एक दिन दवा नहीं देने पर उसकी आंखों के सामने अंधकार छा जाता है. बताया जाता है कि यह बीमारी आम नहीं है. सायन ने बताया कि सबसे बड़ी परेशानी उसके लिए ये है कि वह अधिक देर तक एक साथ नहीं पढ़ सकता है. घर पर एक शिक्षक उसे बहुत धैर्य के साथ पढ़ाते थे. इसके अलावा वह मां आैर पिता से पढ़ाई में मदद लेता था. स्कूल के शिक्षकों ने भी उसे बहुत हिम्मत दी. यही कारण है कि उसने पूरे राज्य में आठवां स्थान प्राप्त कर अपने स्कूल, परिवार व गांव का नाम रोशन किया है.
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आंखों में गंभीर बीमारी, फिर भी बाजी मारी
हावड़ा: छोटी सी उम्र में दो-दो बार आंखों के ऑपरेशन व कोरनीजेनटल ग्लूकोमा से पीड़ित होने के बावजूद सायन की पढ़ाई के प्रति रुचि बिल्कुल कम नहीं हुई. पूरे राज्य में उसने आठवां स्थान प्राप्त किया है. बागनान के डीएमबी उच्च विद्यालय के छात्र मोहम्मद सायन सफिक को गणित सहित तीन विषयों में 100 नंबर […]
हावड़ा: छोटी सी उम्र में दो-दो बार आंखों के ऑपरेशन व कोरनीजेनटल ग्लूकोमा से पीड़ित होने के बावजूद सायन की पढ़ाई के प्रति रुचि बिल्कुल कम नहीं हुई. पूरे राज्य में उसने आठवां स्थान प्राप्त किया है. बागनान के डीएमबी उच्च विद्यालय के छात्र मोहम्मद सायन सफिक को गणित सहित तीन विषयों में 100 नंबर मिले हैं, जबकि बाकी के विषयों में उसने 90 से अधिक प्राप्त किया है. सायन के पिता मोहम्मद रफिक सरकारी कर्मचारी हैं. मां शिक्षिका हैं.
उन्होंने बताया कि बचपन से ही सायन की दोनों आंखें कमजोर थीं. वह एक गंभीर बीमारी से पीड़ित था. दो बार ऑपरेशन करने के बाद भी विशेष लाभ नहीं हुआ. पहला ऑपरेशन वर्ष 2003 में व दूसरा ऑपरेशन 2010 में हुआ. दो-दो बार आंखों का ऑपरेशन होने के बाद आंखों की रोशनी में कोई सुधार नहीं आया. सायन को रोजाना 10 तरह के आइ ड्रोप आंखों में देने पड़ते हैं.
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