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पेट्रोल पंपों में 10 रुपये के सिक्कों के ढेर

कोलकाता. महानगर के पेट्रोल पंप मालिकों को नोटबंदी के बाद एक नयी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. लगभग एक लाख रुपये से अधिक के दस रुपये के सिक्के महानगर के पेट्रोल पंपों में जमा हो गये हैं, पर न तो उन्हें ग्राहक लेने के लिए तैयार है आैर न ही बैंक जमा करने […]

कोलकाता. महानगर के पेट्रोल पंप मालिकों को नोटबंदी के बाद एक नयी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. लगभग एक लाख रुपये से अधिक के दस रुपये के सिक्के महानगर के पेट्रोल पंपों में जमा हो गये हैं, पर न तो उन्हें ग्राहक लेने के लिए तैयार है आैर न ही बैंक जमा करने के लिए राजी हो रहे हैं.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआइ) ने हालांकि कई बार यह स्पष्ट कर दिया है कि बाजार में चल रहे दस रुपये के सिक्के उसी के द्वारा जारी किये गये हैं, पर अभी भी लोगों के दिलों में भ्रम बना हुआ है, जिसका उदाहरण पेट्रोल पंपों में देखने को मिल रहा है. कोलकाता के पेट्रोल पंपों के मालिकों का कहना है कि हम लोग तो ग्राहकों से दस रुपये का सिक्क ले लेते हैं, पर अधिकतर ग्राहक दस रुपये का सिक्का लेने से इनकार कर देते हैं. ग्राहकों के इनकार के कारण पेट्रोल पंपों के पास लगभग एक लाख रुपये के सिक्के जमा हो चुके हैं. पंप मालिक यह भी आरोप लगा रहे हैं कि बैंक भी दस रुपये के सिक्के वापस लौटा दे रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी परेशानी बढ़ रही है. इस स्थिति में पंप मालिकों ने आरबीआइ से हस्तक्षेप की मांग की है.

आरबीआइ ने जुलाई 2011 में रूपि (रुपया) चिंह वाले दस रुपये के इन सिक्कों को जारी किया था. वर्तमान में बाजार में दो तरह के दस रुपये के सिक्के हैं. एक में रुपि का चिह्न है तो एक बगैर रुपि चिह्न वाला है. इसे लेकर लोगों में भ्रम उत्पन्न हो गया था. आम लोगों को लगने लगा था कि जाली सिक्के बाजार में आ गये हैं. असली व नकली का फर्क नहीं जानने के कारण लोगों ने दस रुपये के सिक्कों का लेन-देन पूरी तरह बंद कर दिया था. इस भ्रम को खत्म करने के लिए आरबीआइ ने यह घोषणा की थी कि सभी तरह के सिक्के असली हैं. दस रुपये का सिक्का लेने से इनकार करनेवालों के खिलाफ फौजदारी मामला तक दायर करने की बात कही गयी थी. इसके बाद स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ, पर अभी भी काफी ऐसे लोग हैं, जो दस रुपये का सिक्का नहीं लेते हैं. आम लोगों की तो बात छोड़ें, आरबीआइ की निर्देशिका के बावजूद बैंक भी अक्सर सिक्के नहीं लेते हैं, जिससे भ्रम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है.

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