए हैं. सड़क पर आदमी को डुबा देने लायक पानी है. नतीजतन, नौरंगिया, झिटकहियां, बहुआरी, अजगरवा, सिमरहिया आदि गांवों का प्रदेश के दूसरे हिस्से से संपर्क कट चुका है.

कुछ लोग ट्रैक्टर के सहारे आ-जा रहे हैं, जिन्हें बहुत ज़रुरी काम है. बाकी के लोगों को बाढ़ के पानी ने गांव में ही नज़रबंद कर रखा है.

बड़ी आबादी प्रभावित

बिहार में सत्तासीन जद यू के नेता सुनील सिंह ने बताया कि उन्होंने पहले कभी ऐसी बाढ़ नहीं देखी थी.

इस बाढ़ के कारण लखौरा से झिटकहियां और नौरंगिया होकर जाने वाली 13 किलोमीटर लंबी सड़क पूरी तरह टूट गयी है. अब यह कब तक बनेगी, यह बताने वाला कोई नहीं है.

इस बीच बाढ़ के कारण बिहार में मरने वालों की संख्या 304 हो गयी है. आपदा प्रबंधन विभाग के एडिशनल सेक्रेटरी अनिरुद्ध कुमार ने बताया है कि पिछले 24 घंटे को दौरान बिहार के कुछ नए इलाकों में पानी फैला है.

इस कारण एक करोड़ 38 लाख 50 हजार लोग प्रभावित हुए हैं.

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