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दीदी अब हुईं अनबीटेबल

नवीन कुमार राय कोलकाता : बिहार में नीतीश कुमार के पलटी मार कर भाजपा के खेमे में जाने से विरोधी खेमे में ममता बनर्जी अनबीटेबल बन गयी हैं. अब विरोधी खेमे के पास नेता के तौर पर ममता बनर्जी के अलावा कोई चेहरा रह नहीं गया है. सोनिया गांधी की खराब सेहत और राहुल गांधी […]

नवीन कुमार राय
कोलकाता : बिहार में नीतीश कुमार के पलटी मार कर भाजपा के खेमे में जाने से विरोधी खेमे में ममता बनर्जी अनबीटेबल बन गयी हैं. अब विरोधी खेमे के पास नेता के तौर पर ममता बनर्जी के अलावा कोई चेहरा रह नहीं गया है. सोनिया गांधी की खराब सेहत और राहुल गांधी के नेतृत्व की स्वीकार्यता पर उठते सवाल को देखते हुए भाजपा विरोधी आंदोलन की मुख्य धूरी ममता बनर्जी बन गयी हैं.
उल्लेखनीय है कि बिहार में नीतीश कुमार के भाजपा से हाथ मिलाने के कदम ने राष्ट्रीय राजनीति के सभी समीकरण बदल दिये हैं. राजनीति के जानकार इस पूरे घटनाक्रम को पूर्वपरिकल्पित करार दे रहे हैं. उनके मुताबिक नीतीश ने लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़ने का मन पहले ही बना लिया था.
इसका वह इशारा नोटबंदी और राष्ट्रपति चुनाव के समय दे चुके थे. नोटबंदी का जब सभी विरोधी दल विरोध कर रहे थे, उस वक्त नीतीश भ्रष्टाचार के नाम पर इसका समर्थन कर रहे थे. इसके अलावा भ्रष्टाचार के आरोप में लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, मीसा भारती, तेजस्वी यादव और लालू के दामाद के खिलाफ केंद्र की विभिन्न संस्थाओं से हो रही जांच के खिलाफ जब राजद मुखरित था तो नीतीश कुमार चुप्पी साधे रहे.
तृणमूल कांग्रेस के एक कद्दावर नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कांग्रेस की मजूबरी और विरोधी दलों के पास भाजपा के खिलाफ मुखरित चेहरा अब ममता बनर्जी के अलावा कोई नहीं है. अब तक नीतीश कुमार और ममता बनर्जी ही विरोधी दल का चेहरा हुआ करते थे, लेकिन भाजपा के साथ नीतीश के गठबंधन ने ममता के सामने रास्ता साफ कर दिया है. ऐसे में अगला चुनाव अगर होता है तो विरोधी दल की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में ममता बनर्जी के अलावा कोई सर्वमान्य चेहरा नजर नहीं आ रहा है.
वह कहते हैं कि अखिलेश यादव, मायावती, नवीन पटनायक, शरद पवार, लालू प्रसाद यादव के अलावा दक्षिण में एआइडीएमके को मिला कर गठबंधन बनाने की कवायद चल रही है. इसमें कांग्रेस मुख्य धुरी है तो वामपंथी सबसे बड़े सहयोगी. इन सबको बांध कर रखने की क्षमता अब एकमात्र ममता बनर्जी के पास ही है, लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम में जिस तरह बदलाव हो रहा है, उसको देखते हुए वामपंथी खेमे में आपसी खींचतान मची हुई है. येचूरी को साइड लाइन किया जा रहा है.
ऐसे में केरल लॉबी मजबूत हो रही है. केरल में कांग्रेस का विरोध लेफ्ट के लिए मजबूरी है. लिहाजा कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष में ममता ही नेतृत्व दे सकती हैं. इसकी वजह सांप्रदायिकता का मुद्दा बनेगी. अखिलेश और मायावती के पास वोट बैंक है, लेकिन सीट नहीं है. नवीन पटनायक और शरद पवार तो इस रेस में हैं ही नहीं. एआईडीएमके को लेकर पार्टी के अंदर खींचतान मची हुई है. लिहाजा विरोधी दल के चेहरे के रूप में ममता बनर्जी अनबीटेबल बन गयी हैं.

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