सिलीगुड़ी. महानंदा नदी को लेकर नेशनल ग्रीन ट्राइबूनल (एनजीटी) के आदेश के बाद छठ पूजा के आयोजन को लेकर अभी भी सिलीगुड़ी में उहाकोप की स्थिति बनी हुई है. हांलाकि पर्यटनमंत्री गौतम देव ने विभिन्न पूजा कमिटियों के साथ बैठक कर छठ घाट प्रशासन द्वारा बनाने की बात कही थी. लेकिन अभी भी समस्या का हल नहीं हुआ है.
कल की बैठक में जो फैसला हुआ था उसके अनुसार संतोषी नगर से साढ़े तीन किलोमीटर तक छठ घाट बनाये जायेगे. माना जाता है कि इसी छठ घाच पर लाखों की भीड़ उमड़ती है. कल ही पुलिस तथा प्रशासन के अधिकारियों ने वार्ड नंबर चार और पांच स्थित विभिन्न छठ घाटों का दौरा किया था. अब समस्या यह है कि सिलीगुड़ी शहर में महानंदा नदी के किनारे और भी कई वार्डों के लोग छठ पूजा करते हैं. वार्ड नंबर 46 के गीता देवी छठ घाट से लेकर वार्ड नंबर चार के नौका घाट तक लगभग 55 छठ पूजा कमिटियों द्वारा छठ घाट बनाये जाते हैं. जिसमें हजारों छठ ब्रती द्वारा पूजा की जाती है.
वार्ड नंबर चार तथा पांच को छोड़कर अन्य वार्डों के छठ ब्रतियों में उहाकोप की स्थिति बनी हुयी है. इनके समझ में यह नहीं आ रहा है कि इन वार्डों में महानंदा नदी के किनारे छठ घाटों को निर्माण प्रशासन की ओर से होगा या छठ ब्रती एवं पूजा कमिटियों की ओर घाटे बनेंगी. प्रशासन के इसी निर्णय को लेकर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने मोरचा खोल दिया है. शुक्रवार को भी कई सामाजिक संगठनों की ओर से विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गये. सामाजिक संगठन के सदस्य एनजीटी के आदेश को तो सही ठहराते हैं लेकिन प्रशासन की भूमिका को लेकर संतुष्ट नहीं हैं. सामाजिक संगठन परमार्थ ने राज्य सरकार पर एनजीटी को गुमराह करने का आरोप लगाया है. संगठन के प्रवक्ता अजय कुमार झा ने कहा है कि राज्य सरकार की ओर से एनजीटी को गलत जानकारी दी गयी.
और उसी को आधार मानकर एनजीटी ने छठ पूजा को लेकर कई दिशानिर्देश जारी किए. एनजीटी की मंशा छठ पूजा को रोकने नहीं बल्कि महानंदा नदी की भौगोलिक स्थिति बनाये रखने की है. श्री झा ने कहा है कि राज्य सरकार ने एनजीटी को महानंदा नदी की गहराई 25 से 35 फूट होने की जानकारी दी है. जबकि महानंदा नदी की गहराई इतनी नहीं है. राज्य सरकार द्वारा गलत जानकारी दिए जाने की वजह से ही इस तरह से असमंजस की स्थिति बनी हुयी है.
दूसरी ओर वरिष्ठ नागरिक सेवा समिति ने इस मामले को लेकर सिलीगुड़ी के एसडीओ को एक ज्ञापन दिया है. संगठन की ओर से कहा गयाहै कि छठ पूजा सूर्य भगवान की पूजा है,जिसे छठ व्रतधारी पानी में खड़ा होकर करते या करती हैं. पानी नहीं तो यह पूजा भी नहीं, ऐसा माना जाता है. पानी में खड़ा रहने का एक वैज्ञानिक कारण यह भी है कि पानी से सूर्य का प्रतिबिंब उनको ऊर्जा और तेज प्रदान कर सके और सूर्य का अर्घ्य भी इसी कारण पानी में खड़ा होकर दिया जाता है.संगठन के सचिव राजेन्द्र प्रसाद ने ज्ञापन में कहा है कि यदि नदी पर प्रतिबंध लग जायेगा तो व्रतधारी कहां जायेंगे.
वास्तव में नदी को गंदा जितनी आम जनता नहीं करती है, उससे कई गुना अधिक सरकार करती है. जैसे नाले का गंदा पानी, कल-कारखानों का जहरीला पानी, रास्ते का कूड़ा-कचरा आदि किसकी आंखों के सामने डाला जाता है,यह सब जानते हैं. यदि सरकार इस पर रोक लगाती तो नदी का जल कभी भी प्रदूषित नहीं होता. इसके विपरीत छठ व्रतधारियों के माध्यम से 364 दिनों तक गंदी रहने वाली इस नदी को छठ पूजा में इतना साफ-सुथरा कर दिया जाता है कि सभी लोग वहां अच्छी तरह विचरण करने लगते हैं. श्री प्रसाद ने एसडीओ से इस समस्या के समाधान की मांग की है.