कोलकाता: कोलकाता में हर साल दीपावली के दिन या कुछ महीने पहले से पुलिस व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से लोगों को आगाह व जागरूक किया जाता है कि वे प्रतिबंधित पटाखों का उपयोग न करें. बावजूद इसके दीपावली के दो-तीन दिन पहले से पटाखों की जोरदार आवाज हर कोने से आने लगती है.
राह चलते-चलते रास्ते पर किसी के फोड़े गये पटाखों से दिल सहम सा जाता है, दिल के मरीजों को इससे कभी-कभी दिल का दौरा तक आ जाता है, फिर भी कान फोड़ू पटाखों के शौकिन लोगों को इससे कोई फर्कनहीं पड़ता है. दीवाली के दिन तो हर सेकेंड किसी न किसी कोने से पटाखों की जोरदार आवाज सुनी जाती है, जो निर्धारित 90 डेसिबल से कहीं ज्यादा होती है.
जागरु कता अभियान चलाने, प्रतिबंधित पटाखों पर रेड डालने के बाद भी हर साल पटाखों के व्यापार में बढ़ोतरी हो रही है, लोग शौक से पटाखे पर पूंजी तो खर्च करते ही हैं अपने नये नवेलों को भी इसकी सीख देते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक पटाखों के आवाज की औसत सीमा में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. साल 2009 में पटाखों के आवाज की अधिकतम सीमा 117.3 डेसिबल थी, जबकि 2010 में यह 121 डेसिबल हो गया. 2012 में 129.7 डेसिबल रिकार्ड की गयी.
पुलिस आयुक्त सुरजीत पुरकायस्थ के अनुसार पुलिस हेल्पलाइन नंबर जारी करती है व लोगों से जरूरत पड़ने पर तुरंत संपर्क करने को कहा जाता है. लेकिन पटाखों की शिकायत से संबंधित बहुत कम कॉल आती हैं. लोगों का मानना है कि वे अपने आस-पास के लोगों के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें बाद में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है.
दूसरी तरफ केंद्रीय प्रदूषण नियामक बोर्ड की रिपोर्ट भी लोगों को चेत जाने की नसीहत देती है. 2010 की रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता व दिल्ली देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर हैं.
पार्क सर्कस की एक महिला रीना मजुमदार के मुताबिक सामान्य आदमी के लिए दीपावली एक दुस्वपन की तरह होती है, रात को चाह कर भी सोया नहीं जा सकता क्यों कि पटाखों की आवाज लगातार होती रहती है. पुलिस को फोन करने के बाद भी बहुत कम मामलों में ही पुलिस कदम उठाती है. पुलिस व प्रशासन की तरफ से बैनर लगाकर अस्पताल, स्कूलों के आस-पास पटाखा फोड़ने की मनाही की जाती है, लेकिन पटाखों के शौकीन शायद ही ये सुनते हैं.