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सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट घोटाला-7. टीएस-61 स्टॉल का आवंटन विवादों में

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में दुकानों के आवंटन व हस्तांतरण में घोटाले का एक और नया मामला सामने आया है. वेस्ट बंगाल स्टेट मार्केटिंग बोर्ड के नियमों की धज्जियां उड़ा कर स्टॉल के हस्तांतरण किये जाने के बाद भी पूर्व मालिक उस पर मालिकाना हक जता रहे हैं. डीड पर वर्तमान काबिज द्वारा नन […]

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में दुकानों के आवंटन व हस्तांतरण में घोटाले का एक और नया मामला सामने आया है. वेस्ट बंगाल स्टेट मार्केटिंग बोर्ड के नियमों की धज्जियां उड़ा कर स्टॉल के हस्तांतरण किये जाने के बाद भी पूर्व मालिक उस पर मालिकाना हक जता रहे हैं.

डीड पर वर्तमान काबिज द्वारा नन रिफंडेबल सलामी जमा कराने का जिक्र है, लेकिन वर्तमान काबिज सलामी नहीं बल्कि किराया भी पूर्व मालिक के नाम से जमा कराने का दावा कर रहे हैं. इस घोटाले को तृणमूल के एक गुट ने पहले ही सामने लाने की कोशिश की थी. तब सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट के कुछ दबंगों ने इस मामले को दबाने के लिए पत्रकारों को भी घेरने की कोशिश की.

प्राप्त जानकारी के अनुसार फल-सब्जी यार्ड में 200 वर्गफीट का बोलबम ट्रेडर्स नामक स्टॉल टीएस-61 स्थित है. यह स्टॉल व्यवसायी गणेश सिंह को आवंटित किया गया था. वर्ष 2018 के 1 अक्तूबर को यह टीएस-61 स्टॉल किसी बैजनाथ यादव को हस्तांतरित कर दिया गया. हांलाकि इस हस्तांतरण में भी स्टेट मार्केटिंग बोर्ड के नियमों की धज्जियां उड़ायी गयी. इस हस्तांतरण के डीड में भी स्टेट मार्केटिंग बोर्ड की स्वीकृति या दिशा-निर्देशों का जिक्र नहीं है.
बल्कि पूर्व मालिक व वर्तमान काबिज के बीच की व्यवसायिक साझेदारी को खंडित कर स्टॉल हस्तांतरण की बात कही गयी है. इस डीड पर भी सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट कमेटी (एसआरएमसी) की चेयरपर्सन सह दार्जिलिंग जिला शासक जयशी दासगुप्ता व सचिव देवज्योति सरकार के दस्तखत अंकित हैं, जिसे स्वयं वे दोनों पहले ही फर्जी बता चुके हैं.
इसके अतिरिक्त इस डीड पर वर्तमान काबिज व पट्टेदार की हैसियत से बैजनाथ यादव व गवाह के रूप में एसआरएमसी के क्लर्क समीरन चटर्जी का हस्ताक्षर है. इस डीड के मुताबिक वर्तमान काबिज ने मनी रसीद नंबर 19961 के जरिए स्टॉल हेतु नन रिफंडेबल सलामी भी जमा करा दी गयी. स्टॉल का किराया डेढ़ रूपया प्रति वर्गफीट तय है. दस्तावेज के मुताबिक डीड की एक मूल (ऑरिजनल) प्रति वर्तमान काबिज या नये पट्टेदार बैजनाथ यादव को भी मुहैया करा दी गयी.
जबकि बैजनाथ यादव ने प्रति मिलने से ही इंकार कर दिया है. उसका कहना है कि वर्ष 2015 से गणेश सिंह के साथ उनकी पार्टनरशीप थी. उनका आपस में भाईचारे का रिश्ता है. इसी आधार पर गणेश सिंह ने यह स्टॉल उन्हें दे दिया. डीड अभी तक उनके पास नहीं पहुंची है और न ही उन्होंने सलामी की रकम जमा करायी है. यह सारा काम गणेश सिंह ने किया है. वे सिर्फ इस स्टॉल का किराया गणेश सिंह के नाम से जमा कराते आ रहे हैं.
यहां एक बात और बता दें कि नियमों की धज्जियां उड़ा कर भले ही स्टॉलों का आवंटन या हस्तांतरण हुआ हो लेकिन अधिकांश पट्टेदार किराया जमा करा रहे हैं. टीएस-1 के वर्तमान काबिज या पट्टेदार कुमार प्रसाद उर्फ बम भोला ने भी किराया जमा कराने की बात मानी है. यहां सवाल खड़ा होता है कि नियमों की अनदेखी कर स्टॉलों का आवंटन या हस्तांतरण के बाद किस आधार पर नये नाम से किराया जमा हो रहा है.
घोटाले के इस मामले को बीते वर्ष अक्तूबर महीने में ही सामने लाने की कोशिश सिलीगुड़ी नगर निगम के 46 नंबर वार्ड तृणमूल नेता दिलीप वर्मन, तीन नंबर वार्ड तृणमूल के गोपाल साहा व अन्य ने की थी. बल्कि 30 अक्तूबर 2018 को साढ़े चार करोड़ के घपले का आरोप लगाकर तृणमूल के नेता व समर्थकों ने एसआरएमसी के सचिव देवज्योति सरकार का घेराव भी किया था.
तृणमूल के इस गुट ने रेगुलेटेड मार्केट में आर्थिक घोटाले का आरोप युवा तृणमूल नेता निर्णय राय व व्यवसायी गणेश सिंह सहित कई पर लगाया था. जबकि दोनों ने इस आरोप को सिरे से खारिज भी किया. तब प्रभात खबर सहित विभिन्न समाचार पत्रों में सिंडिकेट राज वाली प्रकाशित खबरों पर आपत्ति जताते हुए 13 नवंबर को कई समाचार पत्रों को लीगल नोटिस भेजकर माफीनामा प्रकाशित करने की मांग की थी. इस लीगल नोटिस में गणेश सिंह ने खुद को टीएस-61 का मालिक बताया.
जबकि यह स्टॉल 41 दिन पहले ही बैजनाथ यादव के नाम पर हस्तांतरित या आवंटित हो चुकी थी. इस संबंध में व्यवसायी गणेश सिंह से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि स्टॉल आवंटित तो हुआ लेकिन पिछला काफी किराया उनके नाम पर बकाया था. किराया जमा करने का नोटिस भी एसआरएमसी उन्हीं को देती थी. इस आधार पर उन्होंने खुद को उस स्टॉल का मालिक बताया था.

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