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दीदी, ट्रैफिक नहीं संभालते, शिकार करते हैं सिविक वोलेंटियर शहर में !
आसनसोल : आखिरकार, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी स्वीकार कर ही लिया कि उन्हें बड़ी संख्या में शिकायतें मिल रही हैं कि ‘ सेफ ड्राइव, सेव लाइफ ‘ अभियान में सिविक वोलेंटियरों से वसूली कराई जा रही है. यह शिकायत आसनसोल के लिए काफी पुरानी है. यहां की आम जनता के साथ-साथ व्यवसायी भी महीनों […]
आसनसोल : आखिरकार, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी स्वीकार कर ही लिया कि उन्हें बड़ी संख्या में शिकायतें मिल रही हैं कि ‘ सेफ ड्राइव, सेव लाइफ ‘ अभियान में सिविक वोलेंटियरों से वसूली कराई जा रही है. यह शिकायत आसनसोल के लिए काफी पुरानी है. यहां की आम जनता के साथ-साथ व्यवसायी भी महीनों से पुलिस आयुक्त तथा जिलाशासक तक से शिकायत करते रहे हैं.
उन्होंने यहां तक कहा कि इस वसूली से उनका व्यवसाय प्रभावित हो रहा है, लेकिन इस वसूली पर कोई रोक नहीं लगी. यह बदस्तूर चलता रहा. इसका खामियाजा स्वाभाविक तौर पर राज्य सरकार तथा सत्ताशीन तृणमूल को भुगतना पड़ा है. स्वयं मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि थानेदार, बीडीओ जैसे अधिकारी राज्य सरकार के चेहरे होते हैं तथा इनके कार्यों से राज्य सरकार की छवि बनती और बिगड़ती है.
स्वामी विवेकानंद सरणी के जुबली पेट्रोल पंप का चौक हो या कालीपहाड़ी का चौक, आधा दर्जन सिविक वोलेंटियरों का कार्य सिर्फ झारखंड नंबर के दोपहिया और चार पहिया वाहनों की शिनाख्त करना और उन्हें रोक कर जांच के नाम पर वसूली और तंग करना है. झारखंड के सीमावर्ती इलाकों से लोग विभिन्न कार्यों से आसनसोल आते हैं. इनमें इलाज से लेकर शिक्षा तक तथा व्यवसाय से लेकर स्टेशन से दूरगामी ट्रेन पकड़ने के लिए आना-जाना शामिल है.
झारखंड नंबर के वाहनों को देखते ही उन्हें रोका जाता है. इसके बाद शुरू होती है दस्तावेजों की मांग. वाहन से संबंधित दस्तावेज, प्रदूषण से संबंधित प्रमाण पत्र, चालक के ड्राइविंग लाइसेंस आदि दिखाने के बाद ऑथोराइजेशन मांगा जाता है. इसे दिखाने के बाद कई अन्य तरह के दस्तावेज मांगे जाते हैं.
यह सिलसिला तब तक चलता है, जब तक चालक अपनी गलती नहीं मान लेता. फिर इसके बाद शुरू होता है जुर्माना की राशि का निर्धारण. इसके बाद की प्रक्रिया से सभी अवगत हैं. मुख्य परेशानी यह है कि झारखंड से आनेवाले वाहन के यात्री किसी न किसी कार्य से आते हैं तथा वे किसी विवाद में नहीं फंसना चाहते. मन मसोस कर जुर्माना भरते हैं तथा राज्य सरकार के खिलाफ आक्रोश जता कर वापस चले जाते हैं.
आसनसोल के किसी निवासी से बात होने पर अपना आक्रोश खुल कर निकालते हैं. मजबूरी न होने पर आसनसोल न आने का निर्णय लेते है. इसका का परिणाम निकला है कि झारखंड के सीमावर्ती इलाकों निरसा से जामताड़ा तक के व्यवसायी आसनसोल के बजाय धनबाद जाने लगे हैं. इससे आसनसोल का व्यवसाय प्रभावित हो रहा है. कई बार व्यवसायिक संगठनों ने इसका प्रतिवाद किया लेकिन कोई रिजल्ट नहीं निकला.
सरकार की छवि ट्रैफिक पुलिस विभाग ने ही बिगाड़ी
वाहन चेकिंग के दौरान तुष्टीकरण की नीति को लेकर भी आम नागरिकों में काफी आक्रोश है. वे इसके लिए सीधे मुख्यमंत्री या राज्य सरकार को दोषी मानते हैं, जबकि तृणमूल के अधिकांश नेता का दावा है कि यह पुलिस अधिकारियों का अपना निर्णय है. ट्रॉफिक पुलिस के लिए दो ‘ हेलमेट ’ मान्यताप्राप्त हैं. इनमें एक जो सही मायने में हेलमेट है और दूसरा आधे सर पर पहनी जानेवाली कपड़े की टोपी है.
आम बाइक चालकों को जांच के नाम पर अक्सरहां रोक दिया जाता है. उनसे कागजात की मांग की जाती है. लेकिन जो सर पर आधी टोपी पहनते हैं, उनके वाहनों की कभी जांच नहीं होती या हेलमेट नहीं होने पर उनका जुर्माना नहीं कटता. इसके साथ ही कुछ खास तबके के लोगों के वाहनों की भी जांच नहीं होती, जिनमें प्रेस और मीडिया भी शामिल हैं.
हॉट्टन रोड मोड़ पर होगा बड़ा हादसा किसी दिन
जांच के नाम पर वाहन रोकने के ट्रेंड के कारण किसी भी दिन शहर की हृदयस्थली हॉट्टन रोड मोड पर बड़ा हादसा हो सकता है. चौक पर ही गिरजा मोड़ अप लेन में ट्रॉफिक की जांच चौकी है. सिंगनल लाल होते ही सभी वाहन खड़े होते हैं. इधर वाहन चालक तथा ट्रॉफिक सिविक वोलेंटियर दोनों सिंगनल हरा होने का इंतजार करते हैं. वोलेंटियर बीच सड़क पर दो-तीन की संख्या में खड़े हो जाते हैं.
सिंगनल हरा होते ही वाहन चालक तेजी से अपने वाहन स्टार्ट करते हैं और दो ही सेकेंड में सिविक वोलेंटियर झारखंड का नंबर देख कर वाहनों को घेरना शुरू कर देते हैं. ऐसा लगता है कि वाहन चालक हिरण हो तथा सिविक वोलेंटियर शेर. वाहनों को तुरंत रोक कर साइड करने को कहा जाता है. फिर शुरू हो जाती है पारंपरिक जांच प्रक्रिया.
जिस दिन भी किसी वाहन का ब्रेक फेल हुआ या वाहन अनियंत्रित हुई, बड़े हादसे को कोई रोक नहीं पायेगा. व्यवसायिक संगठनों ने कई बार सुझाव दिया कि जांच चौकी को चौक से हटा कर किसी भी जगह सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाये, लेकिन कोई पहल नहीं होती है. बाजार, स्टेशन, जिला अस्पताल पास में होने से यहां शिकार की संख्या हजारों में जो होती है.
आक्रोश समाप्ति के लिए जरूरी सुझाव
व्यवसायिक संगठनों तथा तृणमूल के अधिकांश नेतआं का सुझाव है कि वाहन जांच कड़ाई से हो तथा कागजात नहीं रहने पर जुर्माना भी वसूला जाये. लेकिन सीमा में प्रवेश करते ही वाहन चालकों को बता दिया जाये कि कमीश्नरेट इलाके में घुसने के लिए वाहन से संबंधित किन-किन दस्तावेजों की जरूरत है.
संभव हो तो अस्थायी तौर पर उन्हें वे दस्तावेज शुल्क लेकर बना दिये जाये. इससे राज्य सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा तथा वाहन चालकों में आक्रोश भी नहीं बढ़ेगा. जिनके पास दस्तावेज नहीं होंगे, वे या तो दस्तावेज बनायेंगे या वापस लौटेंगे. इससे राज्य सरकार, सत्ताशीन पार्टी तृममूल की साख तो बनेगी ही, आम जनता को भी सहूलियत होगी.
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