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पश्चिम बंगाल : सरकार की उदासीनता से सूबे के आयुर्वेदिक चिकित्सक हाशिये पर

एक साल पहले आयुर्वेदिक डॉक्टरों ने राज्यपाल से सुधार के लिए लगायी थी गुहार सरकारी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज भी दयनीय हालत में आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर के 111 पद खाली कोलकाता : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 17 अक्तूबर 2017 को आयुर्वेद दिवस के मौके पर पहला अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआइआइए) देश को समर्पित करते […]

एक साल पहले आयुर्वेदिक डॉक्टरों ने राज्यपाल से सुधार के लिए लगायी थी गुहार

सरकारी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज भी दयनीय हालत में

आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर के 111 पद खाली

कोलकाता : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 17 अक्तूबर 2017 को आयुर्वेद दिवस के मौके पर पहला अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआइआइए) देश को समर्पित करते हुए कहा कि था कोई भी देश विकास की कितनी ही चेष्टा करे, कितना ही प्रयत्न करे, लेकिन वह तब तक आगे नहीं बढ़ सकता, जब तक वह अपने इतिहास व विरासत का सम्मान नहीं करता. इसे संजोकर नहीं रखता. आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति तो प्राचीन काल से ही समूची चिकित्सा जगत की सिरमौर रही है. भारत 2022 में अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनायेगा. इस अवसर पर हमारी कोशिश अगले पांच साल में आयुर्वेद की सुविधाओं में तीन गुना बढ़ोतरी करने की है. लेकिन हालात इस बयान के बिल्कुल उलट है.

पश्चिम बंगाल में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति व आयुर्वेदिक चिकित्सक अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं. राज्य के 21 जिलों में मेडिकल ऑफिसर (आयुर्वेद) के 111 पद रिक्त हैं. अगर मेडिकल कॉलेजों की बात करें, तो गत 71 वर्षों में अब तक यहां एक भी नये आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज नहीं खोले गये हैं. इतना ही नहीं, करीब 20 वर्षों से राज्य में सरकारी तौर पर स्थायी पदों पर आयुर्वेद चिकित्सकों की नियुक्ति भी नहीं हुई है.

डॉ विश्वजीत घोष के नेतृत्व में आयुर्वेद चिकित्सकों की एक टीम पिछले साल दो बार राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी से मिलकर उन्हें सारी समस्याओं से अवगत भी करा चुकी है. राज्यपाल ने राज्य सरकार को पत्र लिख कर अविलंब नियुक्ति की प्रक्रिया को चालू करने को कहा था. लेकिन उसके बावजूद भी मेडिकल कॉलेज, अस्पतालों व पंचायत स्तर पर भी आयुर्वेदिक चिकित्सक व प्रोफेसर के पद खाली पड़े हैं.

दयनीय हालत में राज्य के सरकारी आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज

पश्चिम बंगाल में तीन आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल हैं. इनमें इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट आयुर्वेदिक एजुकेशन एंड रिसर्च, जेबी राय स्टेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल तथा विश्वनाथ आयुर्वेदिक महाविद्यालय एंड हॉस्पिटल. गौरतलब है कि जेबी राय अंडर ग्रेजुएट कॉलेज है, जबकि विश्वनाथ आयुर्वेदिक महाविद्यालय फार्मेसी कॉलेज है. जेबी राय की स्थापना 1916 में महात्मा गांधी ने की थी.

तब से अब तक सौ साल से अधिक समय बीत गया. यह अंडर ग्रेजुएट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज ही है. ये सभी कॉलेज संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं. इनमें प्रोफेसर के 35 पद रिक्त हैं, तो वहीं इन कॉलेजों में दवाइयों का भी टोटा है. इतना ही नहीं, रिसर्च के लिए नियमानुसार एक आयुर्वेद के प्रोफेसर को तीन एमडी छात्रों को गाइड करना पड़ता है, लेकिन प्रोफेसरों की कमी के कारण एक को छह एमडी के छात्रों को गाइड करना पड़ता है.

राज्य से हर साल 100 मेडिकल स्टूडेंट्स बैचलर ऑफ आयुर्वेद, मेडिसीन एंड सर्जरी (बीएएमएस) की डिग्री प्राप्त करते हैं. जहां एमबीबीएस करते ही एक मेडिकल स्टूडेंट्स हजारों रुपये कमाने लगते हैं, वहीं आयुर्वेद के अधिकांश छात्र बीएएमएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद बेरोजगारी की मार झेलना पड़ता है. आरटीआइ से हमें यह जानकारी मिली है कि राज्य के 21 जिलों में आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसरों के 111 पद रिक्त हैं.

वहीं, पंचायत मेडिकल ऑफिसर और अन्य पदों पर अस्थाथी तौर से 142 नियुक्तियां हुई हैं. राज्य सरकार ने वर्ष 2014 में आयुष विभाग का गठन किया था. जिसे 2016 के बाद भंग कर दिया गया. इससे सरकार की उदासीनता का पता चलता है कि वह आयुर्वेद या आयुष के विकास के लिए कितनी तत्पर है.

डॉ विश्वजीत घोष, सीनियर रिसर्च फेलो सीसीआरएएस, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार

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