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ऋतुपर्णो घोष के निधन से बंगाल में शोक की लहर

कोलकाता: ऋतुपर्णो कोलकाता में रहते थे और पिछले कई दिनों से पाचन तंत्र की समस्या से परेशान थे. वो इस समय सत्यान्वेषी व्योमकेश बख्शी नाम की फिल्म बना रहे थे. व्योमकेश एक जासूसी चरित्र है, जिस पर पूर्व में धारावाहिक बन चुका है लेकिन इस विषय पर ऋतुपर्णो से एक अलग फिल्म की उम्मीद की […]

कोलकाता: ऋतुपर्णो कोलकाता में रहते थे और पिछले कई दिनों से पाचन तंत्र की समस्या से परेशान थे. वो इस समय सत्यान्वेषी व्योमकेश बख्शी नाम की फिल्म बना रहे थे. व्योमकेश एक जासूसी चरित्र है, जिस पर पूर्व में धारावाहिक बन चुका है लेकिन इस विषय पर ऋतुपर्णो से एक अलग फिल्म की उम्मीद की जा रही थी. फिल्म में व्योमकेश का रोल निभा रहे सुजॉय घोष ने बताया कि वो सदमे में हैं. ऋतुपर्णो का सिनेमा संसार बहुत विशाल है और उनकी फिल्मों के मायने गहरे और दिल को छूने वाले होते थे.

ऋतुपर्णो घोष के साथ ‘मेमोरीज इन मार्च’ में काम कर चुकी अभिनेत्री दीप्ति नवल ने कहा ‘अपनी सेक्सुएलिटी को लेकर इतना सहज मैंने किसी को नहीं देखा. उसने मुङो बताया था कि एक बार अभिषेक बच्चन ने उसे ऋतु दा नहीं ऋतु दी कहा और ये बताते हुए उसकी आंखों में चमक थी.’ दीप्ति कहती हैं कि रितुपर्णो की मृत्यु सिर्फबंगाली सिनेमा नहीं राष्ट्रीय सिनेमा के लिए बहुत बड़ी सदमा है क्योंकि वो एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के फिल्मकार थे. अपनी बात पूरी करते हुए दीप्ति ने कहा,‘ऋतु अपनी समलैंगिकता को लेकर कतई शर्मिदा नहीं थे. वो एक पुरुष के शरीर में महिला थे और उन्होंने तय किया था कि वह समलैंगिक विषयों को अपनी फिल्मों में उठाते रहेंगे.’

ऋतुपर्णो की फिल्में
चाहे हिंदी फिल्म रेनकोट में ऐश्वर्या राय और अजय देवगन से संवेदनशील अभिनय करवाना हो या फिर बांग्ला और हिंदी में चोखेर बाली हो. रितुपर्णो ने न केवल महिलाओं से जुड़े मुद्दों को उठाया बल्कि समलैंगिक मुद्दों को भी वो उठाते रहे. उनकी आखिरी फिल्म चित्रंगदा थी, जो हाल ही में मुबंई के क्वीयर(समलैंगिक) फिल्म महोत्सव की क्लोजिंग फिल्म थी. रितुपर्णो की फिल्मों में समलैंगिक विषयों का काफी संजीदा तरीके से चित्रण हुआ है. इस फेस्टिवल के निर्देशक श्रीधर रंगायन ने बताया ‘हमने एक ऐसा निर्देशक खोया है जो समलैंगिक विषयों पर खुल कर, बिना डरे और बेहद ही संजीदगी से फिल्में बनाता था.’

अभिनय भी किया
सर्वश्रेष्ठ अंगरेजी फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्म ‘मेमोरीज इन मार्च’ भी समलैंगिक विषय पर बनायी गयी थी, जिसमें रितुपर्णो के अभिनय को काफी सराहा गया था. अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त रितुपर्णो ने कभी भी बॉलीवुड की मुख्यधारा का रुख नहीं किया और कोलकाता में ही रह कर अलग-अलग विषयों पर अर्थपूर्ण फिल्में बनाते रहे. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें सिर्फ 49 वर्ष की आयु में ही 12 नेशनल अवार्ड और कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं.

सिर्फ 21 साल में कम ही फिल्मकारों को इतने अवार्ड नसीब हुए हैं लेकिन रितुपर्णो अपने आप में खास किस्म के निर्देशक और अभिनेता रहे हैं. उल्लेखनीय है कि रितुपर्णो का फिल्मी कैरियर 1992 में शुरू हुआ था जब उन्होंने ‘हीरेर आंग्टी’ (हीरे की अंगूठी) नाम की एक छोटे बजट की फिल्म बनायी थी.

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