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स्कूलों में दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए रैम्प बनाना अनिवार्य

रैम्प बनाने के लिए जारी किये 10,000 रुपये कुछ सरकारी स्कूलों में दिव्यांगों के लिए रैम्प तो बना है लेकिन नहीं बना है ‘स्पेशल टाॅयलेट’ सप्ताह में दो दिन ‘स्पेशल एजुकेटर्स ’आकर लेते हैं सीडबल्यूएसएन की क्लास कोलकाता : नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की गाइडलाइन के अनुसार सभी स्कूलों में सीडबल्यूएसएन […]

रैम्प बनाने के लिए जारी किये 10,000 रुपये

कुछ सरकारी स्कूलों में दिव्यांगों के लिए रैम्प तो बना है लेकिन नहीं बना है ‘स्पेशल टाॅयलेट’

सप्ताह में दो दिन ‘स्पेशल एजुकेटर्स ’आकर लेते हैं सीडबल्यूएसएन की क्लास

कोलकाता : नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की गाइडलाइन के अनुसार सभी स्कूलों में सीडबल्यूएसएन (चाइल्ड विथ स्पेशल नीड्स) के तहत आनेवाले विद्यार्थियों के लिए रैम्प व ‘स्पेशल टाॅयलेट’ बनाना अनिवार्य है. इस नियम की कोई भी अवहेलना नहीं कर सकता है.

रैम्प के लिए प्रत्येक स्कूल को समग्र शिक्षा अभियान की ओर से 10,000 रुपये की राशि आवंटित की गयी है, जो स्कूल इस राशि का उपयोग नहीं करेंगे या रैम्प नहीं बनवायेंगे, उनके खिलाफ नोटिस जारी किया जा सकता है.

स्कूलों को यह भी निर्देश दिया गया है कि सीडबल्यूएसएन के तहत आनेवाले विद्यार्थियों के लिए क्लास ग्राऊंडफ्लोर में ही होनी चाहिए, ताकि उनको कक्षा के दौरान कोई परेशानी न उठानी पड़े. इसके लिए एक टीम नियमित स्कूलों का दाैरा करती है. यह जानकारी समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के चैयरमेन कार्तिक मन्ना ने दी. उनका कहना है कि सर्व शिक्षा मिशन की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में ही 13,017 विद्यार्थियों ने सीडबल्यूएसएन की श्रेणी में स्कूलों में नामांकन किया है.

कोई भी सामान्य स्कूल सीडबल्यूएसएन की श्रेणी के बच्चों को दाखिले के लिए इंकार नहीं कर सकता है. ऐसे विद्यार्थियों के लिए एसएसए द्वारा स्पेशल एजुकेटर्स सप्ताह में एक या दो दिन जाकर ‘क्लसटर रूम’ में इन विशेष बच्चों की क्लास लेते हैं. वहीं महानगर के सरकारी स्कूलों के हेडमास्टरों का कहना है कि स्कूलों में एक, दो या तीन बच्चे ऐसे आते हैं, जो सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़ते हैं.

इस श्रेणी के दिव्यांग बच्चों के लिए रैम्प तो बना हुआ है, लेकिन स्पेशल टाॅयलेट बने हुए नहीं हैं. नियमानुसार, ऐसे बच्चों की क्लास ग्राउंडफ्लोर में होनी चाहिए, लेकिन अधिकतर स्कूलों में क्लास एक या दो तल पर होती है, जिससे उनको परेशानी होती है. इस विषय में कैलाश विद्या मंदिर के हेडमास्टर विश्वजीत मित्रा का कहना है कि उनके स्कूल में 11वीं कक्षा का एक विद्यार्थी, सीडबल्यूएसएन श्रेणी में आता है.

स्कूल में रैम्प तो बना हुआ है, लेकिन अलग से टॉयलेट नहीं है. ऐसे छात्रों के लिए एक तरफ क्लास रूम बनाया गया है, जहां उनको पढ़ाया जाता है. पैर या हाथ से दिव्यांग, जो छात्र व्हीलचेयर पर हैं, उनके लिए स्कूल में रैम्प अनिवार्य है.

आदर्श शिक्षा निकेतन के हेडमास्टर अरूण कुमार सिंह का कहना है कि स्कूलों में रैम्प बनाना अनिवार्य है, इसके लिए 10,000 रुपये स्कूलों को मिलते हैं, लेकिन ऐसे विद्यार्थियों के लिए विशेष टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है. स्कूलों में इस श्रेणी में एकाध छात्र ही रहते हैं. उनके लिए स्पेशल एजुकेटर्स भी सप्ताह में 2 दिन स्कूल में आते हैं. कुछ गैर सरकारी संस्थाएं भी काम कर रही हैं.

आदर्श माध्यमिक विद्यालय के हेडमास्टर डॉ एपी राय का कहना है कि सीडबल्यूएसएन के तहत विद्यार्थियों के लिए न केवल रैम्प बनाना अनिवार्य है, बल्कि स्पेशल टॉयलेट, स्मार्ट बोर्ड भी क्लासरूम में होना अनिवार्य है, लेकिन स्कूलों में इस तरह की व्यवस्था नहीं है. कई स्कूलों में तो क्लासें एक या दो तल पर हैं, जिससे उनको चलने में परेशानी होती है. कई स्कूलों में तो ‘स्पेशल एजुकेटर्स’ भी नहीं हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे बच्चों के लिए ग्राऊंड फ्लोर में ही कक्षाओं की व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन अधिकांश स्कूलों में कक्षाएं एक तल पर होती हैं.

इस विषय में वेस्ट बंगाल गवर्नमेंट स्कूल टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव साैगत बसु का कहना है कि एनसीईआरटी के नियमानुसार एसईएन (स्पेशल एजुकेशनल नीड्स) में फिजिकल, सेंसरी (ग्रहणशील) व इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी की समस्या होने पर कोई भी छात्र नियमित स्कूलों में दाखिला ले सकते हैं, लेकिन उनकी बेसिक जरूरतों की व्यवस्था स्कूलों को करनी होगी. मात्र 16.88 प्रतिशत स्कूलों में ही सीडबल्यूएसएन फ्रेंडली टाॅयलेट हैं. बाकी में नहीं हैं.

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