।। प्रोफेसर जगमोहन सिंह ।।
भगत सिंह का काम विवेक पैदा करना
यदि आज भगत सिंह को याद करना है, तो उनकी आखिरी तीन बातों को जेहन में रखना जरूरी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘हमें सेहत का ख्याल रखना है, हिम्मत से रहना है और मेहनत से पढ़ना है.’ यह बातें आज की जरूरत है, क्योंकि नयी पीढ़ी में सेहत, हिम्मत और हौसला का अभाव दिखता है.
भगत सिंह का काम क्रांति का बीज बोना था. यही कारण है कि जब भी भारत में किसी प्रकार का संकट आता है, तो भगत सिंह एक आशा की तरह लोगों के बीच खड़े होते हैं. जब भी हम निराशा में गये हैं, भगत सिंह के नाम के साथ एक रोशनी की किरण दिखायी देती है. भगत सिंह एक आशा के दीप हैं. उन्होंने यही कहा कि हम लोगों में एक आशा दिखा सकें, उनके मन में उत्सुकता पैदा कर सकें, तो यह बहुत बड़ी बात होगी. तब और आज की परिस्थिति में काफी अंतर आ गया है. आज का जो पूरा शमां है, वह उत्तेजना पैदा करने वाला है. जबकि भगत सिंह का काम विवेक पैदा करना था. उनकी विचारधारा में उत्तेजना नहीं था. वह किसी भी तरह के हिंसा के खिलाफ थे.
उन्होंने नौजवान सभा में लिखा था कि जोश को कायम रख कर विवेक के साथ कोई काम करना चाहिए. चूंकि भगत सिंह भी युवा थे. वह सारे काम 18 साल के उम्र तक किये हैं. इसीलिए उन्हें खासकर युवाओं के विषय में पता था कि युवाओं के मन में इस उम्र में किस तरह के भाव पैदा होते हैं.
इसीलिए वह हमेशा जोश के साथ विवेक की बात करते रहे. उत्तेजना में आकर किसी काम को करने के वह खिलाफ रहे हैं. भगत सिंह के विचारों से आज सभी को सीख लेने की जरूरत है. वह ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की बात करते थे. उन्होंने कहा, मैं इतना पढ़ूं कि मेरे विचार दलील पर आधारित हों. और मेरे सामने जो दलील रखे जायें उसका जवाब मैं अपने पढ़े हुए ज्ञान के आधार पर दलील के साथ दे पाऊं.’ वह नयी तकनीक के साथ ही दूसरे देशों में होनेवाले हलचलों से वाकिफ थे.
उन्हें उस जमाने में हवाई जहाज चलाना आता था. नये तकनीकों का ज्ञान था. यह सब उन्होंने आंदोलन के साथ ही किया. सभी काम को वह साथ करने में विश्वास करते थे. उन्हें पता था कि जोश के साथ ही विवेक के बल पर ही उस अंगरेजी साम्राज्य का मुकाबला किया जा सकता है. इसलिए उन्होंने विवेक के साथ काम करने पर हमेशा जोड़ दिया. जज्बाती न होते हुए विवेकपूर्ण तर्क के साथ दलील देने में वह विश्वास रखते थे.
अंगरेजों को यह पता था कि यह 18 साल का नौजवान उनके लिए आगे चल कर काफी खतरनाक साबित हो सकता है, इसलिए भगत सिंह के दलीलों को दरकिनार करते हुए उन्हें फांसी की सजा दी गयी. वह कहते थे कि जोश के साथ जब तक विवेक का समावेश नहीं हो, तब तक किसी लक्ष्य का पाना मुश्किल होगा. लेकिन आज लोगों के मन में उत्तेजना ज्यादा है. जोश और विवेक से काम लेने की आदत कम होती जा रही है. भगत सिंह और उनके साथियों का जो सबसे बड़ा योगदान था वह विचारों को लेकर था.
उनके सामने भारत की आजादी की लड़ाई को आगे ले जाने की चुनौती थी. उनके विचारों का जो मूलभाव था वह अपने वसूलों के लिए कुर्बानी देने का था. लेकिन आज इसका सर्वथा अभाव दिखता है. तब देश सर्वोपरि था. लेकिन आज इस भाव का अभाव दिखता हैं. वसूलों की लड़ाई लड़ना आज सबसे बड़ी जरूरत है. शहीद भगत सिंह के विचार किसी कौम के खिलाफ नहीं था. वह साम्राज्यवादी ताकतों के विरोधी थे. उन्होंने किसी कौम के खिलाफ लड़ाई की बात न कह, साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई की बात कही. जब असेंबली में उन्होंने अपने-आप को पेश किया, तो, उन्हें पता था कि इसके आगे लंबी लड़ाई है. उनका जीवन खतरे में था. उन्हें सबकुछ पता था फिर भी उन्होंने देश के लिए अपने जान को दावं पर लगा दिया. उनके सारे विचार सिर्फ दो पंक्तियों में समाहित थे. उनका दो ही नारा था. दो ही विचार थे. ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद.’
दो फरवरी 1931 को वह नेताजी के पास बंगाल गये और वहीं पर उनको पुलिस ने पकड़ा भी. शहीद भगत सिंह ने 1940 में कहा था कि साम्राज्यवाद के साथ किसी भी प्रकार की समझौता नहीं किया जा सकता है. समाजवाद को स्थापित करना भगत सिंह के विचार में था. सभी को बराबर हक मिले यह भगत सिंह के विचारों में था. आजादी के इतने वर्षो बाद भी आज समाज में बराबरी नहीं आयी है.
गैर बराबरी की खाई समाज में बढ़ती जा रही है, इसलिए जरूरत इस बात की है कि जिन आदर्शो, विचारों और मूल्यों को ध्यान में रखते हुए हमारे शहीदों ने देश के लिए कुर्बानी दी है, उनके विचारों को लागू किया जाये. उनके सपनों का भारत बनाया जाये. यदि आज भगत सिंह को याद करना है, तो उनकी आखिरी तीन बातों को याद करना जरूरी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘हमें सेहत का ख्याल रखना है, हिम्मत से रहना है और मेहनत से पढ़ना है.’ यह तीनों बातें आज की जरूरत है. सेहत, हिम्मत और हौसला का अभाव दिखता है. आज लोग इसलिए परेशान है कि उन्होंने जो संकल्प और जो विचार दिये हैं वह फलीभूत नहीं हो रहा है. आज के नौजवान अपना हिम्मत और हौसला बढ़ा सके. मेहनत के साथ अपने काम के प्रति यकीन पैदा कर सके, तो यही भगत सिंह को सच्ची श्रद्घांजलि होगी.
(लेखक भगत सिंह के भतीजे हैं. यह लेख अंजनी कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित है)