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मकर संक्रांति 14 जनवरी को, बाजार में फैली तिलकुट की सोंधी खुशबू

दुर्गापुर : भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक मकर संक्रांति पहली बार पूर्ण रूप से इस वर्ष 14 जनवरी को मनाई जायेगी. पौष पूर्णिमा के बाद दूसरा बड़ा स्नान पर्व मकर संक्रांति का होगा. इस बार यह खास है क्योंकि इस दिन महायोग बन रहा है. विद्वानों का कहना है कि 28 साल बाद […]

दुर्गापुर : भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक मकर संक्रांति पहली बार पूर्ण रूप से इस वर्ष 14 जनवरी को मनाई जायेगी. पौष पूर्णिमा के बाद दूसरा बड़ा स्नान पर्व मकर संक्रांति का होगा.
इस बार यह खास है क्योंकि इस दिन महायोग बन रहा है. विद्वानों का कहना है कि 28 साल बाद ऐसा संयोग बना है. शनिवार की दोपहर 1.51 बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इसी दिन से वह उत्तरायण हो जायेंगे. संक्रांति के त्यौहार को लेकर शिल्पांचल के सभी बाजारों में अभी से ही विशेष चहल-पहल देखी जा रही है. विशेष रूप से इस त्यौहार में तिल के बने सामान, चूड़ा, मीठा, दूध और दही की मांग रहती है. इसे लेकर बाजारों में तिलकुट की सोंधी खुशबू फैलने लगी है. मधुमेह रोगियों के लिए शुगर फ्री तिलकुट भी बाजार में उपलब्ध है. हालांकि इस बार तिलकुट बाजार में महंगाई की मार पड़ी है. चौक-चौराहों पर मौसमी कारोबारियों ने तिलकुट व तिल से बने सामानों की दुकानें सजा ली है. बाजारों में विभिन्न प्रकार के चूड़ा और मीठा उतारा गया है. मकर संक्रांति और इन सामिग्रयों के सेवन करने की परम्परा अनादि काल से चली आ रही है. इस दिन विभिन्न नदी तटों पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ पवित्र स्नान के िलये उमड़ती है.
स्नान के बाद श्रद्धालु सूर्यदेव को जलांजलि अिर्पत करते हैं. तत्पश्चात यथासम्भव दान-पुण्य करते हैं. इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है. इसमें खिचड़ी, वस्त्र व तिल का दान किया जाता है. इसके साथ ही तिल का सेवन करने का विधान है. ज्ञात हो कि मकर संक्रांति त्यौहार के कई नाम है. अलग-अलग राज्यों में इस पर्व को विभिन्न तरीके से मनाया जाता है. हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाते हैं. उत्तरप्रदेश व बिहार में इसे खिचड़ी कहा जाता है. उत्तरप्रदेश में इसे दान का पर्व भी कहा जाता है.बंगाली समुदाय के लोग इसे पौष संक्रांति के रूप में मानते है.
दक्षिण भारत में इसे पोंगल का पर्व कहते हैं. ऐसा मानना है कि संक्रांति के दिन भगवान भास्कर (सूर्य) अपने पुत्र शनिदेव से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं. चूंकि शनिदेव मकरराशि के स्वामी है. अतएव इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इस दिन सूर्य के उत्तरायण होते ही एक माह से मांगलिक कार्यों पर लगा प्रतिबन्ध भी खत्म हो जाता है. मकर संक्रांति से सभी मांगलिक कार्यों की धूम शुरू हो जाती है और शहनाइयों की गूंज भी शुरू हो जाती है. गृह प्रवेश एवं नए कार्यों की शुरुआत हो जाती है.

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