पं. शास्त्री ने कहा कि 84 लाख योनियों में भटकने के बाद प्रभु की असीम कृपा से हमें यह मानव तन मिला है, जिसका सदुपयोग सत्कर्म और परोपकार के माध्यम से किया जा सकता है लेकिन इस मायावी संसार में आकर हम जो असत्य है उसे सत्य और जो सत्य है उसे असत्य मान बैठे हैं.
उन्होंने कहा कि संसार के सारे रिश्ते-नाते झूठे हैं केवल एक परमात्मा का नाम सत्य है जो हमारे साथ रहता है. कलियुग में भगवत नाम के सिवा भव तरने का कोई दूसरा उपाय नहीं है. अतः हमें हर पल हर परिस्थिति में भगवत नाम का सुमिरन करते रहना चाहिये. हमें मृत्यु से भयभीत नहीं रहना चाहिये क्योंकि जन्म और मृत्यु परमात्मा के हाथों में है. कब कहां कैसे कौन जन्मेगा और मृत्यु को प्राप्त होगा यह बताना किसी के बस की बात नहीं है. उन्होंने सती अनुसुईया की कथा पर प्रवचन करते हुए कहा कि स्त्री के लिये पतिव्रता होना ही सबसे बड़ा धर्म है. आज कथा प्रसंग के अनुसार शिव-पार्वती विवाह की झांकी प्रस्तुत की गयी. शिव विवाह के दौरान सुमधुर भजनों पर उपस्थित श्रद्धालु झूम उठे. प्रचार प्रभारी सुरेश कुमार भुवालका ने बताया कि तीसरे दिन 10 नवम्बर को पं. शास्त्री जड़ भरत अजामिल व प्रहलाद चरित्र पर प्रवचन करेंगे. यह आयोजन 14 नवंबर तक चलेगा.