मालदा. दो साल पहले टेंडर जारी होने तथा वर्क ऑर्डर के आधार पर ही वर्तमान में भी उसी संस्था से माल खरीदने का काम जारी है. यह आरोप गौड़बंग विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा अतिरिक्त कार्यकारी रजिस्ट्रार सुदीप्त शील पर लगा है. यह मामला सामने आने के बाद विश्वविद्यालय के अंदर ही खलबली मची हुई है. कहा जा रहा है कि वाइस चांसलर गोपाल चंद्र मिश्र के इस्तीफे के बाद से ही यहां एक पर एक घोटाले के मामले सामने आ रहे हैं.
विश्वविद्यालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार किसी भी विभाग के लिए आवश्यक सामग्री खरीदने से पहले विश्वविद्यालय के वित्त कमेटी की मंजूरी जरूरी है, लेकिन यहां बगैर किसी मंजूरी के ही माल खरीदे जा रहे हैं. एक लाख रुपये से कम बिल के आधार पर आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी की जा रही है. बॉटनी लोबेरेट्री के लिए कई प्रकार के केमिकल भी वित्त कमेटी की मंजूरी के बगैर ही खरीद लिये गये.
विश्वविद्यालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 में बॉटनी लेबोरेट्री के लिए चार लाख रुपये का वर्क ऑर्डर जारी हुआ था. इसके बाद से लेकर अब तक कोई नया वर्क ऑर्डर जारी नहीं हुआ है. सूत्रों ने आगे बताया कि एक लाख रुपये से कम के बिल के आधार पर इस घोटाले को अंजाम दिया गया है. यहां उल्लेखनीय है कि आरोपी सुदीप्त शील गौड़बंग विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग के प्रधान भी हैं. इस मामले में जब उनसे बातचीत की गयी, तो उन्होंने पूरे आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि खरीद में नियमों की अनदेखी हुई है या नहीं, इसकी जांच की जिम्मेदारी वित्त कमेटी की है. पहले कभी भी वित्त कमेटी ने इसका उल्लेख नहीं किया. रजिस्ट्रार की अनुपस्थिति में वाइस चांसलर गोपाल चंद्र मिश्र को बता कर लेबोरेट्री के लिए आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी की गयी है. उन्होंने आगे कहा कि गौड़बंग विश्वविद्यालय के अधीन बॉटनी विभाग में कुल छह लेबोरेट्री है. इसके अलावा एक कॉमन लेबोरेट्री भी है. एसिड सहित विभिन्न प्रयोग सामग्रियों की नियमित खरीदारी करनी पड़ती है. अब इसमें नियमों की अनदेखी हुई है या नहीं, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है.
निर्धारित बजट की अनदेखी
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बॉटनी विभाग के लिए आवश्यक सामग्री खरीदने हेतु गौड़बंग विश्वविद्यालय के वित्त कमेटी ने छह लाख रुपये का बजट निर्धारित किया है. आरोप है कि इस मंजूरी की अनदेखी करते हुए वर्ष 2016-17 के दौरान 11 लाख रुपये की सामग्री खरीदी गयी. इसकी आपूर्ति बरहमपुर स्थित एक संस्था किसलय इंटरप्राइज ने की है. इसका खुलासा होते ही गौड़बंग विश्वविद्यालय के वित्त तथा लेखा अधिकारी विनय हालदार ने इस संस्था के बिल को रोक दिया है. उन्होंने कहा है कि आवश्यक दस्तावेज तथा कागजात नहीं होने के कारण ही बिल का भुगतान नहीं किया गया है. दो साल पुराने वर्क ऑर्डर के आधार पर वस्तुओं की आपूर्ति की गयी है. नियमानुसार टेंडर और वर्क ऑर्डर सिर्फ एक साल के लिए ही वैध होता है.