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चतुर्दशी को पूजी जाती हैं दस सिरोंवाली महाकाली
1930 में ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ शुरू हुई थी यह पूजा मालदा : मालदा शहर की दस सिरों वाली महाकाली की पूजा खास मानी जाती है. यहां अमावस्या को नहीं, बल्कि चतुर्दशी को पूजा होती है. बीते 90 सालों से शहर के गंगबाग इलाके में होने वाली इस पूजा में इसी नियम का पालन हो […]
1930 में ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ शुरू हुई थी यह पूजा
मालदा : मालदा शहर की दस सिरों वाली महाकाली की पूजा खास मानी जाती है. यहां अमावस्या को नहीं, बल्कि चतुर्दशी को पूजा होती है. बीते 90 सालों से शहर के गंगबाग इलाके में होने वाली इस पूजा में इसी नियम का पालन हो रहा है. चतुर्दशी की सुबह जब प्रतिमा लायी जाती है, तो पूरे इलाके में उल्लास की लहर छा जाती है.
अभी मालदा शहर के फूलबाड़ी इलाके के मूर्तिकार अष्टम पाल 10 सिरों वाली इस प्रतिमा का निर्माण करते हैं.इसके बाद दोपहर में पूजा शुरू होती है. पूजा में बकरे की बलि दी जाती है. इलाके के बुजुर्गों का कहना है कि 10 सिरों वाली महाकाली को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं. स्वर्गीय प्रफुल्ल चंद मुखर्जी ने तंत्र साधना के लिए यहां पर पंचमुंडी आसन में मां की मूर्ति की पूजा शुरू की थी. उन्होंने सपने में माता का यह 10 सिरों वाला रूप देखा था.
महाकाली की पूजा में सभी संप्रदायों के लोग शामिल होते हैं. वर्तमान में इस पूजा का संचालन इंगलिश बाजार व्यायाम समिति के क्लब के द्वारा किया जा रहा है. क्लब के सदस्यों ने बताया कि महाकाली की स्थापना एवं पूजा को लेकर अनेक चर्चित घटनाएं हैं. सन 1930 में अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ शक्ति पाने के लिए इलाके के कुछ युवकों ने तंत्र साधना के जरिये यह पूजा शुरू की थी.
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