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हर मोर्चे पर करनी होगी पूरी तैयारी
चुनौती. तृणमूल के शासनकाल में जीत दुहराने की चुनौती माकपा विधायक जहांआरा के सामने माकपा के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के शासनकाल में लाल दुर्ग के रूप में परिचित जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र से जहांआरा खान ने वर्ष 2011 में भी लाल पताका लहराने में सफलता पायी थी. उस समय विपक्ष की नेत्री ममता बनर्जी के […]
चुनौती. तृणमूल के शासनकाल में जीत दुहराने की चुनौती माकपा विधायक जहांआरा के सामने
माकपा के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के शासनकाल में लाल दुर्ग के रूप में परिचित जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र से जहांआरा खान ने वर्ष 2011 में भी लाल पताका लहराने में सफलता पायी थी. उस समय विपक्ष की नेत्री ममता बनर्जी के आगमन की लहर थी.
लेकिन इस वर्ष ममता बनर्जी के नेतृत्व में पांच वर्षो का शासनकाल है.
उनके सामने तृणमूल के जिलाध्यक्ष वी शिवदासन उर्फ दासू तथा भाजपा के संतोष सिंह खड़े है. उनके क्षेत्र में तृणमूल का वोट बैंक लगातार बढ़ रहा है. आसनसोल : जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र से माकपा ने निवर्त्तमान विधायक जहांआरा खान को फिर से प्रत्याशी बना कर चुनाव मैदान में उतारा है. इसके पहले वर्ष 2011 में हुए चुनाव में भी उन्होंने शानदार जीत दर्ज की थी. हालांकि उन्हें निवर्त्तमान धीरज लाल हाजरा को हटा कर प्रत्याशी बनाया गया था. वे अल्पसंख्यक समुदाय के लिए भी प्रतिनिधि बन कर उभरी थी.
उनके माध्यम से माकपा ने महिललाओं व अल्पसंख्यकों को तरजीह देने का दावा किया था. सक्रिय राजनीति में आने से पहले वह जामुड़िया के निजी विद्यालय में शिक्षिका थी. वर्ष 2008 में हुए पंचायत चुनाव में उन्हें माकपा ने पंचायत समिति सदस्य के चुनाव के लिए प्रत्याशी बनाया. उन्होंने इसमें निर्णायक जीत दर्ज की. बाद में उन्हें पंचायत समिति का अध्यक्ष बनाया गया.वर्ष 2011 के ममता बनर्जी की लहर में पार्टी ने उन्हें विधायक का प्रत्याशी बनाया और उन्होंने शानदार जीत दर्ज की.
पिछले चुनाव में उन्हें 72,411 मत मिले थे. जो कुल मतदान का 53 फीसदी था. लेकिन वर्ष 2006 में हुए विधानसभा चुनाव की तुलना मे ं उन्हें 15.98 फीसदी कम मत मिले थे. उनके प्रतिद्वंदी रहे तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी प्रभात कुमार चटर्जी को 58,538 मत मिले थे.
जो कुल मतदान का 43 फीसदी था. इस चुनाव में तृणमूल के खाते में 14.91 फीसदी की वृद्धि हुयी थी. भाजपा प्रत्याशी डॉ प्रमोद पाठक को चार फीसदी यानी 6,146 मत मिले थे. इस चुनाव में उनके व तृणमूल के बीच मतों में दस फीसदी का अंतर था. उनके सामने इस अंतर को बनाये रखने की चुनौती है.
लगातार बढ़ता रहा है तृणमूल का ग्राफ
वर्ष 2011 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के बीच गंठबंधन होने के बावजूद जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र में वाममोर्चा को जीत मिली थी.
माकपा प्रत्याशी जहांआरा खान ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी तृणमूल गंठबंधन के प्रत्याशी प्रभात चटर्जी को 14 हजार से अधिक मतों से पराजित किया. हालांकि इस चुनाव में तृणमूल के मतों में काफी इजाफा हुआ था. वर्ष 2006 के विधानसभा चुनाव में माकपा के प्रार्थी धीरज लाल हाजरा को 71,999 मत मिले थे जबकि तृणमूल प्रत्याशी तपन चक्रवर्ती को मात्र 17,226 मत मिले थे.
उस समय माकपा की बढ़त 54 हजार से अधिक मतों की थी. वर्ष 2014 के संसदीय चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उठी भाजपा की आंधी ने इस विधानसभा क्षेत्र में अपना प्रभाव दिखाया. भाजपा के मतों में काफी वृद्धि हुयी. तृणमूल ने भी अपने मतों की संख्या बढ़ायी. लेकिन तमाम निषम परिस्तिथियों में भी वाममोर्चा ने बढ़त बनायी.
इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रार्थी बाबुल सुप्रिय को 38,322 मत, तृणमूल प्रत्याशी दोला सेन को 47,472 मत तथा माकपा प्रत्याशी वंशगोपाल चौधरी को 47,735 मत मिले. माकपा ने तृणमूल पर पौने तीन सौ मतों की लीड ली. जबकि भाजपा तीसरे स्थान पर रही. इस तरह भाजपा को 29 फीसदी, तृणमूल को 36 फीसदी तथा माकपा को 37 फीसदी मत इस विधानसभा क्षेत्र में मिले थे.
लेकिन वर्ष 2015 में हुए आसनसोल नगर निगम चुनाव में तृणमूल ने पासा पलट गया. विधानसभा क्षेत्र में स्थित 12 वाडरे में से माकपा को मात्र दो सीट तथा तृणमूल को दस वार्डो में जीत मिली. भाजपा खाता भी नहीं खोल पायी. इस प्रकार 10 वार्डो में तृणमूल ने जीत दर्ज कर राजनीतिक वर्चस्व का प्रदर्शन किया.
आपातकाल के बाद कभी नहीं हारा वाममोर्चा
देश की आजादी के बाद वर्ष 1952 में विधानसभा चुनाव कराये गये. उस समय बर्दवान जिले में कुल 20 विधानसभा क्षेत्र बनाये गये थे. उस समय जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व नहीं था. इसके अधिकांश इलाके रानीगंज विधानसभा व आसनसोल विधानसभा क्षेत्र में शामिल थे.
वर्ष 1957 में हुए विधानसभा चुनाव के पहले हुए पुनर्गठन में जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र में अस्तित्व में आया लेकिन रानीगंज का विलय कर उसे अंडाल बना दिया गया. उस समय जामुड़िया को दो प्रतिनिधियों का अधिकार था.
उस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बैद्यनाथ मंडल सामान्य व पीएसपी के प्रत्याशी अमरेन्द्र मंडल अनुसूचित जाति प्रतिनिधि के रूप में चुने गये. वर्ष 1962 में हुए विधानसभा चुनाव में अमरेन्द्र मंडल कांग्रेस प्रत्याशी बने तथा पीएसपी प्रत्याशी तीनकोड़ी मंडल को पराजित किया. वर्ष 1967 के चुनाव जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गया.
लेकिन इस चुनाव में पीएसपी प्रत्याशी तीनकौड़ी मंडल ने कांग्रेसी प्रत्याशी बने निवर्त्तमान विधायक अमरेन्द्र मंडल को परास्त कर दिया. लेकिन वर्ष 1969 में हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अमरेन्द्र मंडल ने पीएसपी प्रत्याशी दुर्गादास मंडल को हरा दिया तथा तीसरी बार विधायक बन गये.
लेकिन वर्ष 1971 में हुए चुनाव में दुर्गादास मंडल माकपा के प्रत्याशी बन कर चुनाव लड़े तथा कांग्रेस (आर) प्रत्याशी अमरेन्द्र मंडल को पांच हजार मतों से हरा कर विधानसभा में प्रवेश किया. लेकिन वर्ष 1972 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अमरेन्द्र मंडल ने सीधे संघर्ष में माकपा प्रत्याशी रहे दुर्गादास मंडल को पराजित कर दिया.
आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में चार प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे. माकपा के विकास चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी चन्द्रशेखर बनर्जी को साढ़े 11 हजार मतों से पराजित किया. वर्ष 1982 में त्रिकोणीय संघर्ष में माकपा के निवर्त्तमान विधायक विकास चौधरी ने कांग्रेस के प्रत्याशी प्रदीप भट्टाचार्या को पराजित किया.
इसके बाद वर्ष 1987 में हुए चुनाव में पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे. लेकिन माकपा के प्रत्याशी विकास चौधरी ने कांग्रेस फ्रत्याशी विश्वनाथ चक्रवर्ती को 22 हजार मतों से पराजित कर दिया. वर्ष 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर अपना प्रत्याशी बदला. इस बार उसने तापस बनर्जी को प्रत्याशी मनोनीत किया.
लेकिन आठ प्रत्याशियों के बीच माकपा के विकास चौधरी ने उन्हें 36 हजार मतों से पराजित कर लगातार चौथी जीत दर्ज की. वर्ष 1996 में हुए चुनाव में माकपा ने अपना प्रत्याशी बदल दिया. इस बार पल्लव कवि प्रत्याशी बने. सात उम्मीदवारों के बीच उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी संतोष अधिकारी को 36 हजार मतों से हरा कर माकपा की जीत बरकरार रखी. वर्ष 2001 में जामुड़िया में शिवदासन नायर (वी शिवदासन उर्फ दासू) कांग्रेस व तृणमूल गंठबंधन के प्रत्याशी बने.
उन्हें माकपा प्रत्याशी पल्लव कवि ने 55 हजार से अधिक मतों से पराजित किया. 1.12 लाख मतों में से श्री कवि को 79,581 मत मिले थे. वर्ष 2006 में हुए चुनाव में माकपा ने प्रत्याशी बदल कर धीरजलाल हाजरा को प्रत्याशी बनाया.
उनके खिलाफ तीन प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. लेकिन श्री हाजरा को 71,999 मत मिले जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी तपन चक्रवर्ती को मात्र 17,226 मत मिले. वर्ष 2011 में भी माकपा ने मतों की बढ़त में कमी आने के बाद भी जीत का सिलसिला जारी रखा. माकपा की जहांआरा खान ने 14 हजार मतों से जीत दर्ज की.
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