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सरकार ने केंद्र से मांगे तीन लाख करोड़

कोलकाता: राज्य का विकास करने के लिए तृणमूल सरकार ने फिर केंद्र के समक्ष मदद के लिए हाथ फैलाया है. गुरुवार को राज्य सरकार व केंद्रीय वित्त आयोग के बीच हुई बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य में नयी सरकार पर पहले से ही दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, […]

कोलकाता: राज्य का विकास करने के लिए तृणमूल सरकार ने फिर केंद्र के समक्ष मदद के लिए हाथ फैलाया है. गुरुवार को राज्य सरकार व केंद्रीय वित्त आयोग के बीच हुई बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य में नयी सरकार पर पहले से ही दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, इसलिए राज्य सरकार जब तक इस कर्ज के बोझ से छुटकारा नहीं पाती है, तब यहां का समुचित विकास नहीं हो पायेगा.

राज्य के विकास के लिए तृणमूल सरकार की ओर से 14वीं वित्त आयोग के समक्ष और तीन लाख करोड़ रुपये की मांग की गयी. इस संबंध में गुरुवार को राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने बताया कि बंगाल में आधारभूत सुविधाओं का विकास करना जरूरी है. इसके लिए राज्य सरकार ने अगले पांच वर्षो में केंद्र सरकार से एक लाख करोड़ रुपये की मांग की है. इसके अलावा राज्य सरकार के 41 सरकारी विभागों का समुचित विकास के लिए भी फंड की कमी है. इसके लिए भी राज्य सरकार ने करीब 1.55 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव पेश किया है. उन्होंने बताया कि सरकार ने यहां के विकास कार्यो के लिए 2.55 लाख करोड़ रुपये की मांग की है. इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से स्पेशल पर्पज लोन के तहत वित्त आयोग के सामने और 51 हजार करोड़ रुपये मांगे गये हैं. इसके साथ ही राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से यहां से वसूले गये कुल कर का 50 फीसदी राज्य को वापस करने की मांग की है. इसके अलावा नगरपालिका व पंचायत क्षेत्रों के लिए और चार फीसदी राशि वापस करने की मांग की है.

गौरतलब है कि फिलहाल केंद्र द्वारा राज्यों से वसूले गये कर का 32 फीसदी ही राज्यों को वापस किया जाता है. राज्य से केंद्र सरकार प्रत्येक वर्ष करीब 44 हजार करोड़ रुपये वसूलती है. उन्होंने कहा कि अगर इस राशि को वापस किया गया तो इससे राज्यों का विकास होगा.

खाद्य सुरक्षा योजना का खर्च वहन करे केंद्र
इस बैठक में राज्य सरकार की ओर से खाद्य सुरक्षा योजना जैसी केंद्रीय योजनाओं के लिए केंद्र सरकार को ही राशि खर्च करनी चाहिए. बंगाल में इस योजना को लागू करने के लिए करीब सात हजार करोड़ रुपये का खर्च आयेगा, जिसकी क्षमता राज्य सरकार के पास नहीं है. इसलिए इस प्रकार की योजनाओं के लिए अगर केंद्र खर्च करे तो ही बेहतर है.

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