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डीवीसी, राज्य के थर्मलों में घटने लगा कोयले का स्टॉक

परेशानी. धनबाद-चंद्रपुरा रेल खंड के बंद होने का असर बंगाल की बिजली कंपनियों पर बीसीसीएल तथा सीसीएल के उत्पादित कोयले के डिस्पैच के लिए लाइफलाइन रही धनबाद-चन्द्रपुरा (भाया कतरास) रेल लाइन के बंद होने से पश्चिम बंगाल खासकर डीवीसी सहित पूवरेत्तर व उत्तर भारत के कई राज्यों में स्थित थर्मलों को कोयले का संकट होने […]

परेशानी. धनबाद-चंद्रपुरा रेल खंड के बंद होने का असर बंगाल की बिजली कंपनियों पर
बीसीसीएल तथा सीसीएल के उत्पादित कोयले के डिस्पैच के लिए लाइफलाइन रही धनबाद-चन्द्रपुरा (भाया कतरास) रेल लाइन के बंद होने से पश्चिम बंगाल खासकर डीवीसी सहित पूवरेत्तर व उत्तर भारत के कई राज्यों में स्थित थर्मलों को कोयले का संकट होने लगा है. स्थिति में शीघ्र बदलाव नहीं आने पर राज्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ना तय है.
आसनसोल : पूर्व मध्य रेलवे के धनबाद रेल मंडल के 34 किलोमीटर लंबे धनबाद-चन्द्रपुरा रेल खंड (भाया- कतरास) पर ट्रेनों का परिचालन बंद किये जाने से दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) सहित पश्चिम बंगाल के अधिसंख्य बिजली उत्पादक प्लांटों को कोयले की कमी होने लगी है.
यदि शीघ्र ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गयी तो न सिर्फ बिजली का संकट उत्पन्न होगा, बल्कि कोल इंडिया लिमिटेड की अनुषांगिक कोयला कंपनियों की भी आर्थिक स्थिति चरमराने लगेगी. सीआइएल प्रबंधन ने रेलवे बोर्ड को त्रहिमाम संदेश भेज कर शीघ्र ही वैकल्पिक व्यवस्था करने की मांग की है.
क्या है वैकल्पिक उपाय
बिजली कंपनियों के पास मौजूदा गहराते संकट से निकालने के लिए दो विकल्प हैं. पहला कि इस कोयले की सप्लाइ सड़क मार्ग से की जाये. लेकिन जिस क्षेत्र में कोयला खदाने व रेलवे साइडिंग स्थित हैं, वे काफी घनी आबादी वाले इलाके हैं. इस कारण सड़क पर वाहनों का पहले से ही सर्वाधिक लोड है.
इस स्थिति में इस कोयले के परिवहन के कारण सड़क पर लोड काफी बढ़ जायेगा तथा संबंधित सड़के इसे सहन नहीं कर पायेगी तथा पूरा इलाका भयंकर जाम में उलझ जायेगा. यह विकल्प उपयोग में लाने की स्थिति नहीं है. तो दूसरा विकल्प है कि इन कंपनियों व प्लांटों को दूसरे स्त्रोत से कोयले की सप्लाइ की जाये. इस विकल्प की परेसा नी यह है कि मानसून शुरू हो चुका है तथा बरसात में भूमिगत खदानों में जल स्तर बढ़ने तथा खुली खदानों में जल जमाव होने के कारण कोयले का उत्पादन स्वाभाविक रूप से कम हो जाता है. इस कारण अतिरिक्त कोयला उत्पादन की संभावना कम है. साथ ही साथ कोयले का डिस्पैच पर्याप्त मात्र में नहीं होने से बीसीसीएल तथा सीसीएल की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चरमराने लगेगी.
सीआइएल पर बढ़ाया दबाब
डीवीसी सहित विभिन्न कोयला कंपनियों ने कोयले की सप्लाइ जारी रखने के लिए सीआइएल पर दबाब बढ़ाना शुरू कर दिया है. इस स्थिति में सीआइएल प्रबंधन ने रेलवे अधिकारियों को त्रहिमाम संदेश भेजना शुरू कर दिया है. वरीय अधिकारी ने बताया कि रेलवे अधिकारियों से आग्रह किया गया है कि शीघ्रताशीघ्र कोयले की ट्रांसपोर्टिग शुरू करने की व्यवस्था की जाये अन्यथा पश्चिम बंगाल सहित पूवरेत्तर भारत व उत्तर भारत में बिजली व्यवस्था चरमरा जायेगी तथा पूरा क्षेत्र में अंधेरे में डूबने लगेगा.
क्या है पूरा मामला
धनबाद-चन्द्रपुरा रेल खंड (भाया- कतरास) की लंबाई वैसे तो 34 किलोमीटर है. लेकिन इसकी 16 किलोमीटर लंबी रेल लाइन भूमिगत आग की चपेट में है. विभिन्न एजेंसियों ने इस भूमिगत आग कोट्रेन परिचालन के लिए खतरनाक बताया है. रेलवे बोर्ड ने विभिन्न रिपोर्ट की समीक्षा करने के बाद बीते 14 जून से इस रेल खंड पर ट्रेनों का परिचालन पूरी तरह से रोक दिया है.
रेल अधिकारियों की माने तो रेल लाइन के नीचे भूमिगत आग काफी तेजी से बढ़ रही है तथा लाइन के काफी करीब आ गयी है. इस स्थिति में ट्रेन परिचालन जारी रखने पर कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है तथा पूरी ट्रेन जमीन में समा सकती है. रेलवे बोर्ड के निर्णय के बाद इस रूट से चलनेवाली 26 यात्री ट्रेनों का परिचालन बंद हो गया है. इसके साथ ही इस खंड से कोयला लेकर निकलनेवाली औसतन रोजाना 12 मालगाड़ियों का भी परिचालन बाधित हो गया है.
क्या पड़ा है असर
इस रेलखंड से भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) तथा सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) की खदानों से रोजाना 12 मालगाड़ियां कोयला लेकर निकलती है. इस कोयला का उपयोग डीवीसी, पश्चिम बंगाल, पूवरेत्तर भारत, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में स्थिति बिजली उत्पादक यूनिटों में होता है. आकलन के अनुसार एक मालगाड़ी में करीब 3500 टन कोयले की लदाई होती है. यानी रोजाना 42,000 टन कोयले का परिवहन बाधित हो रहा है.
कोयले की इतनी मात्र से 2400 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो सकता है. इस रेलखंड से बीसीसीएल की छह रेलवे साइडिंग जुड़ी हुयी है. हालांकि सीसीएल की कोई रेलवे साइडिंग सीधे नहीं जुड़ी है. कोयले की सप्लाइ बाधित होने के कारण इन बिजली उत्पादक यूनिटों में कोयले का भंडार घटने लगा है. गरमी के कारण एसी तथा कूलर का अधिक उपयोग होने के कारण बिजली की मांग में काफी वृद्धि हुयी है.

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