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जीटीए के माध्यम से त्रिपक्षीय वार्ता संभव : विनय तमांग

दार्जिलिंग. गोजमुमो के बागी नेता तथा जीटीए प्रशासनिक बोर्ड के मनोनीत चेयरमैन विनय तमांग का कहना है कि जीटीए बोर्ड के माध्यम से त्रिपक्षीय वार्ता संभव है. श्री तमांग ने अपने आवास पर पत्रकारों से कहा कि मैं और अनित थापा चाय बगान श्रमिकों के पूजा बोनस को लेकर बात करने कोलकाता गये थे, जहां […]

दार्जिलिंग. गोजमुमो के बागी नेता तथा जीटीए प्रशासनिक बोर्ड के मनोनीत चेयरमैन विनय तमांग का कहना है कि जीटीए बोर्ड के माध्यम से त्रिपक्षीय वार्ता संभव है. श्री तमांग ने अपने आवास पर पत्रकारों से कहा कि मैं और अनित थापा चाय बगान श्रमिकों के पूजा बोनस को लेकर बात करने कोलकाता गये थे, जहां से हम दिल्ली रवाना हुए. दिल्ली में हुई बातचीत का ब्योरा हम देने वाले ही थे कि बुधवार को नवान्न से फोन आया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जीटीए के प्रशासनिक बोर्ड की घोषणा की है.
श्री तमांग ने बताया कि जीटीए एक्ट की धारा 17 के तहत जीटीए कार्यकाल पूरा होने पर बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन गठन करने का प्रावधान है, जिसका कार्यकाल छह महीना से दो साल तक रह सकता है. उन्होंने कहा कि जीटीए समझौते में गोरखालैंड की मांग यथावत है. त्रिपक्षीय वार्ता को लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं. ऐसे में हम लोगों ने वार्ता का रास्ता खोला है. अभी तक राज्य सरकार के साथ दो चरण में वार्ता हो चुकी है. तीसरे चरण में हम लोग त्रिपक्षीय वार्ता की मांग करेंगे.
श्री तमांग ने कहा, जो लोग प्रशासनिक बोर्ड का विरोध कर रहे हैं, उन लोगों को जीटीए एक्ट पढ़ना चाहिए. बातचीत के क्रम में उन्होंने कहा कि हमलोगों ने हमेशा गोरखालैंड की मांग उठायी है और आगे भी उठाते रहेंगे.
जनता के दरबार में विनय-अनित को देंगे सजा : गुरुंग
दार्जिलिंग. विनय तमांग और अनित थापा को दगाबाज बताते हुए उन्हें जनता के दरबार में सजा देने की घोषणा गोजमुमो प्रमुख विमल गुरुंग ने की है. गत बुधवार को राज्य सरकार ने गोजमुमो से बहिष्कृत नेता विनय तमांग के नेतृत्व में जीटीए को बहाल किया है. मुख्यमंत्री के इस कदम से पहाड़ की राजनीति में उबाल सा आ गया है.
गुरुवार को एक वीडियो जारी करके विमल गुरुंग ने धमकी भरे अंदाज में कहा है कि विनय तमांग और अनित थापा ने पहाड़ की जनता को दगा दिया है और उन्हें पहाड़ की जनता ही सजा देगी. अलग राज्य का आंदोलन केवल विनय और अनित की लड़ाई नहीं है, बल्कि पहाड़वासियों के अस्तित्व व पहचान की लड़ाई है.

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