ज्ञान के साथ चारित्र, अहिंसा, नैतिकता के प्रति निष्ठा रखने का प्रयास करना चाहिए और नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए. अहिंसा को सभी ग्रंथों का सार बताते हुए कहा कि सभी के साथ मैत्री का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए. आचार्यश्री ने आशीष वृष्टि करते हुए कहा कि विद्यार्थियों में अहिंसा की चेतना, नैतिकता के भाव सदाचार, ज्ञान और आचार अच्छा विकास हो. भ्रष्टाचार को स्थान न मिले, सदाचार बना रहे. विद्यार्थी देश के भविष्य होते हैं. जिस विद्या संस्थान द्वारा कोरा ज्ञान की ही नहीं अच्छे आचार और संस्कार के निर्माण का प्रयास होना चाहिए. आचार्यश्री ने सभी में अच्छी निष्ठा, ज्ञान का विकास और विशिष्ट कार्य करने का प्रयास करते रहने की पावन प्रेरणा भी प्रदान की. इसके उपरान्त अहिंसा यात्रा के प्रवक्ता मुनि कुमारश्रमणजी और जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के प्रो. आनंदप्रकाश प्रकाश त्रिपाठी, कोलकाता चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष कमलकुमार दूगड़ ने भी विचाराभिव्यक्ति दी.
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महातपस्वी के सान्निध्य में दीक्षांत समारोह
कोलकाता. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी, व जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल सान्निध्य में शुक्रवार को जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षांत समारोह का भव्य आयोजन हुआ. इसमें मुख्य अतिथि के रूप में पश्चिम बंगाल के उच्च शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी, विशिष्ट […]
कोलकाता. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी, व जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल सान्निध्य में शुक्रवार को जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षांत समारोह का भव्य आयोजन हुआ. इसमें मुख्य अतिथि के रूप में पश्चिम बंगाल के उच्च शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी, विशिष्ट अतिथि राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के मंत्री राजकुमार रिणवा व लाडनूं (राजस्थान) के विधायक ठाकुर मनोहर सिंह भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित थे.
कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान के उपरांत आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ. जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय की कुलपति बच्छराज दूगड़ ने विश्वविद्यालय के शुभारंभ, वर्तमान के क्रिया-कलापों, उपलब्धियों और भविष्य के योजनाओं के विषय में जानकारी दी. विश्वविद्यालय की कुलाधिपति सावित्री जिंदल ने दीक्षांत समारोह कार्यक्रम की अनुमति प्रदान की तो कुलपति ने कार्यक्रम के शुभारंभ की घोषणा की. इस दीक्षांत समारोह में नियमित स्नातक के 213, स्नातकोत्तर के 64, पीएचडी के 35, डिलिट के 2, दूरस्थ शिक्षा स्नातक के 1971 व स्नातकोत्तर के 2110 विद्यार्थियों सहित कुल 4427 विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की. इस दौरान कुल 32 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक भी प्रदान किये गये. समस्त उपाधि व पदक कुलाधिपति सावित्री जिंदल, कुलपति डाॅ बच्छराज दूगड़, जैन विश्व भारती संस्थान के अध्यक्ष रमेशचंद बोहरा, राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के मंत्री राजकुमार रिणवा व लाडनूं विधायक ठाकुर मनोहर सिंह द्वारा प्रदान किये गये.
इसके उपरांत विश्वविद्यालय की कुलाधिपति सावित्री जिंदल ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि पूर्वाचार्यों के प्राप्त आशीर्वाद और वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमणजी के अभिसिंचन से यह विश्वविद्यालय मानवता, अहिंसा नैतिकता के साथ अनुशासनात्मक जीवन जीने की प्रेरणा विद्यार्थियों को प्रदान कर रहा है. हमें गर्व है कि जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय संपूर्ण जैन समाज को एक विचारधारा की माला से गूंथ रहा है. लाडनूं विधायक ठाकुर मनोहर सिंह ने कहा मेरे लिए यह गौरव की बात है कि आज जैन विश्व भारती के कारण लाडनूं को पूरा विश्व जानने लगा है.
राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के मंत्री राजकुमार रिणवा ने कहा मैं आज आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि प्राप्त कर अपने आपको अभिभूत महसूस कर रहा हूं.
विश्वविद्यालय के आध्यात्मिक अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने विद्यार्थियों को श्रुत प्राप्ति, एकाग्रचित्त होने, आत्मा को धर्म में स्थापित करने, असंयम को छोड़ संयमित होने, स्वाध्याय में रत रहने, प्रमाद से बचने, आवेश को नियंत्रित करने, सहिष्णुता का विकास करने का संकल्प प्रदान कर उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा आशीर्वाद से अभिसिंचन प्रदान किया. उपस्थित समस्त विद्यार्थियों, गणमान्यों व श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि हमारी दुनिया में कुछ व्यक्ति भी होते हैं, जो साधना की पराकाष्ठा तक पहुंच जाते हैं. साधु तो साधना के माध्यम से केवल ज्ञान को प्राप्त कर सकता है. केवल ज्ञानी सर्वज्ञ होते हैं. उनके लिए कुछ भी अज्ञात नहीं होता. केवल ज्ञानी की पांच अनुत्तर उपलब्धियां-अनुत्तर ज्ञान, अनुत्तर दर्शन, अनुत्तर चारित्र, अनुत्तर तप और अनुत्तर विर्य प्राप्त करनेवाले होते हैं. आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए. ज्ञान की आराधना एक प्रकार की तपस्या है.
इस दौरान दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल के उच्च शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरांत अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि वास्तव में यह विश्वविद्यालय विद्यार्थियों में अच्छे संस्कारों से युक्त शिक्षा प्रदान कर रहा है. मैं आज आपके दर्शन कर धन्य महसूस कर रहा हूं.
उपस्थित मुख्य अतिथि सहित विशिष्ट अतिथियों को कुलाधिपति, कुलपति सहित अन्य गणमान्यों द्वारा स्मृति चिन्ह व साहित्य प्रदान कर सम्मानित किया गया.
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