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आयुर्वेद चिकित्सकों का वेतन ग्रुप डी कर्मियों से भी कम, एक हजार चिकित्सकों को सरकारी नौकरी नहीं
कोलकाता : आयुर्वेद पद्धति देश में प्रचलित इलाज की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति है. जिसे बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार प्रयासरत है. एक आंकड़े के अनुसार आयुष विभाग के द्वारा आयुर्वेद चिकित्सा के विस्तार व विकास के लिए साल 2014-2017 तक राज्य को करीब 56 करोड़ रुपये आवंटित किया जा चुका है, लेकिन इसके […]
कोलकाता : आयुर्वेद पद्धति देश में प्रचलित इलाज की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति है. जिसे बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार प्रयासरत है. एक आंकड़े के अनुसार आयुष विभाग के द्वारा आयुर्वेद चिकित्सा के विस्तार व विकास के लिए साल 2014-2017 तक राज्य को करीब 56 करोड़ रुपये आवंटित किया जा चुका है, लेकिन इसके बाद भी राज्य में आयुर्वेद चिकित्सा व चिकित्सकों की हालत दयनीय है.
गौरतलब है कि आयुष के अतंगर्त आयुर्वेद के अतिरिक्त होम्योपैथी, यूनानी सिद्धा तथा योगा भी आता है, लेकिन राज्य में सबसे खराब हालत आयुर्वेद चिकित्सकों की है. जबकि आयुर्वेद चिकित्सक दूर-दराज के इलाकों में अपनी सेवाएं देते हैं, लेकिन फिर भी इन्हें अन्य ऐलोपैथी, डेंटल अथवा वैटनरी चिकित्सकों से कम वेतन मिलता है.
जानकारी के अनुसार पंचायत स्तर पर कार्यरत आयुर्वेद मेडिकल अॉफिसरों का वेतन ग्रुपडी के कर्मचारियों से भी कम है. इन्हें मात्र 16 हजार रुपये बतौर मासिक वेतन मिलता है. इन मेडिकल अॉफिसरों का कहना है कि मंहगाई के बढ़ते दौर में आज जो वेतन हमें मिल रहा है, वह काफी कम है.
ऐसे में सरकार को चाहिए कि वेतन की विसंगतियों को दूर करें. आगे उन्होंने बताया कि वेतन समय पर नहीं मिलता है. तीन महीने के अंतराल पर वेतन का भुगतान जिला परिषद द्वारा किया जाता है.
21 सालों से नहीं हुई कोई स्थायी नियुक्ति :
जानकारी के अनुसार गत 21 वर्षों से आयुर्वेद चिकित्सकों की स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है. संविदा पर नियुक्ति होने के कारण छात्रों का रुझान आयुर्वेद के प्रति घट रहा है. इतना ही नहीं रोजगार की तलाश में कुछ चिकित्सक एलोपैथी की भी प्रैक्टिस कर रहें है. गौरतलब है कि राज्य के करीब एक हजार चिकित्सकों के पास सरकारी नौकरी नहीं है.
राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम पड़ा लंबित : राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) योजना के अंतर्गत 80 पदों पर आयुर्वेद चिकित्सकों की नियुक्ति के लिए हाल में ही राज्य सरकार ने विज्ञापन जारी किया गया था. आवेदन करने से लेकर अन्य सारी प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है, लेकिन अब तक उक्त पदों पर नियुक्ति की घोषणा नहीं की गयी है.
रिक्त पड़े हैं 100 पद : जानकारी के अनुसार बंगाल में आयुर्वेद चिकित्सकों के 296 स्थायी पद हैं. जिनमें से मात्र 108 पदों पर स्थायी नियुक्तिां हुईं है. 88 पदों पर अस्थायी तौर पर चिकित्सक कार्य कर रहे हैं जबकि बाकी के 100 पद रिक्त पड़े हैं.
आयुर्वेद चिकित्सकों की इस दशा के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने राज्य के आयुष विभाग के निदेशक अदिति दासगुप्ता से बात की लेकिन उन्होंने इस विषय में कुछ कहने से इनकार कर दिया.
पंचायत स्तर पर करीब 1500 मेडिकल ऑफिसर के पद हैं. इनमें से अधिकांश रिक्त हैं. इन पदों पर कार्य करनेवाले चिकित्सकों को वेतन के अलावा डीए, बोनस समेत अन्य किसी प्रकार का भत्ता नहीं मिलता है. पंचायत स्तर पर कार्य करनेवाले मेडिकल ऑफिसरों के पास आयुर्वेदिक दवा का भी टोटा है. फलस्वरूप इन्हें मरीजों के इलाज में भी परेशानी होती है.
राज्य में आयुर्वेद चिकित्सकों की अनदेखी हो रही है. एलोपैथी प्रैक्टिस के लिए 1260 आयुर्वेद चिकित्सकों को प्रशिक्षण दिया गया है, लेकिन नौकरी की व्यवस्था नहीं की जा रही है. स्वास्थ्य भवन में आला अधिकारी भी हमारी शिकायतों को नहीं सुनते, तो हम किसके पास जायें. पंचायत स्तर पर कार्य करनेवाले चिकित्सक को स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत लाया जाये.
मॉडुलेशन कोर्स के तहत आयुर्वेद चिकित्सकों को प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षण के बाद नौकरी देने की बात नहीं कही गयी थी. इस ट्रेनिंग के बाद ऐसे चिकित्सक प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकेंगे.
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