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सिलीगुड़ी : कहीं एंबुलेंस ही ना बन जाये जान की दुश्मन

विशाल गोस्वामी, सिलीगुड़ी :राज्य स्वास्थ्य विभाग की ओर से चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के लिए कई जरूरी कदम उठाये जा रहे हैं. पहले के मुकाबले वर्तमान में सिलीगुड़ी जिला अस्पताल, उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज तथा विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाज की बेहतर सेवा दी जा रही है. यहां रोगियों की जांच के लिए अत्याधुनिक […]

विशाल गोस्वामी, सिलीगुड़ी :राज्य स्वास्थ्य विभाग की ओर से चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के लिए कई जरूरी कदम उठाये जा रहे हैं. पहले के मुकाबले वर्तमान में सिलीगुड़ी जिला अस्पताल, उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज तथा विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाज की बेहतर सेवा दी जा रही है. यहां रोगियों की जांच के लिए अत्याधुनिक मशीनें भी लगायी गयी है. इसके साथ ही मेडिकल कॉलेज तथा जिला अस्पताल में रोगियों के लिए फेयर प्राइस दवा दुकानें खोली गयी हैं.
इन तमाम सुविधाओं के बाद भी कई ऐसे मामले सामने आते हैं जहां रोगियों की जान जोखिम में पड़ सकती है. इसको लेकर ना तो राज्य स्वास्थ्य विभाग को पता होता है और ना ही रोगी के परिवार वाले इतने जागरूक होते हैं. इसी तरह का मामला एबुलेंस को लेकर है. आरोप है कि आज भी सिलीगुड़ी जिला अस्पताल के सामने खड़ी रहने वाली अधिकांश एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलिंडर तथा फर्स्टएड बॉक्स नहीं है. जरुरत के समय एंबुलेंसों में पैरा मेडिकल स्टाफ भी नहीं होते हैं.
ऐसे में रोगियों की जान हमेशा ही आफत में रहती है. कभी-कभी तो जान बचाने के लिए जिस एंबुलेंस का इस्तेमाल किया जाता है उसी में ऑक्सीजन के अभाव में रोगी की मौत हो जाती है. सिलीगुड़ी जिला अस्पताल के सामने 20 से 25 सरकारी तथा गैर-सरकारी एंबुलेंस खड़े रहते हैं. आरोप है कि इन एंबुलेंसों में अधिकतर के पास ऑक्सीजन सिलेंडर तथा फर्स्टएड बॉक्स नहीं है. अस्पताल इलाज करवाने आये रोगी के एक रिश्तेदार ने बताया कि दो-तीन दिन पहले उनकी मां की अचानक तबीयत खराब हो गई थी.
जिसके बाद उन्होंने फोन कर एंबुलेंस बुलाया. मगर जब एंबुलेंस उनके दरवाजे पर पहुंचा तो उसे देखकर वे हक्के-बक्के रह गये. क्योंकि एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था नहीं थी. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि अधिकतर एंबुलेंस में पैरा मेडिकल स्टाफ नहीं होते हैं. आपातकाल परिस्थिति में चालकों को ही इनकी भूमिका अदा करनी पड़ती है. उनके पास सही ट्रेनिंग नहीं होने के चलते वे इस काम से हिचकिचाते हैं.उन्होंने इस मामले में अस्पताल प्रबंधन का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है.
दूसरी ओर एंबुलेंस के ड्राइवरों से बात करने पर उनलोगों ने बताया कि ऑक्सीजन सिलेंडर को भरवाने में दो से तीन सौ रुपये का खर्च आता है. एक अंतराल के बाद ऑटोमेटिक सिलेंडर में ऑक्सीजन खत्म हो जाता है. इसके अलावे रात को जिस स्थान पर वे अपनी गाड़ियों को खड़ी करते हैं वहां चोरी का भी खतरा रहता है. जिस वजह से अधिकतर चालकों के वाहनों में ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं है.
क्या कहते हैं अस्पताल अधीक्षक
इस समस्या पर सिलीगुड़ी जिला अस्पताल अधीक्षक डॉ. अमिताभ मंडल से बात करने पर उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा जारी किये गये 102 नंबर के एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर तथा हर जरुरी सुविधाएं मौजूद हैं. लेकिन जिन गैर-सरकारी एंबुलेंसों में ये सुविधा नहीं है उन्हें वे सीधे तौर पर कुछ नहीं कह सकते.
मगर फिर भी वे इस मामले पर गौर करेंगे. अगर जरुरत पड़ी तो ऐसे एबुलेंसों को अस्पताल से बाहर निकाल दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि सुबह 8 से रात के 8 बजे तक अगर किसी भी मरीज को मेडिकल कॉलेज में रेफर किया जाता है, तो उसके लिए सभी सुविधाओं से लैस सरकारी एंबुलेंस की व्यवस्था है. इसके अलावा प्राइवेट एंबुलेंस द्वारा भी ये काम करने पर उन्हें खर्च के पैसे दिये जाते हैं, लेकिन कुछ लोग इसका गलत फायदा उठाकर मरीज को नार्सिंग होम में लेकर चले जाते हैं.
वह एंबुलेंसों में ऑक्सीजन सिलेडर तथा फर्स्टएड बॉक्स की समस्या को लेकर जरुरी कदम उठाये जायेंगे.वहीं जिला अस्पताल के रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन डॉ. रुद्रनाथ भट्टाचार्य ने इस मामले में अपनी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा रोगी कल्याण समिति की बैठक में इस पर विचार किया जायेगा

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