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खामियाजा: केंद्र व राज्य सरकारों के बीच पिस रहा चीनी उद्योग

कोलकाता: देश का चीनी उद्योग केंद्र व राज्य सरकारों के बीच के मतभेद के बीच बुरी तरह पिस रहा है और इसका खमियाजा चीनी उत्पादकों को भुगतना पड़ रहा है. इसका सबसे मजेदार पहलू यह है कि जहां चीनी पर केंद्र का नियंत्रण है, तो गन्ने को राज्य सरकार नियंत्रित करती है. गलत नीति के […]

कोलकाता: देश का चीनी उद्योग केंद्र व राज्य सरकारों के बीच के मतभेद के बीच बुरी तरह पिस रहा है और इसका खमियाजा चीनी उत्पादकों को भुगतना पड़ रहा है. इसका सबसे मजेदार पहलू यह है कि जहां चीनी पर केंद्र का नियंत्रण है, तो गन्ने को राज्य सरकार नियंत्रित करती है.

गलत नीति के कारण देश में भरपूर उत्पादन व जरूरत से अधिक स्टॉक होने के बावजूद विदेशों से चीनी आयात किया जा रहा है. इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष व रीगा शुगर कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ओपी धानुका ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान गन्ना मूल्य पर चीनी मिलों को प्रति क्विंटल 600 रुपये का घाटा हो रहा है. ऐसे में चीनी उद्योग अपनी भंडार क्षमता के तहत ज्यादा से ज्यादा भंडारण करने का प्रयास कर रही है, ताकि वह इस समय घाटे का सौदा करने से बच सके. मिलों को उम्मीद है कि उद्योग की मदद के लिए प्रतीक्षित सरकारी कार्रवाई से आय बढ़ेगी. चीनी उद्योग के पास भंडारण की क्षमता हालांकि समाप्त हो चुकी है, ऐसे में उसे हड़बड़ी में बिकवाली करना पड़ सकता है.

श्री धानुका ने कहा कि लोकसभा चुनाव सामने है. ऐसे में सरकार से सहायता मिलने में देर के कारण मिलों की ओर से गन्ना किसानों को उनके बकाये के भुगतान में देर होगी. चीनी उद्योग को उम्मीद है कि सरकार अतिशीघ्र सहायता को मंजूरी देगी, क्योंकि देश के कुछ राज्यों में किसानों पर इसका साकारात्मक असर होगा. भारत के चीनी उद्योग के पास 31 जनवरी को 118 लाख टन का स्टॉक था, जो छह माह की खपत के बराबर है. चीनी उद्योग ने चीनी निर्यात के लिए 3500 रुपये प्रति टन की सहायता, सरकार द्वारा चीनी का बफर स्टॉक बनाने और आयात शुल्क को मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने की मांग रखी है. श्री धानुका ने कहा कि अगर चीनी उद्योग को कोई सहायता प्राप्त नहीं होती है तो इस वर्ष के भारी उत्पादन के अनुमान को देखते हुए चीनी उद्योग को 15000 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ सकता है.

उन्होंने कहा कि देश में औसत उत्पादन लागत बढ़कर 3400 रुपये प्रति क्विंटल हो गयी है, जबकि चीनी की कीमत 2800-2900 रुपये प्रति क्विंटल है. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्ष में जहां गन्ने की कीमत में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, वहीं चीनी की कीमत में 25 प्रतिशत तक कमी हुई है. इस स्थिति के कारण चीनी कारखानों पर किसानों का 10 हजार करोड़ रुपये बकाया हैं. श्री धानुका के अनुसार देश में उत्पादन के अनुसार हमें पिछले वर्ष सात करोड़ रुपये का चीनी निर्यात करना चाहिए था, जबकि उसके बदले में भारत में छह हजार करोड़ रुपये चीनी का आयात किया गया. देश में 650 से अधिक शुगर फैक्टरी हैं, जिनमें से लगभग 300 सरकारी व सरकारी मान्यताप्राप्त हैं. बंगाल के केवल एक शुगर फैक्टरी है, जबकि बिहार में चीनी कारखानों की संख्या 11 है. एक कारखाने में औसतन 700 लोग काम करते हैं. वहीं गन्ने के उत्पादन से पांच करोड़ किसान जुड़े हुए हैं.

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