दो वर्ष की उम्र में बस की चपेट में आने से पैर हो गया था पूरी तरहसे बर्बाद
रिक्शाचालक पिता की आर्थिक स्थिति नहीं थी 90 हजार खर्च कर कृत्रिम पैर लगाने की
जर्मन कंपनी को विश्वास में लेकर ऑपरेशन किया ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ दीपांकर सेन ने
बांकुड़ा : चेरीटेबुल संस्था ‘प्रयास’ ने बांकुड़ा जिले के केसियाकोले निवासी रमा गोराई का जीवन बदल दिया. दो वर्ष की उम्र में जब बच्चे बढ़ रहे होते हैं, खेलना और पढ़ना सीख रहे होते हैं, उस समय रमा के जीवन में एक हादसा हुआ. उसके पिता रिक्शाचालक थे. उसकी स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी कि वह शहर में रह सके. वह मेन रोड के किनारे एक छोटे घर में रहते थे. रमा अक्सरहां सड़क पार करने के दौरान दोनों ओर वाहनों का आना-जाना देखती थी.
लेकिन एक दिन दुर्भाग्य से वह तेज गति से जा रही बस की चपेट में आ गई तथा उसका बांया पैर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया. उसने और उसके परिजनों ने मान लिया था कि वह अपने पैरों पर नहीं चल पायेगी. बांकुड़ा सम्मेलनी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में उन्होंने इलाज कराया. क्योंकि किसी निजी अस्पताल में इलाज कराने की उनकी आर्थिक स्थिति नहीं थी. ट्राई साइकिल पर चलने की विवशता हो गई. विभिन्न अस्पतालों तथा चिकित्सकों के पास जाने के बाद एक ही जबाब मिल रहा था कि पैर का वह हिस्सा बदलना होगा तथा कृत्रिम पैर लगाने के लिए 90 हजार रूपये की जरूरत होगी. यह उसके वश की बात नहीं थी.
अचानक उनकी मुलाकात ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ दीपांकर सेन से हुई, उन्होंने आश्वस्त किया कि बिना खर्च के भी उसका पैर बदला जा सकता है. डॉ सेन ने जर्मन के उस कंपनी से संपर्क किया जो कृत्रिम अंग बनाती है. उन्होंने रमा की कहानी उन्हें सुनाई. उक्त कंपनी सहायता करने और कम कीमत पर अंग उपलब्ध कराने पर सहमत हो गई. डॉ सेन तथा उसके दो मित्रों ने प्रयास फाउंडेशन शुरू किया जो इस समय दुर्गापुर सिटी सेंटर में स्थित है. यह संस्था रमा सहित चार अन्य बच्चों के जीवन में भी खुशहाली लौटा चुकी है.
संस्था का उद्देश्य शून्य लागत पर खराब हो चुके मानव अंगों के स्थान पर कृत्रिम अंग लगाना है. ऑपरेशन के बाद रमा क्रच की सहायता से चलने लगी है. डॉ सेन का दावा है कि भविष्य में वह बिना क्रच की सहायता से चल सकेगी तथा सामान्य जीवन बिता सकेगी.
बीते स्वतंत्रता दिवस समारोह में रमा गोराई तथा उसके पिता वासुदेव गोराई को दुर्गापुर आमंत्रित किया गया था तथा उसे राष्ट्रीय ध्वजारोहण करने का मौका दिया गया. रमा इन दिनों खुश है क्योंकि वह चल पा रही है. 25 वर्ष के बाद फिर से उसके चेहरे पर खुशी खिलने लगी है. उसके परिजनों ने इसकी आशा ही छोड़ दी थी कि कभी वे अपनी बेटी को चलते देख पायेंगे. रमा डॉ सेन के प्रति काफी आभारी है.
डॉ सेन ने कहा कि वह चाहते तो विदेश में डॉक्टरी कर सकते थे और काफी पैसा कमा सकते थे. लेकिन उनकी चाहत हमेशा रही कि जिस जमीन पर उन्होंने जन्म लिया, उसके लिए कुछ न कुछ जरूर करें. वह जरूरतमंदों की मदद करना चाहते हैं तथा इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने प्रयास फाउंडेशन की स्थापना की है. उन्हें खुशी है कि उनकी टीम के कार्यों से उन सभी के चेहरों पर खुशी लौट रही है, जिन्होंने हमेशा के लिए मान लिया था कि वे कभी सामान्य नहीं हो पायेंगे.