काली मंदिर व शेफाली बीबी को केंद्र कर आयोजित मेला बनी सामाजिक सौहार्द की मिसाल
मालदा : संतों का कथन है कि धर्म तोड़ता नहीं है जोड़ता है. यह सूक्ति मालदा जिले के हबीबपुर थानांतर्गत मध्यम केंदुआ गांव की शेफाली बीबी पर पूरी तरह से लागू होती है. 65 वर्षीया शेफाली बीबी इलाके में मां काली की साधिका के रुप में चर्चित हैं. हर साल उन्हें केंद्र कर काली मंदिर परिसर में पंडाल बनाकर विधिवत पूजा होती है जिसमें इलाके के सभी धर्म और संप्रदाय के लोग शामिल होते हैं. इस पूजा को लेकर विशाल मेला और सांस्कृतिक समारोह का भी आयोजन होता है.
पिछले 35 साल से वह यह पूजा करती आ रही हैं. उन्होंने बताया कि 35 साल पहले उन्हें एक जटिल रोग हुआ था जिसके बाद उन्हें मां काली ने स्वप्नादेश दिया कि वह उनकी पूजा करे तो वह स्वस्थ हो जायेंगी. उसी साल उन्होंने हिंदू समाज के लोगों के सहयोग से पूजा अनुष्ठान किया और आश्चर्यजनक रुप से वह स्वास्थ्यलाभ करने लगीं. उसके बाद से ही वह नियमित रुप से पूजा करती आ रही हैं. इस पूजा के आयोजन, चंदा संग्रह और तमाम व्यवस्था में इलाके के लोग सहयोग देते हैं.
शेफाली बीबी का कहना है कि वह गरीब हैं जरूर, लेकिन काली माता के आशीर्वाद से उनके परिवार में किसी चीज की कमी नहीं है. अनाज और मकान के मामले में वह संपन्न हैं. हालांकि उनके दोनों बेटे श्रमिक का काम करते हैं. इसके बावजूद उनका जीवन सुखी है. उनका कहना है कि मां काली किसी एक व्यक्ति या समाज की नहीं हैं. वे सभी की माता हैं.
सबका ख्याल रखती हैं. उल्लेखनीय है कि हबीबपुर थाना के बुलबुलचंडी ग्राम पंचायत अंतर्गत मध्यम केंदुआ गांव में शेफाली बीबी रहती हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि शेफाली बीबी की मां काली जाग्रत हैं. पूजा के समय बहुत से भक्त उन्हें सोना, चांदी के गहने दान में देते हैं. यह काली पूजा संपूर्ण बंगाल के लिये सामाजिक सौहार्द की मिसाल बनी हुई है.