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मौत की सजा हो समाप्त : सीआरपीपी
कोलकाता. कमेटी फॉर द रिलीज ऑफ पोलिटिकल प्रीजिनर्स (सीआरपीपी) एवं बस्तर सोलिडिरिटी नेटवर्क (कोलकाता) ने मौत की सजा समाप्त करने की मांग की. शुक्रवार को कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में प्रोफेसर एसआर गिलानी व सुजात भद्र ने कहा कि शनिवार को इस बाबत कोलकाता के स्वर्ण बनिक हॉल में एक जनसम्मेलन का […]
कोलकाता. कमेटी फॉर द रिलीज ऑफ पोलिटिकल प्रीजिनर्स (सीआरपीपी) एवं बस्तर सोलिडिरिटी नेटवर्क (कोलकाता) ने मौत की सजा समाप्त करने की मांग की. शुक्रवार को कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में प्रोफेसर एसआर गिलानी व सुजात भद्र ने कहा कि शनिवार को इस बाबत कोलकाता के स्वर्ण बनिक हॉल में एक जनसम्मेलन का आयोजन किया जायेगा. इस सम्मेलन के माध्यम से मौत की सजा समाप्त करने के प्रति जागरूकता पैदा की जायेगी. प्रोफेसर गिलानी ने कहा कि किसी भी सभ्य समाज में मौत की सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए, क्योंकि मौत की सजा के बाद यदि यह तथ्य सामने आता है कि आरोपी निर्दोष था, तो उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सकता है.
सीआरपीपी के अध्यक्ष सुजात भद्र ने कहा कि 2014 में बिहार के मुंगेर जिला की निचली अदालत ने बारूदी सुरंग विस्फोट करने के आरोप में पांच दलित गांववासियों रातू कोठा, मन्नू कोठा, बानू कोठा, विपिन मंडल तथा अधीकलाल पंडित को मौत की सजा सुनायी है. इसी तरह से 2001 में गया अदालत ने चार दलित किसानों नन्हेलाल मोची, कृष्णा मोची, बीर कुएन पासवान तथा धर्मेंद्र सिंह को मौत की सजा सुनायी है.
सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को बहाल रखा है. दो दलित ग्रामीण व्यास काहार तथा बुगल मोची को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है. उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था की प्रक्रिया में अब तक किसी भी अमीर व्यक्ति को मौत की सजा नहीं मिली है. केवल गरीब एवं दलितों को ही मौत की सजा मिली है. हमलोग लोग चाहते हैं कि मौत की सजा समाप्त की जाये. यूएपीए, एएफएसपीए जैसे कानून खत्म किये जायें.
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