सिलीगुड़ी. राजस्थान में लव जेहाद के नाम पर मालदा के एक मजदूर को जिंदा जला कर मार देने के मामले की गूंज पूरे पश्चिम बंगाल के साथ ही सिलीगुड़ी में भी सुनाई पड़ रही है. मालदा में मृतक मजदूर के घर नेताओं का आना-जाना जारी है. वहीं सिलीगुड़ी में इस हत्याकांड के खिलाफ भाजपा विरोधी विभिन्न राजनीतिक दल लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
माकपा तथा तृणमूल कांग्रेस की ओर से पहले ही इस मामले को लेकर सिलीगुड़ी में धिक्कार रैली निकाली गयी थी. अब माकपा समर्थित ट्रेड यूनियन सीटू के अधीन दार्जिलिंग जिला निर्माण कर्मी यूनियन ने भी मालदा के मजदूर को सरेआम जलाकर मार डालने की घटना की कड़ी निंदा की है. इतना ही नहीं, इस संगठन की ओर से आज एक विरोध रैली निकाली गयी और राज्य के गृह सचिव को एक ज्ञापन दिया गया. संगठन के सदस्य सोमवार को सिलीगुड़ी के पुलिस कमिश्नर से भी मिलने गये. यहां इन लोगों ने पुलिस कमिश्नर के माध्यम से राज्य के गृह सचिव को ज्ञापन भेजा है.
संगठन के अध्यक्ष बबेंदु आचार्य तथा सचिव बिमल पाल ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए दूसरे राज्यों में काम करने वाले पश्चिम बंगाल के श्रमिकों की सुरक्षा की मांग की है. ज्ञापन देने के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए संगठन के सचिव बिमल पाल ने कहा है कि इस प्रकार की घटना काफी भयावह है. पश्चिम बंगाल के निर्माण श्रमिक देश के विभिन्न राज्यों में जाकर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं. मालदा का 45 वर्षीय मोहम्मद अफराजुल भी पिछले 20 साल से राजस्थान में निर्माण श्रमिक का काम कर रहा था. वह राजस्थान में भेदभाव की राजनीति की बलि चढ़ गया.
उन्होंने आगे कहा कि जो भी इस तरह के नफरत फैलाने वाली मानसिकता के साथ हत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दे रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. दरअसल कुछ लोग समाज को बांटने की साजिश रच रहे हैं. नफरत की राजनीति के कारण जहां मोहम्मद अफराजुल जैसे मजदूर की जान को खतरा है, वहीं दूसरी ओर समाज में भी नफरत का माहौल बना हुआ है.
इसमें आरोप लगाया गया है कि कुछ साम्प्रदायिक व उग्रवादी हिंदू संगठन अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश में एक खास वर्ग के खिलाफ घृणा का माहौल फैला रहे हैं. यह हत्या उसी राजनीति की अभिव्यक्ति है. संगठन ने पीड़ित परिवार को मुआवजा देकर उनके जले जख्म को भरने का एक राजनीतिक प्रयास बताते हुए इसकी आलोचना की है. संगठन ने राज्य सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा है कि प्रदेश में हो रही इस तरह की आपराधिक घटनाओं के शिकार लोगों के परिजनों को मुआवजा देने की प्रवृत्ति की भी आलोचना की जानी चाहिए. कहा गया है कि राज्य सरकार की विफलता है कि यहां के मजदूरों को काम की तलाश में अन्य राज्यों में जाना पड़ता है.
यदि ऐसा नहीं होता, तो अफराजुल के साथ ऐसी घटना की नौबत ही नहीं आती. बयान में कहा गया है कि राज्य सरकार भी नाव डूबने वाले हादसों से लेकर जहरीली शराब से होने वाली मौतों के लिए मुआवजा देने की जो परिपाटी शुरू की है, वह आम जनता की बुनियादी समस्याओं की ओर से ध्यान को बंटाने का प्रयास है. अगर राज्य सरकार अपने यहां रोजगार का सृजन कर इन मजदूरों के पलायन पर रोक लगाने का प्रयास करती, तो वह स्वागतयोग्य होता. संगठन मुआवजे की राजनीति की तीव्र निंदा करता है.