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दिवंगत अशोक घोष को दी गयी अंतिम विदाई

कोलकाता. देश की आजादी की लड़ाई में योगदान व बं‍गाल में पहली बार वाम सरकार बनाने में अहम भूमिका निभानेवाले फारवर्ड ब्लॉक के दिवंगत नेता अशोक घोष को रविवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी. पुरुलिया के सुइसा गांव स्थित नेताजी आश्रम में उनके शव को दफनाया गया. राज्य में वाम मोरचा […]

कोलकाता. देश की आजादी की लड़ाई में योगदान व बं‍गाल में पहली बार वाम सरकार बनाने में अहम भूमिका निभानेवाले फारवर्ड ब्लॉक के दिवंगत नेता अशोक घोष को रविवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी. पुरुलिया के सुइसा गांव स्थित नेताजी आश्रम में उनके शव को दफनाया गया.

राज्य में वाम मोरचा के चेयरमैन विमान बसु, श्रम मंत्री मलय घटक, फारवर्ड ब्लॉक नेता देवव्रत विश्वास, वरुण मुखर्जी, देवव्रत राय, नरेन दे, जयंत राय, नरेन चटर्जी, जीवन प्रकाश साहा, युवा लीग के अब्दुल रौफ, फरीद मोल्ला, सुदीप बनर्जी, अमोल देव राय, बड़ाबाजार युवा लीग के नेता श्रीकांत सोनकर, पिंटू राय, रवि सोनकर, संजय गुप्ता, दीपंकर विश्वास समेत अन्य कई राजनीतिक दलों के नेताओं और विभिन्न जिलों से आये फारवर्ड ब्लॉक के कार्यकर्ताओं ने दिवंगत अशोक घोष के पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण कर उन्हें अंतिम विदाई दी.

पार्थिव शरीर को दफनाने से पहले पुरुलिया शहर में एक शोकयात्रा निकाली गयी. राज्य सरकार की ओर से श्रम मंत्री मलय घटक ने श्रद्धांजलि अर्पित की. विमान बसु ने कहा है कि वामपंथी व जन आंदोलन में अशोक घोष जैसे अनुभवी व वरिष्ठ नेता के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. उनके निधन से जैसे देश की राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया. ध्यान रहे कि दो फरवरी को गंभीर रूप से बीमार होने के बाद अशोक घोष को महानगर के एक अस्पताल में भरती किया गया था. लगभग एक महीने जीवन के लिए संघर्ष करने के बाद तीन मार्च की सुबह 94 वर्षीय अशोक घोष ने दम तोड़ दिया. वह माकपा के दिवगंत नेता व पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के बाद सबसे वरिष्ठ वामपंथी नेता थे. वर्ष 1951 में फारवर्ड ब्लॉक की बंगाल इकाई के महासचिव चुने गये थे.

लगभग 65 वर्षों के लंबे समय तक वह इस पद पर बने रहे. इतने लंबे समय तक किसी राजनीतिक दल का शीर्ष पद संभालने की वजह से अशोक घोष का नाम लिमका बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी दर्ज है. खाद्य आंदोलन समेत कई जन आंदोलनों में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.

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