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देश में 57 फीसदी एंटीबायोटिक दवाइयां मरीजों के लिए खतरनाक, जानिए क्या कहता है लेटेस्ट सर्वे

भारत में प्रेस्क्राइब की जाने वाली 57% एंटीबायोटिक दवाएं मरीजों में उच्च जीवाणुरोधी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर देती हैं. यह तथ्य एक सरकारी सर्वेक्षण में सामने आया है, जो चिंता का विषय है.

भारत में प्रेस्क्राइब की जाने वाली 57% एंटीबायोटिक दवाएं मरीजों में उच्च जीवाणुरोधी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर देती हैं. यह तथ्य एक सरकारी सर्वेक्षण में सामने आया है, जो चिंता का विषय है. ऐसी दवाइयों का प्रयोग सीमित किए जाने की सलाह दी जाती है.

इस रिपोर्ट के निष्कर्ष के आधार पर कहा गया है कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं को एंटीबायोटिक के इस्तेमाल कम करने के लिए स्टैंडर्ड दिशा निर्देशों और संक्रमण नियंत्रण की नीतियों का पालन करना चाहिए. साथ ही यह भी अनुशंसा की गई है कि अस्पताल एक अच्छी एंटीबायोटिक पॉलिसी विकसित करें, जो एक्सेस ग्रुप की एंटीबायोटिक दवाइयां के उपयोग को उत्साहित करें.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि स्वास्थ्य संस्थानों को आरक्षित समूह की एंटीबायोटिक दवाइयां की खपत को कम से कम रखना और अस्पताल के फार्मेसी के बाहर से मिली आरक्षित समूह की दवाइयां के उपयोग की निगरानी का लक्ष्य रखना चाहिए.

मरीजों में उच्च प्रतिरोधक क्षमता करती है विकसित

सरकारी सर्वे के अनुसार 57% एंटीबायोटिक दवाइयां मरीजों में उच्च प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर देती हैं. भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के द्वारा कराया गया यह पहला मल्टी सेंट्रिक पॉइंट प्रीवीलेंस सर्वे था. अलग-अलग 20 एनएसी नेट साइट्स पर कराए गए इस सर्वे के अनुसार देश में प्रयोग की जाने वाली 50% एंटीबायोटिक दवाइयां में इस तरह की उच्च प्रतिरोध क्षमता विकसित करने की बात पता चली है.

ऐसे तरीके का पहला सर्वे

स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के द्वारा यह पहला मल्टी सेंट्रिक सर्वे कराया गया था. मंगलवार को यह रिपोर्ट जारी कर दी गई. द नेशनल एंटीमाइक्रोबीयल कंजप्शन नेटवर्क में पूरे भारतवर्ष में 35 टर्सियरी केयर इंस्टीट्यूट में एंटीबायोटिक दवाइयों के खपत की निगरानी के बाद यह रिपोर्ट सामने आई है.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा 2017 में जारी एक मंतव्य के मुताबिक वॉच एंटीबायोटिक दवाइयों में आमतौर पर प्रतिरोध की उच्च क्षमता होती है जिसका उपयोग मरीजों में ज्यादातर किया जाता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक ऐसी दवाइयों का प्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए.

सर्वे के आधार पर देश में उपयोग की बन सकती है नीति

एंटीबायोटिक दवाइयां के प्रयोग पर सर्वे के लिए चयनित किए गए संस्थानों में 20 में से सिर्फ आठ संस्थानों में ही एंटीबायोटिक पॉलिसी लागू है. सर्वेक्षण के बाद जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सर्वेक्षण भविष्य के लिए निर्धारित की जाने वाली नीतियों के लिए एक माइलस्टोन आधार के रूप में काम करेगा. साथ ही भारत में एंटीबायोटिक प्रोग्राम्स के मैनेजमेंट के लिए इस सर्वे की महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है. रिपोर्ट के आधार पर एंटीबायोटिक दवाइयों का प्रयोग निर्धारित किया जा सकेगा. इसके आधार पर राष्ट्रीय कार्य योजना बनाई जा सकती है

रिपोर्ट डॉक्टर के साथ साझा करने का सलाह

संस्थाओं को यह भी सलाह दी गई है कि वह इस सर्वे के नतीजे को अपने डॉक्टर के साथ साझा करें ताकि इसे अमल में लाया जा सके. सर्वे से मिला एक चिंताजनक पहलू यह है कि संस्थानों में दो एंटीबायोटिक दवाइयां को मिलाकर उन्हें प्रयोग करने पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है जिन दवाइयां के प्रयोग की अनुशंसा वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा नहीं की गई है उनके खपत पर भी निगरानी की सलाह इस सर्वे के बाद जारी रिपोर्ट के आधार पर दी गई है.

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संस्थान जिन्होंने 95 परसेंट से ज्यादा रोगियों को एंटीबायोटिक की सलाह दी

जिन 20 संस्थानों में यह सर्वे किया गया उनमें पता चला कि इन अस्पतालों में 71.9% मरीजों के इलाज के लिए डॉक्टरों ने एंटीबायोटिक दवा प्रेस्क्राइब की. वहीं इन 20 संस्थानों में से चार संस्थान ऐसे हैं जिन्होंने 95% से ज्यादा मरीजों को एंटीबायोटिक दवा प्रयोग करने का प्रिस्क्रिप्शन दिया. 15 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 20 संस्थानों में यह सर्वे कराया गया था. इनमें 9652 मरीजों को दी जाने वाली दवाइयां पर नजर रखी गई थी.

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