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ट्रांसजेंडर को समाज में स्थापित करने के लिए फार्मा कंपनी दे रही ट्रेनिंग
कोलकाता : अपने अस्तित्व को चिकित्सकीय सहायता से स्वीकार करनेवाले तृष्ण सिन्हा, राहुल मित्रा और रुद्र दत्ता उन 10 लोगों में से एक हैं, जो अपनी जिंदगी में एक नयी शुरुआत करने जा रहे हैं. 10 लोगों का यह समूह उन लोगों की जमात के उन 13 लोगों में से हैं, जिन्होंने जन्म तो महिला […]
कोलकाता : अपने अस्तित्व को चिकित्सकीय सहायता से स्वीकार करनेवाले तृष्ण सिन्हा, राहुल मित्रा और रुद्र दत्ता उन 10 लोगों में से एक हैं, जो अपनी जिंदगी में एक नयी शुरुआत करने जा रहे हैं. 10 लोगों का यह समूह उन लोगों की जमात के उन 13 लोगों में से हैं, जिन्होंने जन्म तो महिला के रूप में लिया था. लेकिन वे खुद को पुरुष के रूप में देखते रहे.
बाद में चिकित्सकीय सहायता से ये लोग अपने अस्तीत्व में आये. इन्हें ट्रांसजेंडर कहा जाता है. इन लोगों को अब कोलकाता की एक दवा कंपनी दो महीने की मेडिकल रेप्रिजेंटेटिव की ट्रेनिंग दे रही है. इसके बाद ये लोग उसी कंपनी में काम करेंगे.
कंपनी ने फिलहाल अपना नाम छापने से मना किया है. लेकिन उसके प्रयास की लोग सराहना कर रहे हैं. यह कई मायनों में एक अहम उपलब्धि है, खासतौर पर ट्रांसजेंडरों के लिए. इन लोगों को कदम-कदम पर समाज के मखौल का सामना करना पड़ता है.
इनके लिए मुख्यधारा में रोजगार के अवसर पाना, जहां इनके बदले हुए व्यक्तित्व को स्वीकार कर लिया गया हो, बड़ी बात है. इस फार्मा कंपनी ने यह पहल कॉरपोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी के निर्वहन के सिद्धांत के तहत की है.
क्या कहना है कंपनी का :
कंपनी के एक पदाधिकारी ने कहा कि इस स्वीकार्यता का असर सकारात्मक रहा है. 35 वर्ष के तृष्ण कहते हैं, कि पुरुषों जैसे दिखना और पुरुष के रूप में पहचान मिलना उनका सपना था. अब कंपनी के इस फैसले से काफी मनोवैज्ञानिक दबाव कम हुआ है.
एक और ट्रांसजेंडर निव हालदार अपने गुजरे दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि मैंने जब सेल्स एग्जिक्यूटिव के रूप में काम शुरू किया, तो एक महीने तक पुरुषों के सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करने में मुझे डर लगता था. मुझे लोगों के तानों और यौन उत्पीड़न तक का सामना करना पड़ा. मैं जब महिलाओं के शौचालय गया, तो वहां भी महिलाएं कम आक्रामक नहीं थीं. इसकी वजह से मुझे वह भी छोड़ना पड़ा.
38 साल के राहुल कहते हैं कि आखिरकार जब हमें पुरुषों से जुड़े सर्वनाम से संबोधित किया गया, तो हमें बहुत अच्छा लगा. ट्रेनिंग में हमें पुरुषों की तरह बुलाया जाता था. राहुल पहले एक मनोचिकित्सक थे, लेकिन मरीजों के परिवारवालों ने जब उनके ट्रांस व्यक्तित्व के बारे में जाना, तो उन्होंने राहुल के पास आना बंद कर दिया.
संजीवन सरकार इस फार्मा कंपनी के टेक्निकल हेड हैं. इन लोगों की ट्रेनिंग उन्हीं की देखरेख में हो रही है. वह कहते हैं कि बुनियादी बात यह है कि 13 लोगों का यह समूह पूरे आत्मविश्वास और जरूरी काबिलियत के साथ दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है. सरकार कहते हैं कि इनके पास इस काम के लिए सभी जरूरी शैक्षिक योग्यताएं हैं.
इन्हें पर्सनैलिटी डिवेलपमेंट समेत मेडिकल साइंस, फार्मा टेक्नॉलजी और मार्केटिंग मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दी जा रही है. ट्रेनिंग के बाद कड़ाई से इनका मूल्यांकन होगा फिर इन लोगों को लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के लिए अपने संभावित नियोक्ताओं के सामने उपस्थित होना होगा.
ट्रेनिंग में होगा बहुत कुछ :
ट्रेनिंग पानेवाले इन युवाओं को इस बात के लिए भी प्रशिक्षित किया है कि वे लोगों को सहज महसूस करायें. पोद्दार कहते हैं कि हम इनसे कहते हैं कि जब उन्हें लोगों के रूढ़िवादी रवैये का सामना करना हो तो ये अपनी पहचान न छिपायें. रूढ़ियों का सामना करने के लिए आप जैसे हैं वैसे ही लोगों को दिखायें.
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