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हॉकरों के चंगुल में हावड़ा व सियालदह स्टेशन का सब वे

कोलकाता : वैसे तो हॉकरों का जमावड़ा पूरे महानगर में है लेकिन सबसे संवेदनशील स्थिति हावड़ा और सियालदह स्टेशन की है. स्टेशन में प्रवेश करने वाली सड़क हो या फिर सब-वे सभी पूरी तरह से हॉकरों से अटे पड़े हैं. कई स्थानों पर तो हॉकर रेल लाइनों पर भी बाजार सजा देते हैं. हावड़ा स्टेशन […]

कोलकाता : वैसे तो हॉकरों का जमावड़ा पूरे महानगर में है लेकिन सबसे संवेदनशील स्थिति हावड़ा और सियालदह स्टेशन की है. स्टेशन में प्रवेश करने वाली सड़क हो या फिर सब-वे सभी पूरी तरह से हॉकरों से अटे पड़े हैं. कई स्थानों पर तो हॉकर रेल लाइनों पर भी बाजार सजा देते हैं.

हावड़ा स्टेशन के बस स्टैंड के पास स्थित भूमिगत सब-वे नंबर 1,2,3,4 और 10,11,12 सभी पर हॉकरों का कब्जा है. हॉकर सब-वे के प्रवेश द्वार पर तो बैठे ही हैं. उन्होंने सब-वे के अंदर भी डेरा डाल रखा है. स्थिति ऐसी है कि यात्रियों के जाने का रास्ता नहीं बचता. हावड़ा स्टेशन से रोजाना यात्रा करने वाले एक यात्री राकेश जैन ने बताया कि वह रोजना हुगली से हावड़ा आते हैं. वह सुबह 10 बजे ट्रेन से हावड़ा स्टेशन पहुंचते हैं. ऑफिस का समय होने के कारण उस वक्त भीड़ होती है. पूरा सब-वे यात्रियों की भीड़ से भर जाता है, उपर से सब-वे के अंदर दोनों तरफ सैकड़ों दुकानें सजी होने के कारण रास्ता संकरा हो जाता है, जिससे कई बार यात्री गिर भी पड़ते हैं.
कमोबेेश यही स्थिति सियालदह स्टेशन के सब-वे की भी है. जहां हावड़ा स्टेशन के अंदर का परिसर हॉकरों से बचा है वहीं सियालदह स्टेशन की बुरी स्थिति है. स्टेशन के सभी प्लेटफॉर्म हॉकरों से भरे हैं. स्टेशन में प्रवेश करने वाले रास्तों के सभी सब-वे में हॉकरों का कब्जा है. स्थिति इतनी भयावह है कि कभी-भी एक बड़ी दुर्घटना हो सकती है.
इतना ही नहीं सियालदह मंडल के लोग अपनी जान पर खेलकर ट्रेन की पटरी पर बैठ कर बाजार चला रहे हैं. यह स्थिति पार्क सर्कस स्टेशन की है जहां पटरी पर ही बाजार बैठा दिया गया है. सब्जी से लेकर इलेक्ट्रॉनिक आइटम और बर्तन सब कुछ बिकता है इस बाजार में. पॉर्क सर्कस में रहने वाले लोगों ने इसे स्टेशनबाजार का नाम दे दिया है. खुदा-ना-खास्ता इस अवैध बाजार के चक्कर में कभी यहां कोई बड़ा हादसा ना हो जाए.
रेलवे पहले से ही अवैध हॉकरों से परेशान है
राज्य सरकार जहां इसके लिए रेलवे को जिम्मेवार ठहराती है तो वहीं रेलवे की ओर से कहा जाता है कि बार-बार कहने के बावजूद अवैध हॉकर वापस आ जाते हैं, उन्हें हटाना राज्य सरकार की मदद के बगैर संभव नहीं है. राज्य सरकार और रेलवे एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने में लगे हैं. नाम नहीं छापने की शर्त पर रेलवे के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य में हॉकरों को हटाना टेढ़ी खीर के समान है. हॉकरों को हटाने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है.

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