दार्जिलिंग. छठी अनुसूची का मतलब राज्य के भीतर अलग राज्य की व्यवस्था है. यह बात असम राज्य की गोरखा ऑटोनोमस काउंसिल डिमांड कमिटि (जीएसीडीसी) के अध्यक्ष हर्क बहादुर छेत्री ने कही है. छठी अनुसूची को लेकर गोरामुमो ने शुक्रवार से दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजना किया है.
स्थानीय गोरखा दुःख निवारक सम्मेलन भवन में आयोजित सेमिनार के पहले दिन अपना वक्तव्य रखने के लिए असम के हर्क बहादुर छेत्री और भास्कर दहाल विशेष रूप से उपस्थित थे. सेमिनार को सुनने बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे.
सेमिनार का शुभारंभ गोरामुमो के संस्थापक अध्यक्ष स्वर्गीय सुभाष घीसिंग की तसवीर पर माल्यार्पण और दीप जलाने के साथ हुआ. पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष मन घीसिंग, हर्क बहादुर छेत्री, भास्कर दहाल आदि के हाथों यह काम संपन्न हुआ. अतिथियों को खादा अर्पित करने के बाद गोरामुमो के कन्वेनर संदीप लिंबू ने स्वागत भाषण किया. श्री लिम्बू ने कहा कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों में सरकार ने पहले से ही छठी अनुसूची लागू की हुई है. इस कारण वहां के लोग इस बारे में दार्जिलिंग के लोगों से ज्यादा जानते हैं. असम के लोग छठी अनुसूची के बारे में अपना अनुभव बांटने यहां आये हुए हैं.
श्री छेत्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि सरकार ने दार्जिलिंग की जनता को छठी अनुसूचि दे दी थी, लेकिन उस वक्त मांग ज्यादा प्रभावशाली अलग गोरखालैंड की थी. उसके लिए आंदोलन भी किया गया था. यह सही है कि अलग राज्य मिलना छठी अनुसूची से ज्यादा बड़ी चीज है. लेकिन आंदोलन करनेवालों ने छठी अनुसूची से कम क्षमतावाली चीज यानी काउंसिल पर समझौता कर लिया. छठी अनुसूची का मतलब राज्य के भीतर ही अलग राज्य की व्यवस्था है.
उन्होंने कहा कि आज के इंटरनेट के युग में छठी अनुसूची के बारे में जागरूकता के लिए सेमिनार, जनसभा करने की जरूरत लोगों की पढ़ाई-लिखाई पर सवाल खड़ा करती है. यह संवैधानिक प्रावधान है, जिसके बारे में सभी को पता होना चाहिए. फिर भी गोरामुमो ने इतना रुपया-पैसा खर्च करके इस बारे में सेमिनार का आयोजन किया है, तो इससे कुछ तो फायदा होगा ही.