कोलकाता : राज्य के बहुचर्चित लालगढ़ आंदोलन के मुखिया और ‘जंगलमहल’ क्षेत्र में नक्सल आंदोलन के दौरान सक्रिय रहे छत्रधर महतो दस साल बाद शनिवार को जेल से रिहा हो गये. वह प्रेसिडेंसी जेल में पिछले दस साल से बंद थे. वर्ष 2008 में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के काफिले पर हमले के मामले में 2009 में छत्रधर महतो को गिरफ्तार किया गया था.
उन पर ‘यूएपीए’ के तहत मामला दर्ज किया गया. 12 मई 2015 को राष्ट्रद्रोह के मामले में कलकत्ता हाइकोर्ट ने छत्रधर महतो को उम्रकैद की सजा सुनायी. 19 अगस्त 2019 को हाइकोर्ट ने छत्रधर महतो की सजा कम कर दी थी. सजा की मियाद पूरी होने के बाद शनिवार को वह जेल से रिहा हो गये. वह चिकित्सा के लिए एसएसकेएम अस्पताल में थे. शनिवार को एसएसकेएम से वह लालगढ़ के लिए रवाना हो गये.
वर्ष 2008 में पश्चिम मेदिनीपुर जिले के सालबनी इलाके में उस समय के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य एवं केंद्रीय इस्पात मंत्री (यूपीए सरकार के दौरान) रामविलास पासवान के काफिले पर माओवादियों ने हमला किया था. हमले के बाद माओवादियों की धर-पकड़ के लिये पुलिस ने अभियान शुरू किया. पुलिस के इस रवैये के विरोध में छत्रधर महतो ने ‘पुलिस संत्रास विरोधी जनसाधारण कमेटी के नाम से संगठन बनाकर पुलिस के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. छत्रधर की अगुआई में आदिवासियों के एक समूह ने आंदोलन किया था.
लालगढ़ आंदोलन के दौरान तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कथित तौर पर पुलिस अभियान के संबंध में छत्रधर महतो के विरोध को समर्थन किया था.
मैं ‘दीदी’ पर विश्वास रखकर ही आगे की लड़ाई लड़ूंगा: छत्रधर महतो
जेल से रिहा होने के बाद छत्रधर महतो ने कहा कि बहुत कुछ पूरा हुआ है और कुछ प्रश्न आज भी बाकी रह गया है. दीदी (मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) पर विश्वास रखकर आगे का जीवन और आगे की लड़ाई लड़ूंगा, क्योंकि दीदी मेरे आंदोलन में थीं. उन्होंने सभी तरह का सहयोग किया था. जंगलमहल को लेकर उनका (सीएम) जो सपना है, उससे मेरा भी संबंध है.