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संतानों ने संभाली हेवीवेट नेताआें की चुनावी कमान

कोलकाता: हेवीवेट नेता होने का जहां यह फायदा है कि लोगों के बीच परिचय स्थापित करने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती हैं, वहीं नुक्सान यह है कि चुनाव के समय उन्हें अपने क्षेत्र के साथ-साथ अपनी पार्टी के अन्य उम्मीदवारों के क्षेत्र में भी जाकर चुनाव प्रचार करना पड़ता है. ऐसे में उनके लिए […]

कोलकाता: हेवीवेट नेता होने का जहां यह फायदा है कि लोगों के बीच परिचय स्थापित करने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती हैं, वहीं नुक्सान यह है कि चुनाव के समय उन्हें अपने क्षेत्र के साथ-साथ अपनी पार्टी के अन्य उम्मीदवारों के क्षेत्र में भी जाकर चुनाव प्रचार करना पड़ता है. ऐसे में उनके लिए अपने क्षेत्र में अधिक समय दे पाना संभव नहीं हो पाता है. इस स्थिति में स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताआें के साथ-साथ परिजन उन हेवीवेट नेताआें के तारणहार के रूप में सामने आते हैं.
चार अप्रैल से शुरू होने जा रहे पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में शामिल विभिन्न दलों के कई हेवीवेट नेता इस स्थिति का सामना कर रहे हैं. इन हालात में उन नेताआें की संतानों ने अपने पिता की चुनावी जंग की कमान संभाल ली है. इनमें पहला नाम तृणमूल के हेवीवेट नेता व राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की बेटी सोहिनी चटर्जी का है. सोहिनी के लिए अच्छी बात यह है कि उन्होंने 2011 विधानसभा चुनाव में ही पिता का हाथ बंटाना शुरू कर दिया था. उस तजुर्बे को वह इस बार ज्यादा अच्छी तरह से काम में लगा रही हैं. सोहिनी न केवल अपने पिता का भाषण ठीक करती हैं, बल्कि मतदाताआें को रिझाने के लिए वह नये नारे भी तैयार करती हैं. पिता के फेसबुक अकाउंट को अपडेट करना भी उन्हीं की जिम्मेदारी है. तृणमूल की एक आैर हेवीवेट नेता व मंत्री डॉ शशि पांजा की बेटी पूजा पांजा भी अपनी मां को दोबारा कामयाब बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही हैं.

सोहिनी की तरह पूजा भी 2011 विधानसभा चुनाव में ही मैदान में कूद पड़ी थीं. वह भी अन्य नेता संतानों की तरह परदे के पीछे से ही काम करना पसंद करती हैं. पूजा अपनी मां के लिए फेसबुक पर प्रचार अभियान चला रही हैं. चौरंगी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के हेवीवेट नेता सोमेन मित्रा के बेटे रोहन मित्रा भी अपने पिता को कामयाब बनाने के लिए जमकर मेहनत कर रहे हैं. एक मल्टीनेशनल कंपनी की बेहतरीन नौकरी छोड़ कर रोहन ने पूरी तरह पिता की चुनावी कमान संभाल रखी है.

युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ रोहन की खूब पटती है आैर वह लगातार उनके साथ बैठक कर रणनीति तय करने में व्यस्त रहते हैं. माकपा सांसद मो सलीम भले ही विधानसभा चुनाव के दंगल में नहीं हैं, लेकिन वाम मोरचा उम्मीदवारों को कामयाब बनाने के लिए वह दिन-रात काम कर रहे हैं. उनके इस काम में खड़गपुर आइआइटी में पीएचडी कर रहे उनके बड़े बेटे रसेल अजीज भी हाथ बंटा रहे हैं. रसेल वाम मोरचा के आइटी वाररुम के साथ संपर्क में हैं आैर जरूरत के अनुसार हरसंभव मदद उपलब्ध करा रहे हैं.

इन दिनों सुर्खियों में छाये दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रा आत्रेयी घोष विख्यात वकील व कांग्रेस नेता अरुणाभ घोष की बेटी हैं. आत्रेयी ने विधाननगर से कांग्रेस के टिकट पर किस्मत आजमा रहे अपने पिता अरुणाभ घोष के वाररुम को पूरी तरह संभाल रखा है.

वह भी सोशल मीडिया के द्वारा लोगों से संपर्क बना कर अपने पिता को कामयाब बनाने का अभियान चला रही हैं. पिता के फेसबुक अकाउंट को अपडेट रखना एवं व्हाट्सएेप पर प्रचार चलाना आत्रेयी की ही जिम्मेदारी है. राजनीति की इस बिसात में तृणमूल के शोभनदेव चट्टाेपाध्याय के बेटे सप्तर्षि भी पीछे नहीं हैं. वह भी अपने पिता के साथ लोगों के घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं. मजे की बात यह है कि सोमेन मित्रा के बेटे रोहन के अलावा इनमें से कोई भी राजनीति को अपना पेशा बनाने की इच्छा नहीं रखता है. अपने-अपने पिता को कामयाब बनाने के लिए ये लोग चुनावी जंग का हिस्सा बन गये हैं. चुनाव खत्म होते ही इन हेवीवेट नेताआें के बच्चे अपने-अपने फील्ड में वापस लौट जायेंगे.

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