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भुगतान को मांगी मोहलत, तो लोन देनेवाली कंपनी का थमाया नंबर

15 से 17 फीसदी ब्याज पर ऋण लेने को कहा पुलिस की मदद से समस्या का हुआ समाधान कोलकाता : महानगर स्थित एक निजी अस्पताल का अमानवीय चेहरा फिर देखने को मिला. मरीज के परिजनों का आरोप है कि इलाज में लापरवाही के कारण पूरा परिवार उजड़ गया. यह घटना मुकुंदपुर स्थित एक निजी अस्पताल […]

15 से 17 फीसदी ब्याज पर ऋण लेने को कहा

पुलिस की मदद से समस्या का हुआ समाधान
कोलकाता : महानगर स्थित एक निजी अस्पताल का अमानवीय चेहरा फिर देखने को मिला. मरीज के परिजनों का आरोप है कि इलाज में लापरवाही के कारण पूरा परिवार उजड़ गया. यह घटना मुकुंदपुर स्थित एक निजी अस्पताल की है. 24 दिसंबर को झारखंड के रामगढ़ जिला स्थित जनता नगर निवासी शक्ति सिन्हा ( 43) को सॉल्टलेक स्थित निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया. उन्हें उच्च रक्तचाप की शिकायत थी. उसके पति जीवन कुमार ने बताया कि प्रसव के लिए आइवीएफ पद्धति से पत्नी की चिकित्सा चल रही थी.
कोलकाता के गायनो विशेषज्ञ डॉ संजय सेन इलाज कर रहे थे. इस दौरान 23 दिसंबर को ब्लड प्रेशर बढ़ने पर डॉ सेन की सलाह पर पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराया गया. मरीज को 27 दिसंबर को अस्पताल से छुट्टी देने की बात थी. 26 की रात में अस्पताल से फोन कर बताया कि गया कि शक्ति को दिल का दौरा पड़ा है.
बिना बताये मरीज को वेंटिलेशन पर रख दिया गया. पूछने पर बताया गया कि शक्ति के गर्भ में दो शिशु पल रहे हैं. बच्चों के भार के कारण ही शक्ति को दिल का दौरा पड़ा है. बेहतर चिकित्सा के लिए मरीज को सॉल्टलेक स्थित अस्पताल ने मुकुंदपुर स्थित अपनी दूसरी शाखा में स्थानांतरित किया. वहां 29 दिसंबर महिला ने सर्जरी से दो पुत्र संतान को जन्म दिया. इसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी. 29 दिसंबर को इलाज के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया. परिजनों को बताया गया कि हार्ट अटैक के कारण मरीज के मस्तिष्क में करीब तीन मिनट ऑक्सीजन नहीं पहुंचने से मस्तिष्क की नसों में चोट लगी है. जिसे मेडिकल की भाषा में मस्तिष्क हाइपोक्सिक कहा जाता है.
इस बीमारी में मरीज की यादाश्त केवल पांच फीसदी मामले में ही लौट सकती है. यादाश्त कब लौटेगी और वह कब तक पूरी तरह से ठीक होगी, यह चिकित्सकों द्वारा स्पष्ट नहीं बताया जा रहा था. चिकित्सकों ने बताया कि उक्त बीमारी से ग्रसित होने के कारण शिशुओं पर भी असर पड़ा है. वर्तमान में उनकी चिकित्सका अस्पताल के सिक न्यूनेटल केयर यूनिट में चल रही है.
वहीं, पत्नी के इलाज के लिए जीवन ने 15 जनवरी को चार लाख 10 हजार रुपये का भुगतान किया. शेष राशि करीब दो लाख 60 हजार रुपये देने के लिए वह अस्पताल से छह माह का समय मांग रहा था.
इसके लिए उसने अस्पताल को आवेदन भी दिया. जीवन कुमार इएमआइ के तहत छह माह के भीतर शेष राशि देना चाह रहा था. लेकिन अस्पताल प्रबंधन इसके लिए तैयार नहीं था. अस्पताल की ओर से मरीज के परिजनों को लोन देने वाली एक कंपनी का नंबर थामा दिया गया. कहा गया कि लोन 15 से 17 फीसदी ब्याज दर मिलेगा. इसके बाद जीवन कुमार पूर्व यादवपुर थाना पहुंचा. पुलिस के हस्तक्षेप से मामला सलटा. इसके बाद अस्पताल ने मरीज को डिस्चार्ज किया.
डॉक्टरों ने कहा कि पत्नी की चिकित्सा लंबी चलेगी, जो घर में रख कर ही हो सकता है. फिलहाल शक्ति बेहोशी की हालत में है. गुरुवार को अस्पताल से छुट्टी कराये जाने के दौरान एक लाख 60 हजार रुपये का भुगतान कर दिया गया है. करीब एक लाख रुपया बकाया है. शक्ति को अस्पताल में ही ब्रेन की समस्या हुई, इसके लिए अस्पताल प्रबंधन जिम्मेदार है.
जीवन कुमार, मरीज का पति
नोटबंदी के बाद से अस्पताल में मरीज को सहूलियत एवं लोन देने के लिए ऋण की व्यवस्था की गयी है. लोन देने वाली कंपनी से हमारा कोई संपर्क नहीं है. हमारे पास लोन देने वाली कंपनी का नंबर होता है, जिसे हम मरीज के परिजनों को दे देते हैं. हमरा काम बस इतना ही है. मरीज के इलाज पर आने वाले खर्च पर हम छूट भी देंगे. यदि इलाज में किसी प्रकार की लापरवाही का आरोप है तो वे लिखित शिकायत दर्ज करा सकते हैं. अस्पताल प्रबंधन मामले की जांच करेगा.
रूपक बरुआ, सीइओ

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