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8 साल तक आवेदन, फिर मिला ध्यानचंद अवॉर्ड

सुमराई टेटे भारत की पहली ऐसी महिला हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्हें प्रतिष्ठित ध्यानचंद अवॉर्ड दिया जाएगा. लेकिन इस अवॉर्ड तक पहुंचने का सफ़र उनके लिए बिल्कुल आसान नहीं था. खेल पुरस्कारों को लेकर क्यों होता है विवाद? ‘गावस्कर साहब मेरे मसीहा हैं’ टेटे पिछले आठ साल से ध्यानचंद अवॉर्ड के लिए आवेदन कर रही थीं, […]

सुमराई टेटे भारत की पहली ऐसी महिला हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्हें प्रतिष्ठित ध्यानचंद अवॉर्ड दिया जाएगा. लेकिन इस अवॉर्ड तक पहुंचने का सफ़र उनके लिए बिल्कुल आसान नहीं था.

खेल पुरस्कारों को लेकर क्यों होता है विवाद?

‘गावस्कर साहब मेरे मसीहा हैं’

टेटे पिछले आठ साल से ध्यानचंद अवॉर्ड के लिए आवेदन कर रही थीं, लेकिन अब जाकर खेल मंत्रालय की नज़र उनकी दावेदारी पर गई. आखिरकार उन्हें इस सम्मान के लिए चुन लिया गया है और आगामी 29 अगस्त को राष्ट्रपति उन्हें यह अवॉर्ड देंगे. बेशक यह टेटे के लिए बड़ी खुशी का मौका है.

दुख जो दूर हो गया…

बीबीसी हिंदी से बातचीत में सुमराई टेटे ने कहा, ‘मैं बहुत खुश हूं. अर्जुन अवॉर्ड नहीं मिल पाने का दुख अब दूर हो गया है. अफ़सोस सिर्फ़ इस बात का है कि मेरे जैसी उपलब्धि वाले खिलाड़ियों को यह अवॉर्ड दिया गया, लेकिन मेरा नॉमिनेशन तक नहीं हुआ, जबकि 2006 में अंतरराष्ट्रीय स्पर्द्धाओं से अलग होने के बाद मैंने इसके लिए पूरी कोशिश की थी.’

50-100 जुटाने पड़े महिला आइस हॉकी टीम को

तीन साल तक इंतज़ार करने के बाद भी जब मुझे अर्जुन अवॉर्ड नहीं मिला, तब जाकर मैंने ध्यानचंद अवॉर्ड के लिए आवेदन करना शुरू किया. अब आठ साल बाद मुझे इसके लिए चुना गया है तो मेरे लिए यह सेलिब्रेशन का मौका है.

ध्यानचंद अवॉर्ड मिलने की घोषणा के बाद झारखंड सरकार ने टेटे को हॉकी का ब्रांड एंबैस्डर बनाया है. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मंगलवार की दोपहर उन्हें अपने दफ्तर बुलाकर सम्मानित किया और झारखंड हॉकी का ब्रांड एंबैस्डर बनाने की पेशकश की जिसे उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया.

सुमराई टेटे झारखंड के सुदूर सिमडेगा ज़िले की रहने वाली हैं. यहां बोलबा प्रखंड के कासिरा गांव में उनका पैतृक घर है. उनके पिता बरनबास टेटे भी अपने ज़माने में हॉकी खिलाड़ी थे. वो अपने भाई (सुमराई के चाचा) के साथ अपनी ही ज़मीन पर हॉकी की प्रैक्टिस करते थे. उनकी मां संतोषी टेटे भी चाहती थीं कि बेटी हॉकी खेलकर नाम कमाए. दोनों का अपनी बेटी के करियर में बड़ा योगदान है.

केंदु की टहनी से सीखी हॉकी

सुमराई टेटे ने बीबीसी को बताया, ‘गांव में हॉकी के स्टिक नहीं मिलते थे. मेरा जन्म 1979 मे हुआ था. तब हमलोग बांस से बने स्टिक और केंदु की टहनियों से ही हॉकी खेल लिया करते थे. हॉकी का स्टिक तो बहुत बाद मे मेरी ज़िंदगी में आया.’

अपनी चार बहनों में सुमराई दूसरे नंबर पर हैं. उहोंने बताया, ‘जब मैं स्पेन में खेल रही थी, उस वक्त मेरी बहन का निधन हो गया था. आप समझ सकते है कि मुझ पर क्या बीती होगी.’

अंतरराष्ट्रीय करियर

सुमराई टेटे 2002 में मैनेचेस्टर कॉमनव्ल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा थीं. इसे वो अपने करियर की बेहतरीन उपलब्धि मानती हैं. इसके अलावा 2006 मे मेलबर्न में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में उनकी टीम ने रजत पदक जीता था. तब टेटे भारतीय टीम की कप्तान थीं.

इसके अलावा 2002 की चैंपियंस ट्रॉफी (जोहैनिसबर्ग) में कांस्य, 2003 मे सिंगापुर में आयोजित एमआइए हॉकी चैंपियनशिप में स्वर्ण, 2003 (हैदराबाद) के एफ़्रो-एशियाई खेल में स्वर्ण, 2004 के एशिया कप (नई दिल्ली) में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने भारतीय महिला हॉकी के सफ़र को स्वर्णिम बनाया.

जब छूट गई हॉकी

साल 2006 में ऑस्ट्रेलिया में एक अभ्यास मैच के दौरान उन्हें गहरी चोट लगी. वो इस चोट से रिकवर नहीं कर सकीं. इस कारण टेटे को हॉकी खेलना छोड़ना पड़ा. उन्होंने बताया कि तब वो मेलबर्न में कॉमनवेल्थ गेम्स खेलने गई थीं. उसी दौरान उन्हें घुटने में चोट लगी जिसका असर पीठ पर पड़ा. इसकी वजह से वो सेमीफ़ाइनल के बाद के मैच नहीं खेल सकीं.

इस तरह उनके अंतरराष्ट्रीय करियर का अंत हो गया. यह घटना उऩकी ज़िंदगी में बड़ा मोड़ लेकर आई. इसके बाद वे हॉकी कोच की भूमिका में आ गईं. साल 2011-14 के दौरान सुमराई टेटे भारतीय हॉकी टीम की सहायक प्रशिक्षक भी रहीं.

सुमराई टेटे ने महज़ 18 साल की उम्र में रेलवे की नौकरी कर ली. इन दिनों वे हटिया के डीआरएम दफ़्तर में तैनात हैं और रेलवे द्वारा ख़ासतौर पर बनाए गए एस्ट्रोटर्फ़ स्टेडियम में रेलवे के हॉकी खिलाड़ियों को प्रशिक्षण भी देती हैं. ओलंपियन निक्की प्रधान समेत कई खिलाड़ी यहां उनसे प्रशिक्षण लेती हैं.

सुमराई टेटे कहती हैं कि वो 10-12 साल के बच्चों को हॉकी की ट्रेनिंग देना चाहती हैं ताकि वे इंटरनेशनल खिलाड़ी बनकर देश का नाम करें. यही उनका सपना है.

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