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पड़ोसी देशों में भी खुशबू बिखेर रहे हैं सिलीगुड़ी के गेंदे के फूल

सिलीगुड़ी: काली पूजा, दीपावली, छठ पूजा के इस त्योहारी मौसम में इन दिनों फूलों की खुशबू सीमा लांघ रही है. सिलीगुड़ी के फूल बाजारों से हर रोज लाखों की कीमत के गेंदा व अन्य सजावटी फूल पड़ोसी देश भूटान-नेपाल पहुंच रहे हैं. सिलीगुड़ी से खरीदे गये ये फूल जयगांव होते हुए भूटान और पशुपति-पानीटंकी-गलगलिया के […]

सिलीगुड़ी: काली पूजा, दीपावली, छठ पूजा के इस त्योहारी मौसम में इन दिनों फूलों की खुशबू सीमा लांघ रही है. सिलीगुड़ी के फूल बाजारों से हर रोज लाखों की कीमत के गेंदा व अन्य सजावटी फूल पड़ोसी देश भूटान-नेपाल पहुंच रहे हैं. सिलीगुड़ी से खरीदे गये ये फूल जयगांव होते हुए भूटान और पशुपति-पानीटंकी-गलगलिया के रास्ते नेपाल सीमा पार हो रहे हैं. इन दिनों पड़ोसी देशों से भी फूलों की मांग बढ़ने से सिलीगुड़ी के फूल कारोबारियों की बल्ले-बल्ले हो रखी है. त्योहारों में इस्तेमाल व घर-मकानों व दुकान-प्रतिष्ठानों की सजावट को लेकर और धार्मिक आस्था के मद्देनजर भी शासन-प्रशासन और सीमा पर मुश्तैद सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) व सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) भी लोगों के साथ सख्ती से पेश नहीं आ रही.
अधिक कीमत के बावजूद फूल खरीदना मजबूरी: सिलीगुड़ी के सेवक मोड़ के पास हिलकार्ट रोड में लगे फूलों के अस्थायी बाजार से गेंदा फूलो की लड़ी खरीद रही एक युवती सुसन्ना जो प्रधाननगर के गुरूंगबस्ती इलाके में रहती है,ने कहा कि दीपावली, भैया दूज, ध्योंसी (नेपाली समुदाय का लोकपर्व) हमारे लिए आस्था का त्योहार है. इस दौरान पूजा में फूलों का इस्तेमाल करेंगी और घर को भी अच्छे तरीके से सजावट करेंगी. इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा अभी अत्यधिक कीमत होने के बावजूद महंगे फूल खरीदना मजबूरी है.

वहीं, नेपाल के बिरता मोड़ के एक व्यवसायी विनोद अग्रवाल ने कहा कि वह बीते तीन-चार सालों से दीपावली मनाने के लिए गेंदा, रजनीगंधा व अन्य सजावटी फूलों की सिलीगुड़ी से ही खरीदारी करते हैं. वहां फूल नहीं मिलता. श्री अग्रवाल ने बताया कि दीपावली व नेपाली त्योहारों पर दो-एक वर्षों से अब नेपाल में भी फूल बिकने शुरू हुए हैं. नेपाल में फूल सिलीगुड़ी के बाजारों से ही पहुंचते हैं. सिलीगुड़ी में जो गेंदे की लड़ी 20 रूपये की बिकती है वहीं नेपाल में इसकी कीमत 50 से 70 रूपये है. दूसरी ओर, महानंदा सेतु के नीचे लाल मोहन मौलिक निरंजन घाट पर नेपाल नंबर के एक वाहन पर गेंदा फूल की लड़ी को बोरे में लाद रहे एक व्यक्ति को देखा गया. उस वाहन में पहले से भी गेंदा व अन्य सजावटी फूलों का बोरा लदा हुआ था. वह फूल बिक्रेताओं से फूलों की प्रति चेन की दर से नहीं बल्कि पूरे बोरे की कीमत लगाकर फूलों की खरीदारी कर रहा था. उस व्यक्ति से संपर्क साधने पर कोई भी सवालों का जवाब देना तो दूर की बात उसने अपना नाम, ठिकाना बताने का तैयार नहीं हुआ.उसकी गाड़ी के नंबर प्लेट को देखकर लगा कि वह नेपाल से आया है.

कारोबारी काट रहे चांदी : दीपावली जगमगाहट और सजावट का त्योहार है. यहीं वजह है कि इस त्योहार पर सनातन धर्म के लोग अपने घरों में रोशनी करते हैं और तरह-तरह के सजावटी सामानों के अलावा गेंदा व अन्य सजावटी फूलों से अपने मकान-प्रतिष्ठानों को दुल्हन की तरह सुज्जित करते हैं. दीपावली में फूलों की मांग काफी बढ़ जाती है और इसका फायदा लूटते हैं फूल कारोबारी. फूलों की बढ़ती मांगों के साथ-साथ इन दिनों फूलों की कीमत में भी कई गुणा बढ़ोत्तरी हो जाती है. अन्य दिनों गेंदा फूल पांच से सात रूपये प्रति चेन की दर से बिक्री होती है वहीं, इस त्योहारी मौसम में गेंदा 20-30 रूपये प्रति चेन की दर पर बिक्री हो रही है. फूल बाजारों में यह आग गेंदा-रंजनीगंधा के फूलों के अलावा अन्य सभी सजावटी फूलों में भी लगी हुई है. आस्था के नाम पर मनमाना कीमत वसूल कर फूल कारोबारी इन दिनों चांदी काट रहे हैं.
गुलजार हुआ सिलीगुड़ी का फूल बाजार
इस त्योहारी मौसम में यूं तो हर साल ही सिलीगुड़ी का फूल बाजार गुलजार हो उठता है लेकिन दो-तीन सालों से शहर व आस-पास के क्षेत्रों के अलावा पड़ोसी देश भूटान-नेपाल में भी फूलों की मांग में काफी इजाफा हुआ है.यह सभी सिलीगुड़ी के फूल बाजारों पर ही आश्रित हैं. यही वजह है कि सिलीगुड़ी का स्थायी फूल बाजार हिलकार्ट रोड का वेनस मोड़, अस्पताल रोड, विधान रोड, आलू पट्टी के अलावा दीपावली से ठीक पहले सेवक मोड़, एयरव्यू मोड़ से सटे महानंदा सेतु के नीचे लाल मोहन मौलिक निरंजन घाट, मल्लागुड़ी स्थित कच्चे मालों की मंडी सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में दीपावली से लेकर छठ पूजा तक फूलों का अस्थायी बाजार सज उठता है. सिलीगुड़ी के फूल कारोबारियों के अलावा इन अस्थायी बाजारों में दक्षिण बंगाल के विभिन्न जगहों के भी फूल कारोबारी अपनी अस्थायी दुकानें लगा लेते हैं. यह अस्थायी दुकानें धनतेरस से शुरू होती है जो छठ पूजा तक लगी रहती है. हालांकि दीपावली के बाद फूलों की अस्थायी दुकानों की संख्या में कमी आ जाती है.

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