कोलकाता :राज्य का शहरी विकास मंत्रालय सॉल्टलेक में जमीन के लीज अधिकारों के हस्तांतरण में मौजूदा खामियों को पाटने के लिए नया कानून लाने वाला है. शहरी विकास विभाग की ओर से 1960 और 70 के दशक में 999 वर्षों के लिए जमीनें लीज पर दी गयी थीं. हालांकि 2012 में नया कानून बना था जिसमें लीजधारक को फीस के एवज में लीजधारण के अधिकार के स्थानांतरण की मंजूरी दी गयी थी. लेकिन स्थानांतरण फिलहाल रुका हुआ है क्योंकि कुछ स्थानीय निवासी संदेहजनक स्थानांतरण का आरोप लगाते हुए अदालत पहुंचे हैं.
राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने बताया कि विभाग की ओर से नया कानून तैयार किया जा रहा है जो मौजूदा कानून की खामियों को पाट कर प्लॉट के स्थानांतरण में पारदर्शिता सुनिश्चित कर सकेगा. फिलहाल प्लॉट को केवल ऐसे ही लोगों को हस्तांतरित किया जा सकता है जिनसे खून का रिश्ता (ब्लड रिलेशन) है.
2012 तक यह भी कानूनी तौर पर वैध नहीं था. फिर भी 40 फीसदी प्लॉट का हस्तांतरण हुआ था. जिन प्लॉट को 2750 रुपये से लेकर 3000 रुपये प्रति कट्ठा लीज दिया गया था वह अवैध रूप से 50 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये प्रति कट्ठा के हिसाब से बेचा दिखाया गया. जबकि वास्तविक लेन-देन करोड़ों में थी. कुछ प्लॉट तो तीन से चार बार हस्तांतरित हुए.
इससे राजस्व की हानि को देखते हुए राज्य सरकार ने 2012 में मौजूदा कानून को लाया जिसमें पांच लाख रुपये प्रति कट्ठा की अदायगी पर हस्तांतरण का कानूनी अधिकार दिया गया. तीन महीने के भीतर सरकार को 70 आवेदन मिल गये थे. हालांकि तब तक अवैध रूप से हस्तांतरित किये गये प्लॉट की स्थिति पर सवाल उठने लगे. सवाल उठा कि वैध और अवैध रूप से हस्तांतरण की प्रक्रिया समान रहेगी? इस सवाल का जवाब देने के लिए अब नया कानून लाया जा रहा है.
विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक जो हो चुका है उसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन अब जमीन हस्तांतरण की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होगी. विधाननगर वेलफेयर एसोसिएशन के पूर्व सचिव कुमार शंकर साधु कहते हैं कि कुछ कानूनी मुद्दे जमीन हस्तांतरण की प्रक्रिया और प्लॉट पर भी उठने लगे. यह अच्छा है कि सरकार इन मुद्दों के निपटारे की दिशा में कदम उठा रही है.
- 60 और 70 के दशक में सॉल्टलेक में 999 साल की लीज पर आवंटित किये गये थे प्लॉट
- 2012 में बनाये गये कानून में खून के रिश्ते में भूमि हस्तांतरण का अधिकार दिया गया
- नियमों के गलत इस्तेमाल की मिल रही थीं शिकायतें