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हिंदी स्नातकोत्तर के तीन सेंटरों की सौ सीटों पर नामांकन नहीं अब तक

केएनयू. कम छात्र के तर्क को आधार बना नामांकन लटकाया बर्दवान लॉबी ने आसनसोल : काजी नजरूल विश्वविद्यालय (केएनयू) के हिंदी विभाग के स्नातकोत्तर में यूनिवर्सिटी सहित बीबी कॉलेज (आसनसोल) तथा टीडीबी कॉलेज (रानीगंज) के सेंटरों में अभी तक नामांकन नहीं होने के पीछे बर्दवान लॉबी मूल रूप से आवेदक स्टूडेंट्सों की कम संख्या को […]

केएनयू. कम छात्र के तर्क को आधार बना नामांकन लटकाया बर्दवान लॉबी ने
आसनसोल : काजी नजरूल विश्वविद्यालय (केएनयू) के हिंदी विभाग के स्नातकोत्तर में यूनिवर्सिटी सहित बीबी कॉलेज (आसनसोल) तथा टीडीबी कॉलेज (रानीगंज) के सेंटरों में अभी तक नामांकन नहीं होने के पीछे बर्दवान लॉबी मूल रूप से आवेदक स्टूडेंट्सों की कम संख्या को आधार बना रही है. तर्क है कि पर्याप्त संख्या में छात्र नहीं मिलने के कारण कई मेरिट सूची निकालनी पड़ रही है. लेकिन पहली सूची के स्टूडेंट्सों की नामांकन तथा उनकी काउंसलिंग में इन दोनों कॉलेज सेंटरों की अनुपस्थिति को लेकर चुप्पी है.
स्वयं केएनयू के आंकड़े भी बर्दवान लॉबी के इस तर्क को खारिज कर रहे हैं. सनद रहे कि केएनयू के आधिकारिक वेबसाइट पर इससे संबंधित कोई विवरण उपलब्ध नहीं है तथा वर्क इन प्रोग्रेस दिखाया जा रहा है. जबकि जानकार सूत्रों के अनुसार यूनिवर्सिटी में 45, बीबी कॉलेज में 30 तथा टीडीबी कॉलेज में 25 सीटें आवंटित की गयी हैं.
विभिन्न सूत्रों के अनुसार केएनयू से संबद्ध 14 कॉलेजों में से 12 कॉलेजों में हिंदी विषय में ऑनर्स की पढ़ाई होती है. इनमें कुल 578 सीटें होने के बावजूद हिंदी में स्नातकोत्तर (पीजी) के लिए केएनयू को छात्न नहीं मिल रहे हैं. केएनयू की स्थापना वर्ष 2012 में होने के उपरांत 24 जून, 2015 को बर्दवान विश्वविद्यालय के अधीन रहे 14 कॉलेज केएनयू के अधीन आ गये
इनमें देशबंधु महाविद्यालय (चित्तरंजन) में हिंदी ऑनर्स की 28 सीटें, काजी नजरूल इस्लाम महाविद्यालय (चुरु लिया) में 33 सीटें, कुल्टी कॉलेज में हिंदी ऑनर्स की 35 सीटें, बीबी कॉलेज (आसनसोल) में हिंदी ऑनर्स की 50 सीटें, विधान चंद्र कॉलेज (आसनसोल) में हिंदी ऑनर्स की 50 सीटें, आसनसोल गल्र्स कॉलेज में हिंदी ऑनर्स की 50 सीटें, रानीगंज गल्र्स कॉलेज में हिंदी ऑनर्स की 60 सीटें, टीडीवी कॉलेज (रानीगंज) में हिंदी ऑनर्स की सबसे अधिक 87 सीटें, खान्द्रा कॉलेज में हिंदी ऑनर्स की 50 सीटें, पाण्डेश्वर कॉलेज में हिंदी ऑनर्स की 35 सीटें, माइकल मधुसूदन मेमोरियल कॉलेज में हिंदी ऑनर्स की 35 सीटें तथा मानकर कॉलेज में हिंदी ऑनर्स की 45 सीटें यानी कुल 578 सीटें हैं.
बर्दवान जिला के विभाजन होने के बाद इस वर्ष मानकर कॉलेज पुन: बर्दवान विश्वविद्यालय के अधीन चला गया है. लेकिन केएनयू के वेबसाइट पर अब भी मानकर कॉलेज का नाम अंकित है. इनके साथ ही दो कॉलेज दुर्गापुर वूमेंस कॉलेज और दुर्गापुर गवर्मेन्ट कॉलेज केएनयू के अधीन है, लेकिन यहां हिंदी ऑनर्स की पढ़ाई नहीं होती है.
204 छात्रों की जिम्मेदारी किसकी
हिंदी विषय में उच्च शिक्षा को राज्य सरकार ने आसनसोल में छात्नों के द्वार पर ला खड़ा किया है. हर सुविधा उपलब्ध करायी गयी है. इसके बावजूद छात्न क्या शिक्षा से विमुख हो रहे है या फिर बड़ी संख्या में ड्रॉप आउट हो रहे है. स्नातकोत्तर के तीन सेंटरों की 100 सीट पर यहां से उत्तीर्ण होनेवाले 204 छात्न क्यों नहीं आये? यह जिम्मेदारी अभिभावकों, सरकार, शिक्षकों तथा हिंदी प्रेमी समाजसेवी संगठनों की है.
छात्न कहां गये, यह यक्ष प्रश्न है. इसका सही जवाब कोई नहीं दे पा रहा है. हर कोई कयास लगा रहा है. अधिकांश का मानना है कि केएनयू में सक्रिय बर्दवान लॉबी सरकार की शिक्षा नीति को विफल करना चाहती है. छात्नों को लेकर उपेक्षा की नीति है. यदि वह भीतरघात नहीं कर होती तो स्नातक स्तर पर ही छात्नों को इसी यूनिवर्सिटी के अधीन स्नातकोत्तर करने के लिए मोटीवेशन करती. कॉलेज के शिक्षकों के साथ समन्वय स्थापित करती. लेकिन किसी ने ऐसी पहल नहीं की.
पीजी में दाखिल की प्रक्रिया क्या है
पीजी में दाखिले के लिए अलग अलग यूनिवर्सिटी की अपनी अपनी नीतियां है. ऑनर्स में 40 प्रतिशत अंक प्राप्त करने पर ही छात्न ऑनर्स ग्रेजुएट बन जाते है और पीजी में दाखिले के लिए मान्य हो जाते है. राज्य के कुछ विश्वविद्यालय अपने अधीन पीजी सेंटर वाले कॉलेजों को स्वायत्तता देते है कि वे अपने कॉलेज में पीजी में छात्नों की दाखिला के लिए खुद विज्ञप्ति जारी करे और दाखिला भी खुद ले. केएनयू में यह प्रक्रि या यूनिवर्सिटी स्तर पर हो रही है. अपने और अपने अधीनस्थ दो सेंटरों के लिए नामांकन तथा उनका सेंटर आवंटन उसकी जिम्मेदारी है.
इसके लिए काउंसिलिंग होती है. जानकारों के अनुसार सीटों से अधिक आवेदकों की संख्या होने पर कट मार्क्‍स के आधार पर मेरिट सूची जारी होती है. लेकिन सीटों से आवेदकों की संख्या कम होने पर सबका नामांकन किया जाता है. फिर हिंदी विभाग में यदि छात्रों की संख्या कम है तो मेरिट लिस्ट क्यों बनायी गयी? या तो आवेदकों की संख्या अधिक थी या जानबूझ कर छात्रों की कमी का संकट क्रिएट किया गया. यदि कई मेरिट लिस्ट बनी भी तो पहली व दूसरी मेरिट लिस्ट के आधार पर नामांकन कर छात्रों को सेंटरों में क्यों नहीं भेजा गया? जबकि अन्य विषयों में नामांकन के बाद पढ़ाई शुरू हो गयी है.
केएनयू अंतर्गत 12 कॉलेजों में हिंदी ऑनर्स की 578 सीट होने के बावजूद इसे दो कॉलेज सेंटरों और खुद यूनिवर्सिटी की 100 सीटों के लिए छात्न नहीं मिल रहे, बर्दवान लॉबी का यह तर्क गले नहीं उतरता है.
सूत्नों के अनुसार विभिन्न कॉलेजों में हिंदी ऑनर्स की कुल 578 सीटों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आदि कोटे की कुछ सीटों को छोड़ कर सभी सीटें भर जाती है. इस वर्ष 568 में से 92 फीसदी सीटें भर गई है. पिछले वर्ष सीटों की संख्या 507 थी. छात्नों के उतीर्ण का प्रतिशत विभिन्न कॉलेजों में अलग-अलग था. कुछ कॉलेजों में रिजल्ट शत-प्रतिशत था. बाकी में 90 फीसदी से लेकर 50 फीसदी के बीच था. औसत सभी कॉलेजों को मिलाकर 60 प्रतिशत छात्न हिंदी ऑनर्स में उतीर्ण हुए यानी 304 छात्न संभवत: उत्तीर्ण हुए.
हिंदी में ऑनर्स करने वालों के लिए आगे की पढ़ाई स्नातकोत्तर ही है. इनमें से कुछ छात्नाओं की शादी हो जाती है, कुछ आर्थिक कारण से आगे नहीं पढ़ पाते, कुछ नौकरी की तैयारी में जुट जाते है, कुछ छात्न पढ़ने के लिए बाहर चले जाते है. लेकिन 304 में अधिकतम इनकी संख्या 100 भी नहीं होती है. इस स्थिति में 204 छात्न ऑनर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद कहाँ जाते है, यह प्रश्न काफी गंभीर हैं.
छात्र कम तो टीडीबी कॉलेज में नयी मंजूरी कैसे?
यूनिवर्सिटी में सक्रिय बर्दवान लॉबी कुलपति डॉ साधन चक्रवर्ती को भी अपमानित करने की कोशिश कर रही है. बीबी कॉलेज सेंटर में नामांकन को लेकर हर वर्ष कोई न कोई विवाद किया जाता है. पिछले शिक्षण सत्र में गिनती के छात्र सेंटर को मिले.
यदि छात्रों की कमी है तो यूनिवर्सिटी ने इस वर्ष से टीडीबी कॉलेज में नया सेंटर शुरू करवे का निर्णय क्यों लिया? इस सेंटर को खोलने में कुलपति डॉ चक्रवर्ती ने स्वयं दिलचस्पी ली थी.
सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद कॉलेज को इसकी आधिकारिक सूचना दी गयी. इसके बाद कॉलेज ने अपने स्तर से सारी तैयारी कर ली है. इसके बाद छात्र नहीं होने की बात सामने आ रही है. इससे क्या कुलपति डॉ चक्रवर्ती के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रही बर्दवान लॉबी?

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