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भू-जल स्तर गिरने से भूटान सीमा इलाके में जल संकट

अलीपुरद्वार : जिले के भारत-भूटान सीमांत इलाकों का भू-जलस्तर अचानक काफी नीचे चला गया है. इसकी वजह से जिले में पेयजल का संकट मंडराने लगा है. ठंड के आगमन से पहले ही अलीपुरद्वार के कुमारग्राम ब्लॉक सहित अन्य इलाकों पेयजल की समस्या गहराने लगी है. पेयजल की समस्या दूर करने के लिए सीमांत इलाकों में […]

अलीपुरद्वार : जिले के भारत-भूटान सीमांत इलाकों का भू-जलस्तर अचानक काफी नीचे चला गया है. इसकी वजह से जिले में पेयजल का संकट मंडराने लगा है. ठंड के आगमन से पहले ही अलीपुरद्वार के कुमारग्राम ब्लॉक सहित अन्य इलाकों पेयजल की समस्या गहराने लगी है. पेयजल की समस्या दूर करने के लिए सीमांत इलाकों में रहनेवाले लोग पहाड़ी झोरा, नदी एवं झरनों का सहारा ले रहे हैं.
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाते हुए कहा है कि ब्लॉक के पचास फीसदी इलाकों में पीएचइ की लाइन नहीं है.इसकी वजह से यह समस्या और भी जटिल होती जा रही है. हालांकि पेयजल की समस्या दूर करने का आश्वासन प्रशासन की ओर से दिया गया है. स्थानीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, धन के अभाव में कुमारग्राम ब्लॉक के पचास फीसदी इलाकों में पीएचइ द्वारा पेयजल की व्यस्था नहीं करायी गयी है. वर्तमान में इन इलाकों में पेयजल की लाइन ले जाने की कोई योजना भी नहीं है.
कुमारग्राम पंचायत समिति के पीएचइ विभाग के अध्यक्ष, तृणमूल कांग्रेस के जगदीश चिकबड़ाईक ने बताया कि चेंगरामारी के नागरिकों को पेयजल मुहैया कराने की योजना संबंधी प्रस्ताव को पीएचई मंत्री पास भेज दिया गया है. 34 वर्षों के वाम शासन काल में इस समस्या के समाधान की कोशिश नहीं की गयी. श्री चिकबड़ाईक ने बताया कि पंचायत समिति की ओर से पहाड़ से सटे इलाकों में पेयजल की पाईपलाईन पहुंचाने के लिये प्रस्ताव भेजा जा चुका है.
स्थानीय आरएसपी के निधायक मनोज उरांव ने बताया कि सीमांत इलाकों में पीएचइ का पेयजल मुहैया कराने के लिये मंत्री सुब्रत मुखर्जी को आवेदन किया था. मंत्री द्वारा आश्वासन देने के बाद भी आज तक कोई काम नहीं हुआ.
कुमारग्राम ब्लॉक में कुल ग्यारह ग्राम पंचायतें हैं. कुमारग्राम विधानसभा में अलीपुरद्वार-2 ब्लॉक की और भी सात ग्राम पंचायतें हैं. भूटान सीमा से सटे इलाकों में शीत काल आने के साथ जल स्तर नीचे चला जाता है.
भारत की आजादी के 68 वर्ष के बाद आज भी इन इलाकों में पीएचइ का जल नहीं पहुंच पाया है. इलाके के निवासियों का कहना है कि साधारण बोरिंग की बात तो छोड़ ही दीजिए, इन इलाकों में बिग बोरिंग से भी पानी नहीं उठता है. चाय बागान व जंगल के सटे इलाकों में रहने वाले झोरा, नदी-नाले के गंदे पानी से आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं.

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